Friday, January 6, 2017

||जे महिषासुर||

आज से तीन हज़ार साल बाद ..
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दुनिया बहुत बदल चुकी है.. टेक्नोलॉजी अपने चरम पे है.. इन तीन हज़ार साल के दौरान कितनी ही सभ्यताएं आई और गई.. कितनी ही जातियां-प्रजातियां विलुप्त हुई और नई बनी.. एक नई पहचान के साथ खुद को ढाला.. तो कुछ ऐसे भी हैं जो अपने को अभी तक उसी हालत में रखा है जैसा कि तीन हज़ार साल पहले थे.. लेकिन संख्या में बहुत कम है.. कारण कि इन्होंने बदलती दुनिया और धर्म के साथ सामन्जस्य नहीं बिठाया.. लेकिन फिर भी अपने अस्तित्व को जैसे-तैसे बचाये हुए हैं.. अपने पूर्वजों से मिली शिक्षा-दीक्षा को अब तक पकड़े हुए हैं.. हालाँकि ये तीन हज़ार साल पहले बहुत ही सम्पन्न थे.. हर लिहाज़ से.. दुनिया में इनकी तूती बोलती थी.. लोग थर-थर काँपते थे इनके नाम से.. लेकिन समय की मार ने इनके स्वर्णिम काल को आज तीन हज़ार साल बाद विलुप्त के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.. इनके जो निकटतम सगे-सम्बन्धी थे वे ज़माने के साथ अड्जस्ट हो गए और इतने समय अंतराल के बाद अपने इतिहास को विस्मृत कर बैठे.. जो लोग इनके विलुप्त होने के कारक थे उन्हीं के खेमे में ये शामिल हो गए। लेकिन जो मूल से जुड़े रहे उन्हें मुख्य धारा में आने नहीं दिया गया.. मज़बूरन ये लोग शहरों से जंगलों की ओर पलायन कर गए.. लेकिन जैसे-जैसे दुनिया दिनों-दिन छोटी होती गई वैसे-वैसे ये जंगल वासी मुख्य धारा में आने लगे.. इन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर मिलने लगा.. यूनिवर्सटियों में इन्हें दाखिला मिलने लगा.. तो ये फिर से अपने मूल को ढूँढ़ने लगे.. वर्तमान में उपलब्ध तमाम साहित्य और इतिहास को खंगालने लगे.. और अपने पूर्वजों का जोर शोर से महिमामण्डन करने लगे.. और उन्हीं पूर्वजों में से सबसे परम प्रतापी विश्व ख्याति प्राप्त जिससे सारी दुनिया खौफ खाती थी उसकी महिमा गाये जाने लगी.. इस वक़्त तक इस प्रतापी पुरुष की मेजोरिटी द्वारा सार्वजनिक तौर पे बहुत ही मज़म्मत की जाती थी.. लानत भेजी जाती थी.. सार्वजनिक जगहों पे इसके पुतले बना के लोग उसके ऊपर गोलियों की बौछार करते थे फिर उसको जला डालते थे.. और ये प्रत्येक साल होता था.. ये कार्यक्रम एक बहुत बड़े उत्सव के तौर पे मनाया जाता था.. इतना बड़ा कि इस दौरान सारे सरकारी उपक्रम बन्द होते थे.. मने नेशनल हॉलीडे।.. लेकिन इनके बचे खुचे लोगों ने अपने नायक को फिर से जगाना शुरू कर दिया .. मेजोरिटी समाज द्वारा की जा रही कार्यक्रमों का विरोध करने लगे.. इनके इस काम में अब इनके जो भाई बिछुड़ गए थे और धोखे से मेजोरिटी वाले खेमे में चले गए थे वे भी इनके पक्ष में खुल के आने लगे.. और इनकी आवाज बनने लगे.. चूँकि ये मेजोरिटी के हिस्सा थे तो इनकी हैसियत अच्छी-खासी थी.. बौद्धिक तौर पे भी और सामर्थ्य के तौर पे भी। .. तो ये अपने नायक का इतिहास खोदन चालु कर दिए.. और जैसे-जैसे इतिहास पता चलता गया.. वैसे-वैसे ये अपने नायक की पूजा करने लगे.. और इनकी शुरुआत अपने शीर्ष के यूनिवर्सिटी से किये.. और ये यूनिवर्सिटी थी “इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ़ बग़दाद”.
और इन सब का नायक था ‘अबु बकर अल बग़दादी’. जी हाँ बगदादी.. ISIS का संस्थापक और सरगना।
इनके कबीले के लोग शुरुआती दिनों में ISISian कहलाते थे फिर कालान्तर में ये ISian हुए.. और फिर तब से लेकर आज तक ये ‘आइसियन’ ही रहे.. आइसियन की तूती बोलती थी दुनिया में.. हर कोई आइसियन का नाम सुनते ही थरथराने लगता था.. हलक सुख जाती थी.. इनका इलाका इराक,सीरिया और टर्की व अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिस्से हुआ करते थे..  लेकिन इनके सरगना के मरते ही ये अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगे.. जिन शहरों पे ये राज करते थे इन शहरों से इन्हें खदेड़ दिया गया और इन्हें टिगरिस नदी के किनारे मोसुल इलाके के घने जंगलों की ओर जाने को मज़बूर कर दिया गया। ये अपनी बनी बनाई शहरों को छोड़कर जंगलों में बस गए लेकिन अपनी अस्मिता याने ‘आइसियनपन’ के साथ समझौता नहीं किये।.. आज भले ही वो अपने अस्तित्व को ले के जूझ रहे है लेकिन उन्हें गर्व है कि उन्होंने अपना आइसियनपन को ज़िंदा रखा है..  और आज तो आलम ये है कि इनके बिछड़े भाई भी इनका खूब साथ देने लगे है.. शहरों से इनके पढ़े-लिखे इंटेलेक्चुअल्स इनके जंगल जा रहे है और जानकारी इकट्ठा कर रहे है.. और बड़ी-बड़ी मैगज़ीनें उनके नाम से छपी जा रही है.. दुनिया के जिस भी इलाके से उसकी कोई जानकारी मिलती है तो तुरंत अपडेट करते है और मेजोरिटी समाज को गरियाते हुए अपने नायक का गुणगान करते है।
एक बहुत बड़ी पत्रिका लिखती है कि..
“आज जहाँ पुरे विश्व में और विशेष कर इराक और सीरिया में आइसियन अबु बकर अल बगदादी का पुतला गोलीमार होता है और जश्न मनाया जाता है और उसको मारने वाले को पूजा जाता है वहीँ कुछ ऐसे भी समाज है जहाँ इनको पूजा जाता है और इनका शहादत दिवस मनाया जाता है।..  अभी हम टिगरिस नदी के किनारे बसे मोसुल इलाके के जंगल वाले हिस्से में है.. यहाँ के लोग बगदादी को अपना पूर्वज मानते हैं और उनके शहीदी के दिन को मातम के रूप में मनाते हैं। हमारे साथ आइसियन समाज के अल-बल-हर-बकर-बगदादी आइसियन है जो आज हर जगह अपनी बात मज़बूती से रख रहे है... आइये इनसे बात करते है..
“ज़नाब अल-बल-हर-बकर-बगदादी जी बताइये कि आइसियन कौन हैं और अबु बकर अल बगदादी कौन थे?”
“आइसियन एक बहादुर और लड़ाका समुदाय था.. जिसमें विश्व भर के बेहतरीन लड़ाके थे.. दूर दराज के मुल्क से IS में भर्ती होने के लिए लोग आते थे.. हम दुनिया में डोमिनेंट होती अमेरिकी हुक़ूमत के विरुद्ध खड़े हुए थे... और उनके खिलाफ जम के लड़े थे... हमारा नायक ज़नाब अबु बकर अल बगदादी था.. उनके कुशल नेतृत्व में हमने सामंतवादी अमेरिकी शक्तियों के खिलाफ जम के लड़ाई लड़ी थी... हमारी हुक़ूमत पुरे इराक और सीरिया में चलती थी.. हमारा बगदादी बहुत ही न्यायप्रिय और मानवतावादी बादशाह था.. हम दुनिया पे राज करने वाले कौम थे… लेकिन बाहरी घुसपैठिये अमेरिकियों ने धोखे और छल से हमारे बादशाह को मार गिराया और हमारी सत्ता को हथिया लिया और हमें आइसियन कह-कह के ज़लील किया जाने लगा और हमें जंगलों की तरफ रुख करने को मज़बूर किया गया।.. हमारे पास उस समय दुनिया की सबसे आधुनिक हथियार थी.. सबसे ट्रेंड सेना थी.. बेहतर टेक्नीशियन, इंजीनियर और डॉक्टर थे.. लेकिन बगदादी के इंतकाल होते ही हमें इन सब चीजों से महरूम होना पड़ा।
“अच्छा ये बगदादी के मृत्यु के ऊपर जो उत्सव होते है उसपे आपके क्या विचार हैं?”
“ये सरासर गलत है और नाजायज है.. किसी के शहीदी के ऊपर जश्न और उत्सव मानना किसी भी तरीके से उचित नहीं है.. कोई भी सभ्य समाज इस तरह का उत्सव नहीं मना सकता... हम इसकी मज़्ज़्मत करते है.. हम आइसियन समाज इस दिन को मातम के तौर पे मनाते है… और हमारी माँग है कि इस उत्सव को मनाना बन्द किया जाय।“
“तो ये थे अल-बल-हर-बकर बगदादी! … जिनका साफ़ कहना है कि हम आइसियन हैं और बगदादी हमारे पूर्वज थे.. और उनके मृत्यु के ऊपर किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं मनाना जाना चाहिए।“

