Friday, January 22, 2016

रती महतो का बैल

:::- रती महतो का बैल -:::
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मैं करीब 8-9 साल का था. कार्तिक अगहन का महीना चल रहा था. धान की कटाई मेसाई अपने चरम पे था. अभी हमलोगों की कटाई मेसाई आधा भी नहीं हुआ था कि हमारा एक बैल बीमार पड़ गया. काफ़ी दवा-दारु व सेवा-सुश्रुषा के बावजूद भी एक हफ्ता से ज्यादा नहीं बच पाया. अब एक बैल से बाकी के बचे काम और चास-बास कैसे होई ? जब भी बैलगाड़ी नारना होता तो बड़े पापा का एक बैल साथ में नारना पड़ता या तो फिर उनके दोनों जोड़े बैल. पापा अपने फुट(अकेले) बैल के लिए जोड़ी ढूंढ़ रहे थे. 3 दिन बाद पड़ोसी के पुका महतो सुबह-सुबह खलिहान में आये और खैनी मलते हुए पापा को बताया कि हेठकुल्ही के रती महतो का भी एक बैल मर गया हैं और वह बचा हुआ बैल को बेच के नया जोड़ा बैल खरीदने का विचार कर रहा हैं, आप कहे तो बात करू उससे. वैसे बैल एक नम्बर हैं, कभी बैठता-वैठता नहीं हैं गाड़ी-घोड़ा और हल-वल जोतने में… ।
पापा ने बोला – अरे मर्धे… तो देर किस बात की. चलो अभी चलते हैं…।।
10 बजते-बजते पापा और पुका महतो रती महतो का बैल 3500 रूपये में खरीद लाये. घर में घुसने से पहले द्वार से ही पापा ने मम्मी को आवाज लगाया- ये सोमरी (दीदी) माय… तनिक बाहर आव तो.. रती महतो के घर का बैल खरीद लाये हैं,इसका गृह प्रवेश कराओ तो. मैं घर से बाहर आया और पापा को बताया कि मैया बरिया में हैं अभी बुला के लाते हैं. यहाँ ध्यान देने की बात हैं कि लक्ष्मी का स्वागत घर की लक्ष्मी के द्वारा ही होता हैं. मैं मम्मी को बुला लाया. मम्मी एक लोटा पानी और एक दोने में धान भर के लाई. बैल के चारों पैरों को धोई,प्रणाम की और दोने का धान खिलाकर बैल को घर के आँगन तक ले आई. पापा ने कोचरा का तेल ले बैल के सींगों में मालिश कर के उसे घर के पुराने बैल के साथ खूंटे में बाँध दिए. दोनों बैलों में दो-चार दिन का मनमुटाव रहा,एक दूसरे को सिंग दिखाते रहे लेकिन साथ में काम करते-करते अच्छी खासी दोस्ती हो गई. अब तो वो दोनों एक साथ एक ही गमले में मुँह डाल के पानी पीने लगे थे. पेट भर जाने के बाद एक दूसरे को चाटते भी थे. ऐसा नहीं हैं कि दोस्ती खाली उन दोनों के बीच हुई थी..वह हमारा भी दोस्त बनने लगा था. वह हमारे परिवार का एक सदस्य बन गया था.
मेरा पशु-पक्षियों से हमेशा से लगाव रहा हैं और पशु-पक्षियों का हमसे. घर में मुर्गा-मुर्गी, कबूतर, बकरा-बकरी, गाय-बैल,बछड़े सब थे. उनको खिलाने-पिलाने, चराने का ज्यादा ध्यान में ही रखता था. मेरे दिन की शुरुवात कबूतर,मुर्गियों को दाना देकर व गायों-बकरियों को उसका आहार दे के ही शुरू होता था. उसके बाद जंगल जाता था बकरियों के भोजन के इंतज़ाम हेतू. उसके बाद मेरा स्कूल जाना. स्कूल से जैसे ही घर आता और मेरा आवाज़ गूंजता मुर्गियां कोट…कोट..करके उड़ते हुए और कबूतर गुटरगूँ की आवाज़ के साथ मेरे पास आ के मंडराने लगते. गाय बकरियां भी आवाज़ देने लगती. घर में अचानक हुए इस बदलाव से बाहर आये लोग कभी-कभी चोंक जाते. एक दिन हमारी मौसी जो मेहमानी में आई थी मम्मी के साथ बारी में बैठी थी, अचानक से हुई घर में इस हलचल के बारे में माँ से पुंछी तो माँ ने बताया कि – लगता हैं इनलोगों का मिरवा(पालनहार) इस्कूल से आ गया हैं… मैं स्कूल से थका हरा भूखा जब अपने को इन सब घिरा हुआ पता तो मेरा भूख कुछ देर के फुर्र हो जाता. पहले इन सब को दाना खिलाता,बकरियों,गायों,बैलों को कुछ पालहा खिलाता फिर खुद खाता. हमारा लगाव इन सब से कुछ इस तरह से था कि,अगर मेरा मुर्गा किसी मुर्गी के पीछे भाग रहा हो और अगर हमने ती-ती-ती कर के आवाज़ लगा दी तो वह मुर्गी को छोड़ कर मेरे पास चला आता.
