Thursday, August 11, 2016

||ललखंडिया||

||ललखंडिया||

मैं गंगा महतो, भारत गणराज्य के झारखण्ड प्रदेश का निवासी। झारखण्ड देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित राज्यों में से एक है। तो मैं झारखण्ड राज्य के बोकारो जिलान्तर्गत नावाडीह प्रखंडाधिन मँझलीटांड़ गाँव का निवासी हूँ। बोकारो झारखण्ड के सबसे समृद्ध जिलों में से टॉप की गिनती में आता है, स्टील सिटी के साथ-साथ नॉलेज सिटी के भी नाम से जाना जाता है। 50 के दशक में SAIL की स्थापना होती है और उसके साथ-साथ तीन-चार पावर प्लांट्स की भी .. बोकारो सिटी से हमारा गाँव महज 30-35 किलोमीटर की दूरी पर है लेकिन हमारे गाँव तक बिजली आते-आते 50 साल से भी ऊपर का समय ले लेती है। .. हमारा गाँव जंगलों के बीच में बसा हुआ गाँव है.. मेरे गाँव से 12-15 किलोमीटर दूर ‘ऊपरघाट’ के गाँव सब… एक अजीब सा माहौल .. ऐसा माहौल कि बोकारो के सबसे संवेदनशील इलाकों में से एक.. पुलिस भी उधर जाने से पहले हज़ार बार सोचती हैं। .. कारण कि ‘ललखंडिया’ बेल्ट का होना.. अपने इधर नक्सलस को ललखंडिया कहते हैं.. ललखंडिया मने लाल सलाम वाले। प्रशासन के साथ-साथ एक आम जन के लिए भी एक अलग सा डर… लेकिन फिर भी हमलोग और उन गांवों के साथ अच्छे सम्बन्ध है.. हमारे ही जात-बिरादर वाले सब हैं.. शादी-ब्याह और रिश्तेदारी भी खूब होती हैं।.. मेरी मौसी का घर खुद ऊपरघाट हैं। .. लेकिन आने-जाने में डर लगा रहता था… शाम के बाद तो कतई नहीं.. उधर के रिश्तेदार और दोस्त सब भी खूब न्यूज़ सुनाते रहते थे ललखंडियों को ले के।
रात को गश्त लगाते-लगाते किसी के भी घर में घुस पड़ेंगे और भरी नींद से उठा के खाना बनवायेंगे.. मना तो कर नहीं सकते, जान से हाथ धोना थोड़े है! खाएंगे पीयेंगे और धन्यवाद तक नहीं बोलेंगे।.. नक्सलियों को गरीब-शोषित की आवाज बताएँगे लेकिन वास्तव में कोई पसंद नहीं करता। .. लेकिन कभी पुलिस करवाई में भी निर्दोष लोग हत्थे चढ़ जाते.. और यही गलती लोगों का पुलिस के प्रति गुस्सा फूटता है और इसका लाभ नक्सली लोग उठाते हैं।.. एक बार मेरे गाँव का आदमी नाम भक्तु महतो जिसका कि वहाँ फूफा घर था, गया था रिश्तेदारी में! .. उसी दौरान पुलिस का छापा पड़ जाता है.. गाँव के सारे मर्द गायब थे केवल बुजुर्गों को छोड़ के.. अब चूँकि वो वहाँ का मेहमान था तो उसको कहाँ छुपाये ? उसकी बुआ ने एक कमरे में बन्द करके बाहर से ताला जड़ दिया… जब वहाँ पुलिस पहुँची तो जबरदस्ती ताला खोल के अंदर घुसी और उसको गिरफ्तार कर ली। .. अब पुलिस ने जो भक्तु महतो का जो टॉर्चर शुरू किया कि क्या कहा जाय ! घर की महिलाएं कितना समझाई कि ये इस गाँव का नहीं है.. मेहमानी में यहाँ आया था.. हमलोग ने डर के मारे कमरे में बन्द कर दिया था.. लेकिन पुलिस ने एक न सुनी.. उसको इतना मारा गया इतना मारा गया कि कस्टडी में पाँच बार बेहोश हो गया.. उससे नक्सलियों के ठिकानों का पता पूछते .. उसको रात-रात भर पेट्रोलिंग में ले के जाते और ठिकाने का पता पूछते, और न बता पाने की स्तिथि में जम के पिटाई करते। . अब भक्तु महतो को कुछ पता होता तब तो वो कुछ बताता… बहुत टॉर्चर के बाद भी जब कुछ हाथ न लगा तो अंत में थक हार के ओरिजिनल पता अड्रेस पूछ के गाँव के लोगों और उसके माँ-बाप को बुलाया गया और पहचान हो जाने के बाद छोड़ा गया.. भक्तु महतो उस पिटाई के कारण बेड से महीना भर तक उठ नहीं पाया था.. और इसी तरह न जाने कितने भक्तु महतो होते हैं जो पुलिस की मार बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और कस्टडी में ही दम तोड़ देते हैं।
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ये हो गया एक पक्ष …
अब दूसरे पक्ष की एक वास्तविक घटना सुनाता हूँ..
