||जियोग्राफी वाली प्रेमिका को लभ लेटर||
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मेरी प्रिय सुंदर वन की डेल्टा
किलीमंजारो रीना. 💓💗💝💘
सूरज उत्तरायण में था, मौसम में तबदीली होने लगी थी, समुद्रीय क्षेत्र में उच्च दाब का क्षेत्र बन रहा था, महासागरीय हवाएँ स्थल की ओर चलने लगी थी और इन्हीं हवाओं के संग मैंने बाबा जुकरबर्ग की कृति फेसबुक के माध्यम से आपको फ्रेंड रिकवेस्ट भेजा था. ये ‘दक्षिण-पश्चिम ग्रीष्मकालीन’ मानसून हवाएँ जब आपके मैदानी इलाकों में संघनित हो झमाझम बारिश कराने लगी थी तब आपने हमारा फ्रेंड रिकवेस्ट एक्सेप्ट किया था।.. और जैसे ही आपका hi का मेसेज आया था तो मैं एक छोटे से बादल फटने के साथ-साथ भूकम्प से गुजरा था जिसका रिक्टर स्केल पैमाना 9.7 था।.. फिर मैंने अपने आप को जैसे तैसे सम्भाला था और आपको रिप्लाई देना शुरू किया था।.. और फिर मानसून भर कड़कती बिजलियों के बीच, बादलों की गड़गड़ाहट के बीच,बारिश की झंझावतों के बीच,अलग-अलग वायुमण्डलीय दाबों के बीच फेसबुक के मेसेंजर से होते हुए व्हाटसएप और फोन तक पहुँचा था। और इसी क्रम में पता चला कि आप भूगोल में Ph.D कर रही है।.. तो मेरा टेक्निकल मिस्त्री दिल विभिन्न वायुमण्डलीय दाब को झेलता हुआ उष्ण, उपोष्ण,समशीतोष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों से गुजरने लगा था.. जज्बातें दिल की ज्वालामुखी से दहकती लावा की भाँति निकल रही थी.. मिलने की तड़प ऐसी जैसे उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर बहने को व्याकुल ‘ध्रुवीय पवनें’।.. खैर पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई 1610 किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ़्तार से घूमती रही और जब आपके दिल का सूरज दक्षिणायन हुआ तो आपने मुझे मिलने के लिए बुलाया.. मैं मारे ख़ुशी के अरब सागर की आद्रिय हवाओं को हृदय में समेट कर आपके पठारी इलाकों की ओर ‘कैटरीना’ की भाँति कूच किया था । .. और आपके हृदय के निम्न दाब क्षेत्र में पहुँचते ही शीतलता पा संघनित हो सैलाब में परिवर्तित हो गया था, और उसी सैलाब में हम दोनों ने दिल के नाव बना के छोड़े थे जो दशम फॉल में जा के गिरा था।.. आपकी सौंदर्य की प्रशांत महासागर में मैं बेकार में ही गहराई थामने का असमर्थ प्रयास कर रहा था।..
“देखा जो हुस्न आपका, तबियत भूकम्पीय हो गई
आँखों का था कुसूर और ज्वार-भाटा दिल में चल गई”.
आभा मण्डल ऐसे जैसे सौर मण्डल.. आँखों की गहराई ऐसे जैसे पूरा कैस्पियन झील समा जाय.. आँखों के बीचों बीच घना काला फिर मध्यम काला और फिर उसके बाद सफेद ऐसे लग रहा था जैसे पृथ्वी की सियाल, सीमा और नीफे की परतें.. आँख के भौ ऐसे जैसे एण्डीज की पर्वतमाला, गाल ऐसे जैसे सबाना के घास के मैदान, गाल के डिम्पल ऐसे जैसे समुन्दर में चक्रवात, ललाट ऐसे जैसे सहारा का रेगिस्तान, कानों की बालियां ऐसे जैसे पृथ्वी की परिक्रमा वृत्त, नाक ऐसे जैसे सार्वभौमिक विशाल प्लेट-विवर्तनिक शक्तियों के कारण उत्पन्न हुई हिमालय.. होंठ ऐसे जैसे भ्रंशन से बनी ब्लॉक पर्वत और रिफ्ट घाटी.. बाल रेशमी ऐसे जैसे असम के चाय के बगान, लम्बी ऐसी जैसे नील नदी और घनी ऐसी जैसे उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन.. तुम्हारे बालों का एक लट माथे से होती हुई गाल को पार करती हुई और होंठ को छूती हुए दूसरे गाल में ऐसे टच हो रही है जैसे उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर जाती देशान्तर रेखा और लग ऐसे रही है जैसे भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती हुई स्वेज नहर.. और उसको अपने नाज़ुक हाथों से उठा के अपने कान के नीचू ऐसे रखती हो जैसे अमेजॉन नदी को उठा के हिमालय की तराई में पटक दे रही हो.. दाँत ऐसी चमकीली जैसे ध्रुवीय प्रदेशों के बर्फाच्छादित क्षेत्र.. बोली ऐसी मीठी कि जैसे सुपीरियर झील का पानी। और मीठी बोली मेरे दिल को ऐसे चिरती और छेदती जैसे क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन ओजोन लेयर को.. . गुस्से से गाल ऐसे लाल होते जैसे सुवाड़वाग्नि से गर्म होती लाल सागर। चाल ऐसी जैसे पछुआ पवन और तपिश ऐसी कि किसी को भी लव का लू लग जाय।.. नीली ड्रेस और सफेद चुनरी में ऐसे लगती हो जैसे अंतरिक्ष से खींचा गया पृथ्वी का फोटो।
बस यही लगता है कि तुमको सामने बिठा के पूरा ब्रह्माण्ड और भूगोल पढ़ता रहूँ… दो घण्टे की जुदाई भी ऐसे लगती है जैसे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में बिताये गए दो दिन और दो रात।… अब हम उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में नहीं रहना चाहते, जल्दी से 0 डिग्री अक्षांश विषुवत रेखा की ओर शिफ्ट होना चाहते है।
बस तुम अपने बड़े भाई ‘दीर्घ ज्वार’, छोटे भाई ‘सक्रिय ज्वालामुखी’ और बापू ‘आग्नेय चट्टान’ को कण्ट्रोल में रखने की कोशिश करना और मुझपर हमेशा प्यार की ‘कपासी मेघ’ की बारिश करवाती रहना।
बस जल्दी से अपना Ph.D पूरा करो और डॉक्टर बनो (हम अपनी दादी और नानी का इलाज करवाने तुम्हारे ही पास लाएंगे) और हमारे जीवन की ‘ज्वार-भाटा’ बनो।
अब जब ये खत लिख रहा हूँ तो रात हो गई है, ‘स्थलीय समीर’ बह रही है.. और इन्हीं के हाथों मैं ये खत पोस्ट कर रहा हूँ.. तुम अपना ज़वाब ‘समुद्रीय समीर’ के हाथों भिजवा देना।
बस अब और क्या लिखूँ ..
“आये हो मेरी ज़िन्दगी में ‘मौसम’ बनकर,
अब बस यूँ ही रह जाओ ‘जलवायु’ बनकर’'.।।
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लभ जू किलीमंजारो 💘💘
तुम्हारा टॉर्नेडो
गंगवा। :)
Friday, January 6, 2017
||जियोग्राफी वाली प्रेमिका को लभ लेटर||
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