खैर बात हो रही थी रती महतो के बैल की. वैसे वो अब हमारा बैल बन चूका था लेकिन रती महतो के बैल से ही जाना जाता था. वो बैल सही में हमारे घर के लिए लक्ष्मी साबित हुआ. कभी बीमार नहीं हुआ. कभी भी गाड़ी या फिर हल जोतने में कोढ़ियापना नहीं किया. वो करीब 7 साल तक हमारे घर का खूब सेवा किया. इन सात सालों के दौरान उसने तीन जोड़ियां भी जोड़ी क्योंकि वे उसको काम के मामले में टक्कर नहीं दे पाते थे.
उस टाइम गाँव में इंटरटेनमेंट के कोई साधन नहीं थे सिवाय एक दो घर को छोड़ के जिनके यहाँ टी.वी. थी और वो अपने आप को धीरू भाई अम्बानी के रिश्तेदार से कम नहीं समझते थे. तो अपना इंटरटेनमेंट गाय गोरु के मध्य ही होता था. मैं और मेरे छोटे भाई उस बैल के आस-पास छुआ-छुई का खेल खेलते थे. बैल के टांगों के बीच में से आर-पार होते थे. और इस दौरान बैल टस से मस नहीं होता था. लगता था कि जैसे वो खुद हमारी खेल का हिस्सा हो और खेल का ख़ूब आनंद ले रहा हो. अपना सर ऊपर और पुंछ सीधा करके हमलोगों को सहयोग प्रदान करता. उसको जब चराने ले जाता तो कुछ देर चरने के बाद वो हमारे पास आ के बैठ जाता और सिंग से हमें कुचने लगता. वो हमें मारता नहीं था बल्कि सिग्नल देता था कि मेरी गुदगुदी करो. फिर मैं उसको हाथ से उसके गर्दन और माथे को सहलाता. वो एकदम से विभोर हो जाता. आँख मूँद के गर्दन तान देता. और अगर मैं जान बुझ के गुदगुदाना छोड़ देता तो वो मुझे फिर से सिंग से कुचने लगता. धान कटाई के बाद सभी मवेशी छूटे हो जाते हैं. इस दौरान उन्हें चराने जाना नहीं पड़ता था लेकिन सुबह-सुबह जंगल की ओर छोड़ने ज़रूर जाना पड़ता था. बिना गुदगुदी लिए वो हमसे विदा नहीं होता था. वो हमें जहाँ कहीं भी भेंटा जाता गाँव में, गली में, टांड़ में, जंगल में .. पांच मिनट टाइम उसको देना ही पड़ता था. हमलोग फुसरो मूवी देखने जाया करते थे, फुसरो का गाड़ी पकड़ने के लिए गांव से दो किलोमीटर पैदल जाना पड़ता था मैन रोड के लिए. और इस दो किलोमीटर के दरमियान ही मेरा बैल चरा करता था. पैदल जाने के दौरान दोस्तों से हुलड़बाज़ी करते हुए अगर मेरी आवाज़ किसी भी तरह से उसके कान में पड़ गई तो वो दौड़ता हुआ हमारे पास आ जाता और सिंग से कुचने लगता. फिर उसको बीच रास्ते में ही गुदगुदाओ. गुदगुदाने के बाद भी नहीं मानता और हमारे पीछे-पीछे आने लगता. उसको सोंटे से मार के भगाता फिर भी पीछे आना नहीं छोड़ता. मेरे साथ का लगल महतो बोलता- अबे हमलोगों के साथ फुसरो जाएगा का सिनेमा देखने, देख अभी छोड़ हमलोगों का पीछा लेट हो रहा हैं नहीं तो सन्नी देओल को बोल देंगे, सुना हैं सिनेमा में एक साँढ़ को बहुते पटक-पटक के मारा हैं… फिर उसको दो तीन सोंटा जम के मारते तब वो हमारा पीछा छोड़ता. एक अलग ही रिश्ता बन गया था उसके साथ कभी न टूटने वाला जैसा.