सन् 2001-02 … झारखण्ड जस्ट अलग हुआ था… बाबूलाल मरांडी जी मुख्यमंत्री थे.. हम नावाडीह के मिडिल स्कूल में 8वीं कक्षा में पढ़ रहे थे .. भूषण हाई स्कूल के मैदान में नक्सलियों का ‘आत्म-समर्पण’ समारोह चल रहा था.. तो हमलोगों को स्कूल से छुट्टी दे दिया गया उस समारोह में शामिल होने के लिए… मुख्यमंत्री जी हेलीकोप्टर से आये और समारोह शुरू हुआ… भव्य नाट्य-मंचन भी हुआ नक्सली जीवन को ले के.. फिर उसके बाद आत्म-समर्पण का कार्यक्रम … उस समारोह में करीब डेढ़ सौ से ज्यादा नक्सलियों ने आत्म-समर्पण किया था.. सबको मुख्यमंत्री जी के तरफ से तौलिया और फूल माला से सम्मानित किया जा रहा था.. कुछ राशि और जमीन भी सरकार की तरफ से दिया जा रहा था।.. मुख्यमंत्री जी ने अन्य लोगों से भी मुख्य धारा में शामिल होने का सन्देश दिया।..  खैर समारोह शांतिपूर्वक सम्पन्न हुआ। … कहीं कुछ गड़बड़ सड़बड़ नहीं.. सब अच्छे से चल रहा था.. फिर एक दिन समाचार पत्र में आया कि ‘आत्म-समर्पण किये गए पुर्व नक्सली की निर्मम हत्या।“ … अब खबरीय भाषा कैसी होती है वो तो आप जानते ही होंगे।.. लेकिन  एक दिन उसी गाँव की एक औरत मेरे घर आई.. और उस घटना के बारे में बताने लगी..
“यही कोई रात के ग्यारह साढ़े ग्यारह बज रहे थे… सब कोई बियारी(डिनर) खा के सो गए थे… तभी आँगन के टाटी के खड़खड़ाने की आवाज आती है…  और साथ में फलन दा ओ फलन दा करके आवाज… फलन महतो घर का हुड़कु खोल के निकलता है और टाटी खोलता है .. देखता है कि एक पूरी बटालियन नक्सलियों की खड़ी थी.. एक दूसरे को लाल-सलाम करते हैं और घर के आँगन में आते है.. फलन महतो खटिया निकाल सबको बिठाता हैं।.. फिर उसका जो कमांडर रहता है वो फलन महतो से बोलता है “का फलन दा .. सुने है सरकार की तरफ से बहुत पैसा मिला है ! … कुछो खिलाइयेगा-पिलाइयेगा नहीं ? .. कि बस ऐसे ही खटिया पे बिठा के रखोगे ? “
“अरे ऐसे कैसे बात करते है.. काहे नहीं खिलाएंगे पिलाएंगे !”
“हाँ तो फिर खिलाइये… खस्सी भात से कम नहीं चलेगा फलन दा.. बताय दे रहे है।“
“अरे काहे नहीं… आप रुकिए.. अभिये खस्सी काटते है।“
घर के अंदर जा अपनी बीवी और माँ को जगाता है और मसाला,प्याज,लहसुन,मेर्चाय आदि तैयार करने को बोल देता है… गोहाल से खस्सी निकाला जाता है काटा जाता है.. भात बनाया जाता है… मीट बन के तैयार हो जाता है.. अब खाने की बारी आती है.. तो कमांडर बोलता है “फलन दा.. पहले आप खाओ … और सब परिवार वालों के साथ मिल के खाओ.. फिर हम खाएंगे।“
“अरे ऐसे काहे बोल रहे है… सब मिल के ही खाते है !”
“अरे बोल रहे है न .. पहले तुम लोग खाओ।“
तो फलन महतो चुपचाप अपने परिवार के साथ मिलकर पाँत में बैठ जाता है.. फिर वो कमांडर ही भात और मीट परोसता है.. फिर सभी खाने लगते है.. पहला पोरसन जब खत्म होने को आता तो कमाण्डर भात और मीट ले के पत्तल में डालने आता है तो फलन महतो मना करता है “अरे नहीं.. अब बस हो गया.. बहुत खा लिया.. “
‘’ अरे खा लो खा लो फलन दा… आखरी बार जो खा रहे हो.. फिर कभी शिकायत मत करना कि हमने तुम्हें जम के खाना नहीं खिलाया!”
इतना सुनते ही फलन महतो के होश उड़ जाते है… एकदम से हकलाते कंपकंपाते हुए बोलता है ..
