हमारे साइड एक बहुत बड़े महतो हुआ करते थे.. नाम अकलु महतो.. एक सौ छो बीघा जमीन.. बड़का-बड़का बाँध.. सात गो भैंस, आठ गो गाय, दू जोड़ी काड़ा आर दू जोड़ी बैल। .. मने एकदम जिसको सही मायने में महतो बोला जाय वो महतो!
अकलु महतो की एक खासियत थी जो कि बड़ी प्रसिद्ध थी.. और वो चीज थी उसके पैर के बूढ़ा अँगूठा के नोख(नाख़ून) ! .. बड़े ही ठोस ,जानदार और शानदार.. काटे नहीं कटता था.. कितने ही नरहैनी भोथर हो जाते थे उसको काटने में लेकिन वे कटते ही नहीं थे! ... जब बहुतों ने उसके नाख़ून को काटने में हार मान लिए तो धीरे-धीरे उन्हें अपने नाख़ून पे गुमान होने लगा.. वह जब भी अपने नाख़ून को देखता तो उन्हें एक अजीब सी गर्व की अनुभूति होती.. बोलता 'मेरे नाख़ून मुझे फकर है तुमपे रे .. मान लिया तुमको.. साला बड़का-बड़का चोख नरहैनी आर छुरी नहीं काट सका तुमको.. फकर है तुमपे रे .. फकर है!!"
इसी फकर में तैश आकर अकलु महतो ने घोषणा कर दी कि, "जो भी मेरे पैर के अँगूठे का नोख काट देगा उसके नाम हम आधी सम्पति लिख देंगे!!"
घोषणा सुन के बहुत दूर-दराज के लोग-बाग आये उसका नाख़ून काटने अपने-अपने तीक्ष्ण और धारदार औजारों के साथ.... लेकिन सब नाकाम! .. नाख़ून को कोई काट नहीं सका!
अब तो उसके नाख़ून की चर्चा हर जगह होने लगी.. 'यार मानना पड़ेगा.. अकलु महतो का नाख़ून है भाई.. साला कोई नहीं काट सका!"
अकलु महतो को भी जहाँ भी मौका मिलता भांजने का वहाँ वो अपनी नाख़ून की बात छेड़ देता!
लोग उसके नाम की कहावत भी कहने लगे.. "नाख़ून हो तो अकलु महतो जैसी!, हाँ बे हम जानते है कि तुम्हारा नोख अकलु महतो जैसा है!!" .. ऐसे-ऐसे कहावत।
एक दूर गाँव के नउवा(नाई) ने उसके नाख़ून की चर्चा सुनी.. वो ठान लिया कि मैं इसकी नाख़ून को काट के रहूँगा! .. वह अकलु महतो के गाँव आया और पता किया कि महतो जी भैंस-काड़ा धोने तालाब कब जाते है !.. टाइमिंग मालुम कर लिया!
फिर एक दिन अपने नरहैनी के साथ उस बाँध में पहुँच गया जहाँ महतो जी अपने काड़ा और भैंस धो रहे थे.. बाँध के मेढ़ से ही राम-राम किये और उन्हें बातों में उलझाये रखा.. सातों भैंस धोने के बाद नउवा नेअपने आने का उद्देश्य बताया.. तो महतो जी ने बोला कि भाई रुक जाओ,चार काड़ा धोना और बाकी है इसको धोने के बाद आते हैं ऊपर... नउवा बोला "अरे महतो जी जल्दी कीजिये मुझे जाना है एक जगह!"
"अरे रुक जाओ न भाई.. क्या हड़बड़ी है.. ई बचल काड़ा धो के आते है!"।
"अरे नहीं जल्दी आइये.. मुझे बहुत अर्जेंट काम है.. समझिये न महतो जी!"
"अच्छा रुको.. ई काड़ा को धोने दो उसके बाद आते है।"
काड़ा धो के अकलु महतो मेढ़ पे आता है और नाख़ून काटने को बोलता है.. नउवा अपना नरहैनी निकालता है नाख़ून एकदम मक्खन की तरह कचकचा के काट डालता है! .. एक मिनट भी नहीं लगा और महतो जी का नाख़ून साफ़! .. महतो जी अवाक !! .. कुछो समझे में नहीं आ रहा था.. कि साला ई हुआ तो क्या हुआ..कैसे हुआ !! ... नउवा अपना नरहैनी लपेटा और जाते-जाते बोलते हुए जाने लगा "महतो जी अपनी जमीन-जायदाद और प्रॉपर्टी के कागज तैयार रखना हम कल आधा लेने के लिए आ रहे है!!"
महतो जी वैसे ही अवाक आश्चर्यचकित हो मेढ़ पे ही बैठे रहे. दिमाग कुछो कामे नहीं कर रहा था उसका.. कभी जाते हुए नउवा को देखता, तो कभी अपनी भैंस को तो कभी अपने कटे हुए नाख़ून को!!!
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तो क्या हुआ कि एक देस में बहुत सारे ईमानदार थे जो कि अपनी ईमानदारी का नगाड़ा पुरे झाल-मजीरा के साथ पीटते थे.. छाती ठोक-ठोक के बोलते थे कि हम ईमानदार.. हम ईमानदार.. हम ईमानदार.. तुम्हारे पास सब हथियार है, औजार हैं, अगर हिम्मत है तो हमारी ईमानदारी को काट के दिखाओ..। हर जगह अपनी ईमानदारी का डींग हाँकते और चुनौती देते कि हमारी ईमानदारी को काट के बताओ.. काट के बताओ।। ..
एक दूर देस के बनिया ने इसकी ईमानदारी के चर्चे बड़े सुने.. उन्होंने इनकी ईमानदारी को काटने की ठानी..फिर उन्होंने सारी भैंसों के धोवे जाने तक का इंतज़ार किया.. फिर अपना नरहैनी निकाला और उसके ईमानदारी के नाख़ून को कचाकच काट डाला और निकल लिए!
वो ईमानदारों का समूह मेढ़ में बैठ के कभी अपना कटा हुआ ईमानदार नाख़ून देखते हैं, तो कभी उस बनिये को देखते हैं.. तो कभी ईमानदारी की कमाई से जमाई हुई सम्पति को!! .. और हताश में अल-बल कुछ भी बके जा रहे हैं!!.
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गंगवा
खोपोली से। ☺😊
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