समय बीतता गया, सात साल तक वो लगातार हमारे परिवार की सेवा की. अब वो बूढ़ा होने लगा था, पहले जैसी अब ताक़त नहीं रह गई थी शरीर में. छोटे-मोटे हल्के काम लिए जाते थे उससे. और अपनी खेती-बारी थोड़ी ज्यादा थी, ज्यादा काम कराने से थकने लगा था वो. घर में विचार-विमर्श हुआ कि अब एक जोड़ी नये बैलों की खरीदी की जाय. नए बैल ख़रीदे भी गए. जैसे ही नए बैल ख़रीदे जाने की सुचना मेरे मौसी घर पहुँचा, अगले दिन मौसा जी मेरे घर पे. उन्होंने पापा से बोला – साढ़ू जी अब जब आपने नए बैल खरीद ही लिए हैं तो पुराना रती महतो का जो बैल हैं वो हमें दे दीजिये. वैसे भी हमारी ज्यादा खेती-बारी नहीं हैं तो हम इस बैल से दो-ढाई साल निकाल ही लेंगे,घर में एक फुट बैल है और अभी उसका जोड़ा खरीदने के हालात में नहीं हैं… पापा ने मौसा जी को हाँ कर दिया. मैंने विरोध किया- नहीं… ये बैल कहीं नहीं जाएगा. ये यहीं रहेगा. लेकिन पापा ने जैसे तो ठान ही लिया था रघुकुल के रीत के जैसी कि एक बार साढ़ू जी को बोल दिया तो बोल दिया…. मेरे विरोध को 1857 के विद्रोह की भाँति दबा दिया गया. मौसा जी बैल को रस्सी में बाँध के ले जा रहे थे. एक अजनबी के हाथ में अपने को रस्सी से बंधा देख शायद वो भी समझ गया कि इस घर से मेरी विदाई हो रही हैं. बैल थोड़ा विरोध कर रहा था. सबके चेहरे को वो बारी से देख रहा था. मेरी आँखों में लबालब आँसू भर गए थे. मैं अपने-आप को रोक नहीं पाया , बैल के गले से लिपट गया और रो-रो के गुदगुदाने लगा. आँखों से अनवरत आंसू निकल रहे थे. मेरे को रोता देख मम्मी भी खुद को रोक नहीं पाई, वो भी मेरे से लिपट के रोने लगी. कुछ मिनट बाद वो मेरे को बैल से अलग कर ली. मौसा जी हाँकते हुए बैल को ले जा रहे थे. मैं गली में खड़ा हो बैल को जाते हुए देख रहा था, बैल भी पीछे मुड़-मुड़ के बार-बार मुझे देख रहा था. मैं खड़ा हो बस उसे निहारता ही रहा जब तक कि वो ओझल नहीं हो गया.