“कक्क्…क्क्क्..कहना क्या चाहते हो कमांडर ??”
“अरे कुछ नहीं बस तुम खाना खाओ “
फलन महतो का तो जैसे भूख ही गायब हो गया .. बोला “अब मेरा पेट भर गया.. अब आप लोग खाइये !”
फिर वह डरे सहमे अपने परिवार के साथ मिल सबको खाना खिलाता हैं।
खाना खाने के बाद कमांडर बोलता है..
“बहुत बढ़िया खाना था फलन दा… चलिए फिर ठीक है अब हमलोग चलते हैं।“
“हाँ ठीक”
“अरे गाँव के कुलमुड़वा तक नहीं छोड़ के आओगे ?”
“अरे काहे नहीं.. चलो चलते है !!”
जब सब आँगन से निकलने लगते है तो कमाण्डर फलन महतो की बीवी से बोलता है ..
“ऐ भौजी…. दादा के तो ले जाय रहल हियो.. लेकिन अब कभी ऐतो नाय… तो अच्छा रहतो कि आपन माँग कर सिंदूर आभिये से पोइछ लो।“
इतने में फलन महतो की बूढ़ी माँ बोलती है..
“ऐ~~ ऐ~~ बेटा की बोईल रहे हो बेटा… हमर बेटा के कहाँ ले के जाय रहल ही बेटा की जे कभी ऐते नाय ?”
“ऐ काकी तोहू आपन क्रिया-क्रम खातिर दोसर बेटा देख लेना… अब तोहर ई बेटा वापिस नाय आई !”
“ऐ बेटा .. अइसन कोनो उल्टा सीधा नाय करो बेटा.. दू गो बेटी छौवा आर एक गो बेटा है बेटा.. बेटी सब कुंवारे है बेटा… अइसन कोनो गलत-सलत नाही करना बेटा .. ऐ बेटा.. इ एक बूढ़ी माय के प्रार्थना हो बेटा.. ऐ बेटा ~~”
ये कहते-कहते उसकी माँ उसके पैरों में गिर जाती है..
इतने में फलन महतो की बीवी भी दौड़ के आती है और कमांडर के पैरों में गिर जाती है और पैर पकड़ लेती है.. और रोते-गिड़गिड़ाते हुए कहने लगती है “ ऐ हो !! .. अइसन कुछो नाय करिहौ हो.. छोटे-छोटे बाल-बुतरू हथिन गो.. के सँभालते एखनी के गो.. छोइड़ द एकरा के गो.. एकर खातिर तोहे जेटा बोलबा.. उटा करे के तैयार हियो गो.. लेकिन एकरा के कोनो नाय करिहा गो !”
“ऐ भौजी… तो ई बतिया फलन दा सरकार से पैसा लेते हुए काहे नहीं सोचा था.. सरकार जम के पैसा दिया है तो उससे बाल-बच्चों को पढ़ाओ लिखाओ .. अब फलन महतो का का ज़रूरत !”
बूढ़ी माँ, बीवी और उसके रोते-बिलखते बच्चे सब कोई गिड़गिड़ाने लगते हैं .. लेकिन कोई नहीं सुनने वाला.. सबको घर में बंद कर बाहर से सिकरी लगा दिया जाता है… सभी जन अंदर दहाड़ मार-मार के रोने लगते हैं.. पूरा गाँव जग जाता हैं.. लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती कि घर का हुड़कु खोल के बाहर आ सके !
नक्सली फलन महतो को गाँव के कुलमुड़वा में ला के उसका सर एक चट्टान में रख कर उसके सर के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर उठा के पटक देते है।
कितनी वीभत्स और निर्मम मौत होगी आप केवल कल्पना कर सकते हो.. मेरी बड़ी माँ की तो उलटी हो गई थी.. मैं एकदम से सिहर गया था.. मेरी माँ और अन्य औरतों के आँखों में आँसू थे।.. पता नहीं फलन महतो का परिवार उस घड़ी को कैसे झेल पाया होगा, जब वो बेरहमी से कुचले हुए सिर के समीप गए होंगे..  हम तो उस स्तिथि की मात्र कल्पना भर से ही हमारी रूँह काँप उठती है।
उस घटना के बाद से कोई भी उस एरिया में आत्म-समर्पण का मामला नहीं सुना।
जहाँ नक्सलियों को गरीबों सताये हुए लोगों की आवाज माना जाता हैं, वहीँ इसका दूसरा चेहरा ये भी है.. आपका उस दलदल में तो जाना बहुत ही आसान है, लेकिन निकलना बहुत ही मुश्किल.. मुख्य-धारा में कोई आना भी चाहता है तो उसे फलन महतो जैसा मौत प्राप्त होता हैं।
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गंगा महतो
खोपोली

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