बाहरी घुसपैठिये सामंतवादी अमेरिकियों ने धोखे से हमारे न्यायप्रिय बादशाह का क़त्ल करवाया और हमारी जल,जंगल,ज़मीन और सत्ता छीनी.. और हमें लगातार शोषण किया गया.. हमारे शांतिप्रिय,न्यायप्रिय और मानवता के रक्षक बादशाह को बहुत ही क्रूर और पापी बना के दुनिया के सामने प्रदर्शित किया गया और उनके शहादत को ये बाहरी अमेरिकी उत्सव के तौर पे मनाने लगे.. लेकिन अब हम मूलनिवासी बहुत सह लिए.. बहुत कर लिया हमारे मूलनिवासी परम प्रतापी बादशाहों का अपमान.. अब और नहीं चलेगा.. सारे बाहरियों को मार-मार के अमेरिका भेज देंगे।
उस वक़त जितनी भी मीडिया थी सब के सब अमेरिकियों के कब्ज़े में थी.. सो उन्होंने हमारे मानवतावादी बादशाह बगदादी को अपने मनमाने तरीके से और अपने फायदे के लिए विलेन और क्रूर बना के पेश किया.. उनको नकारात्मक बना के उसपे ढेरों बुक्स और फिल्में बनाई… लेकिन ये सिर्फ इनलोगों का प्रोपेगेंडा था.. और ये प्रोपेगेंडा भला कितना दिन चलना था! .. एक न एक दिन तो सब बाहर आना ही था.. और जैसे-जैसे हम मूलनिवासी आइसियन पढ़-लिख रहे हैं इनके प्रोपेगेंडा की परतें दिन प्रतिदिन खुलती जा रही है।
अभी कुछ दिन पहले भारत की उस समय की मशहूर अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की एक प्रतिलिपि मिली है जिसमें साफ़ लिखा गया है कि ISIS के लोग बहुत ही भले और अच्छे लोग थे। जब हमारे मानवतावादी बादशाह बगदादी बाहरी आतताइयों अमेरिकियों के खिलाफ युद्ध लड़ रहे थे तब यहाँ नौकरी के सिलसिले में भारत से आई औरतों को सकुशल उनके मुल्क वापिस भेजा गया था. . और तब उन औरतों ने कहा था कि जैसी छवि ISIS की बनाई और दिखाई जा रही है.. वैसा बिल्कुल भी नहीं है.. वे बहुत ही नेकदिल और अच्छे इंसान हैं.. हमारे खाने पीने से लेकर ट्रांसपोर्ट तक का खूब ख्याल रखा गया था।“

