Saturday, September 10, 2016

||कर्मा परब ||

||कर्मा परब ||

सावन बीत गया है.. अपनी झमझमाती बरखा की बौछारों से ताल-तलैयों को सराबोर करते हुए चहुंओर हरियाली का सौगात दे गई है.. प्रकृति बोल पड़ी है। ..अभी  भादो का महीना चल रहा है.. खेतों में धान लहलहा रही हैं.. ठेरका और घंटियों की आवाज़ और चरवाहों के हाँकों के बीच गाय-गोरु पुरे मगन के साथ चर रही हैं.. तो कुछ खुले और छूटे टाइप के बाछा बाड़े से भागकर खेत में लगी धान की दावत उड़ा रहे हैं, तो कुछ घंटों के बाद खेत मालकिन/मालिक उन बाछों को खदेड़ते हुए बाछा मालिक के पुरे खानदान की कुंडली निकालते हुए उनके घरों में घुसा दे रहे हैं.. और फिर अगले दिन से उस बाछे में गर्दन में बड़ा सा ठेरका या फिर लठ बाँध दिया जा रहा है।.. खेतों में धान के पौधों के साथ खरपतवार भी उग आये है.. डेढ़-दो महीने पहले ब्याह कर ससुराल आई नई बहुएं अपनी सासु माँ के संग खेतों में खरपतवार को निका रही है.. किसी खेत में ‘बोकी’ लग गया है तो कीटनाशक का छिड़काव किया जा रहा है..। .. भादो का महीना है.. कभी इतनी जोर से बारिश तो कभी इतनी तेज धूप और उमस की क्या कहने.. एक पल चादर ओढ़ने को मन करता तो दूजे पल सब कुछ उतार फेंक देने को... घर में रखा नून और गुड़ पिघल रहा है.. घरजवाई का ससुराल में टिकने का हिम्मत नहीं हो रहा है.. तबे तो ये कहावत बनी “भादोक गर्मी में घरजवाँय भागल हलेय!”। तो वहीँ नवविवाहितों का प्रेम अपने चरम में हैं। लेकिन इन्हीं गहन प्रेम के बीच नवविवाहिता का मन ससुराल में नहीं लग रहा है, बरबस ही उनका मन नईहर की ओर खींचा चला जा रहा है, क्योंकि “कर्मा परब” जो आने वाला है। नवविवाहिता अपने पति को न कह के अपने देवर से कहती है ..
“ आय गेलय भादर मास
 लाइग गेलक नईहरक आस 2
छोटो देउरा हो.. कह दिहक ददा के तोहाइर
करम खेले जाइब नईहर।“
जी हाँ, झारखण्डी जनमानस की प्रकृतिरूपा ममत्वप्रिया कन्या झंकृत हो उठी है.. झारखण्ड के भूमण्डल में ‘कर्मा परब’ की आहट सुनाई पड़ने लगी है.. नवविवाहिताएं नईहर जाने को आतुर है.. बेसब्री से अपने भाइयों का लियान के लिए इंतज़ार कर रही हैं.. वहीँ नईहर में इनकी छोटी बहनें अपनी दीदियों का। सब मिल के एक साथ में पाँतवार हो के कदमताल के साथ ‘जावा’ नाचने के लिए लालायित हो उठी है. .. अखाड़े की साफ़-सफाई और चाक-चौबंध का पूरा प्रबन्ध किया जा रहा है।
भाद्र मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन ‘कर्मा परब’ मनाया जाता है। एकादशी के ठीक सात या फिर नौ दिन पहले नवयुवतियां पास के बाँध या फिर नदी में स्नान कर करम डाली में सात या नौ प्रकार के दलहन या शस्यबीज ( धान, कुरथी,मुंग,बिरही,घँघरा,गेहूँ,चना,मकई और सेम) का नेगविधि से रोपन करती है जिसे ‘जावा उठाना’ कहते है। और साथ ही साथ सब कोई अपना निजी जावा भी ‘टुपला’ में उठाती है। मुख्य जावा डाली के साथ अन्य जावा को अखाड़ा में रख कर सात/नौ दिन युवतियां ‘करम गोसाई’ की गीतों के माध्यम से नृत्य करते हुए आराधना करती है।.. पूरा वातावरण संगीतमय हो उठता है… सुबह और देर रात तक युवतियां आखरा में नृत्य करती है..
“छोटे मोटे उड़ेन फेरवा
 मुठिएक डाइढ़ गो
 ताही तरे सुरुजा देवा
 खेला ले जावाञ।“
 "जाउआ माञ जाउआ, किआ किआ जाउआ..
 जाउलँ भाइरे कुरथि बहुला"!
जैसे गीतों से पूरी प्रकृति झंकृत हो उठती है। करम गोसाई से अच्छे फसल की उपज के लिए कामना किया जाता है।
कर्मा की नृत्य-शैली एक अलग किसिम की होती है। माना जाता है कि करम-नाच से उत्पन्न शारीरिक प्रक्रिया से नवयुवतियों में मातृत्व शक्ति की वृद्धि होती है, बांझपन की समस्या नहीं होती है एवम् प्रसव सुगमतापूर्वक व खतरा रहित होता है।
कर्मा परब भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का परब है.. भाई-बहन के रिश्ते को और भी प्रगाढ़ता प्रदान करता है.. भाई बहन के रक्षा के धर्म के प्रति कृत-संकल्प होता है. इसलिए कहा जाता है “बहिनेक करम, भायेक धरम”. . बहनें अपने भाईयों के दीर्घायु होने का कामना करते हुए गाती है,
"देहु देहु करम गसाञ, देहु आसिस रे
भइआ मरअ बाढ़तअ लाखअ बरिस रे।
देबो जे कर्मति देबो आसिस रे
भइया तोर बढ़तउ लाखों बरिस रे।“
मेरी छुटकी ने दस दिन पहले ही फोन करके बोल दी थी ‘दादा .. इस बार के कर्मा के साड़ी का बजट पिछले साल से दुगुना रहेगा.. आप नहीं आ रहे है तो ये आपकी सज़ा है!”
मेरी छुटकी तुम दोगुना क्या चार गुना पाँच गुना ज्यादा महँगा साड़ी खरीदना.. खेद है बहन नहीं आ पा रहा हूँ इस कर्मा में।
पूरा झारखण्ड कर्मा के रंग में रंगा हुआ है.. कर्मा के गीतों के साथ पूरी प्रकृति झूम रही हैं.. धान की बालियां फूटने को आतुर है। कल एकादशी है .. सभी आखरा में करम वृक्ष की डाली गाड़कर करम गोसाई की पुरे नेगाचारि और विधि-विधान के साथ पूजा होगी। मांदर की मधुरमय थापों के साथ झूमर गान होगा.. पूरी रात जागरण होगा।
करम गोसाई से प्रार्थना है कि इस साल भी फसल की उपज अच्छी हो और बहनों की सारी मनोकामनाएं परिपूर्ण हो।
सभी कर्मा परबेतिन के साथ-साथ समस्त झारखण्ड वासियों को कर्मा परब की बहुत-बहुत शुभकामनायें।
जय करम गोसाइ।
जय झारखण्ड
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गंगा महतो
खोपोली।


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