                      मैं एक हफ्ता गुमसुम गुमसुम रहा. एक दिन रात के खाने के बाद मैंने पापा को बोल दिया – बप्पा, आपने ये बहुत ग़लत किया, रती महतो के बैल को मौसा जी को दे के…. वो बैल हम सबकी लगातार सात साल से सेवा कर रहा था और आज जब वो काम करने में अक्षम होने लगा तो उसे मौसा जी को सौंप दिया. जब वो जवान था और काम करने में सक्षम था तो आप पुरे गाँव वालों को बोलते थे कि हमें बहुत अच्छा बैल मिला हैं,गाँव में ऐसा बैल किसी के घर नहीं हैं. आज तक एक काम में भी कभी अड़ा हैं न बैठा हैं. काड़ा (पाड़ा) के साथ भी नार देने से काड़ा को पछाड़ देता हैं. और आज जब शक्ति कम पड़ गई तो उसे मौसा जी के हवाले कर दिया… बहुत पाप लगेगा बप्पा हमलोगों को… देखा नहीं कैसा वो जाते वक़्त पीछे मुड़-मुड़ के देख रहा था.
पापा – अरे.. तो तुम्हें क्या लगता हैं कि मौसा जी खाली जोतने के लिए बैल को ले गए हैं.. वो भी सेवा-सम्हार करेंगे बैल का.
मैं – अगर मैं आपको बुढ़ापे में किसी वृद्धाश्रम में छोड़ दूँ ये कह के कि वृद्धाश्रम वाले भी आपका ख़ूब ख़याल रखेंगे, तब आप पे क्या गुजरेगी ??
पापा अब निरुत्तर हो चुके थे. काफी देर सोचने के बाद हमें आदेश दिए कि कल जा के मौसा घर से बैल को ले आना और मौसा जी बोल देना कि नए बैल की खरीदी के पैसे दे देंगे.
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. पापा को मैंने गले लगा लिया. अगली सुबह लगल महतो के साथ डाइरेक्ट गिरीडीह का बस पकड़ के मौसा घर चला गया. मेरे घर से मौसा जी का घर करीब 20-22 किलोमीटर दूर हैं. जैसे ही मौसा के घर पहुँचा और आँगन में बात करने लगा, मेरी आवाज़ बैल के कान में जा पड़ी जो घर के पिछवाड़े में बंधा हुआ था. अब लगा वो ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ करने और छटपटाने. मौसी ने बोला कि का हो गया बैल को एकदम से छटपटाने लगा हैं. मैंने बोला- मौसा जी आप जा बस बैल का रस्सी खोल दो।. मौसा जी गए और रस्सी खोल दिए, वो सीधा भागता हुआ मेरे पास आ गया और मुझे सिंग से कुचने लगा. मैं बैठ के उसे गुदगुदाने लगा. फिर उसकी हालत पे नज़र गई, उसकी आँखों से बहे पानी से उसकी आँखों के नीचे गहरी काली धारियां बन चुकी थी. और शरीर भी दुबला गया था. मुझे उस दिन पता चला कि जानवरों के भी जज़्बात होते हैं,बिछुड़ने का ग़म उन्हें भी होता हैं और ग़म भुलाने के लिए रोते भी हैं. मैं उसे गुदगुदाते हुए बोल रहा था – अरे अब हम तुमको यहाँ से ले जाने आये हैं…. मौसा जी पापा ने बोल दिया हैं कि नया बैल खरीदने के लिए पैसे देंगे तो आप एक दिन जा के पैसे ले लीजियेगा.।

                          अब हम बैल को ले जा रहे थे. जैसे ही हाथ से थपकी मार के उसे बाहर गली की ओर निकालना चाहा वो समझ गया कि ये हमें वापस घर ले जाने के लिए आये हैं. अब तो उसने दूसरी थपकी मारने का मौका ही नहीं दिया. वो मेरे से आगे-आगे ऐसी गति से चल रहा था कि मानो जवानी वापस आ गई हो उसमें. कुछ दूर आगे चलने के बाद वो हमारे साथ हो लिया. हम तीनों जन किसी दोस्त की भाँति टहलते हुए घर की ओर आ रहे थे. बीच-बीच में चाय पानी के लिए रुकता तो वो शांत खड़ा हो के हमारी बाट जोहता. 20-22 किलोमीटर पैदल चल के घर आया लेकिन मेरे को ज़रा सा भी थकान महसूस नहीं हो रहा था.
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और अंत में… जिस तरह से आज इंसानों में जानवर प्रवृति घर कर रही हैं उनके लिए ये कविता..
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अक्सर शहर के जंगलों में ;
मुझे जानवर नज़र आतें है !
इंसान की शक्ल में ,
घूमते हुए ;
शिकार को ढूंढते हुए ;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए !
और फिर
एक और शिकार के तलाश में ,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ ,
जो जंगल के जानवर है ;
वो परेशान है !
हैरान है !!
इंसान की भूख को देखकर !!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो
हम जानवर अच्छे !!!
उन जानवरों के सामने ;
मैं निशब्द था ,
क्योंकि ;
मैं भी एक इंसान था !!!
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गंगा महतो
खोपोली 

11 comments:

  1. बेहतरीन । आप ने बचपन के दिनों की याद दिल दी जब हमारे यहाँ भी बैलों की जोड़ी थी और उनका सानी पानी अपने चाचा के साथ करता था ।

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  2. बेहतरीन । आप ने बचपन के दिनों की याद दिल दी जब हमारे यहाँ भी बैलों की जोड़ी थी और उनका सानी पानी अपने चाचा के साथ करता था ।

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    1. बहुत आभार धर्मेन्द्र जी...

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  3. बहुत अच्छा लिखते हैं.....

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  4. गंगा दा आज से हम तोरा माईन ललिओ की हाँ तोर पास कुछ दम हो.....

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  5. Are ganga bhai ye batao apki profile facebook me nai aa rahi hai

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