हमारे बादशाह कोई ज़ाहिल इंसान नहीं थे.. वो उस टाइम के Ph.D होल्डर थे। .. और हम आइसियन लोग इतने ही बुरे थे तो दुनिया भर से लोग क्यों आते भला हमें ज्वाइन करने.. और हमारी लड़ाई का हिस्सा बनने! फ़्रांस,इटली,ग्रीस,अमेरिका,ब्रिटेन,आस्ट्रेलिया,भारत,म्यांमार,चाइना जैसे गैर इस्लामिक मुल्कों से लड़ाके आते थे हमारा साथ देने.. क्यों आते थे?...क्योंकि हम सच के साथ थे.. हम बुराई के खिलाफ लड़ रहे थे.. मानवता के दुश्मनों से लड़ रहे थे.. लड़कों को तो छोड़िये लड़ाकन भी कितनी आती थी.. दुनिया के तमाम हिस्सों से स्वेच्छा से लड़कियां हमारे मानवतावादी बादशाह का जुल्म के खिलाफ जंग में साथ देने आती थी.. ज़वान औरत,  मर्द और बूढ़ों को तो छोड़िये बच्चे भी खूब शरीक होते थे… और ये सब हम अपने से नहीं बोल रहे.. ये सभी इतिहास में अंकित है.. उन्हीं की किताबों, अख़बारों, पत्रिकाओं और कैसेटों में अंकित हैं.. लेकिन चूँकि सब कुछ उन्हीं के अंडरकण्ट्रोल में थी तो सबने हमारे मानवतावादी बादशाह को मानवता का दुश्मन बना के प्रोजेक्ट किया.. लेकिन अब हम उन्हीं के चीजों से अपने नायक को जगा रहे है.. उनके असल रूप को हम दुनिया के सामने ला रहे है जिसे एक साजिश के तहत नकारात्मक बना के पेश किया गया है।

जिनके एक आह्वान पे दुनिया भर से बच्चे,बूढें,ज़वान और औरतें अपना सब कुछ छोड़ छाड़ के बादशाह का साथ देने आ सकते हैं, तो क्या भला वो इतना क्रूर और पापी हो सकता है!..  आप समझ सकते है कि हमारा बादशाह कितना न्यायप्रिय और मानवतावादी रहा होगा, जिसे कि जान बुझ कर हैवान और शैतान बना कर पेश किया गया।

अब इन बाहरी प्रोपेगेंडावीर अमेरिकियों के दिन लदे.. अब हम मूलनिवासी आइसिनों के दिन शुरू.. अब हम जगना शुरू कर दिए है... सब अपना-अपना झोला झप्पट्टा पकड़ो और सीधा अमेरिका की फ्लाइट पकड़ो।

जे आइसियन बगदादी बाबा!

# जे महिषासुर का पोस्टमार्टम बाय गंगवा #
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मूलनिवासी गंगवा
खोपोली वाला 😊😊

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