माँझी-द माउंटेन मेन.. मेरे सबसे बेहतरीन सिनेमा में से एक.. बीसों बार देख चूका हूँ.. जब भी देखता हूँ तो लगता है कि पहली बार देख रहा हूँ.. गज़ब की सिनेमा और गज़ब का अभिनय.. दृश्य ऐसे कि आँख से आँसू बरबस ही छलक आये।.. हँसाती-गुदगुदाती और जीवन के कठोर सत्य से परिचित कराती ‘माँझी’।
इनके बहुत सारे दृश्यों में एक दृश्य मुझे बार-बार देखने को मज़बूर कर जाती है.. मैं वहाँ वीडियो पाउज करता हूँ और रिवर्स कर फिर से देखता हूँ… दशरथ माँझी जब इंदिरा गाँधी के चुनावी रैली में उनसे भेंट करने जाता है.. और इंदिरा गाँधी जब स्टेज पे होती है और स्टेज का बाँस टूटने को आता है तो किस तरह दशरथ माँझी भागकर बाँस को कंधे से सहारा देता है.. और स्टेज को गिरने से संभालता है.. इस वक़्त नवाज़ की अभिनय देखिये.. मैं बस इस सीन पे पाउज करता हूँ फिर स्टेज टूटने से पहले तक में बैक करता हूँ फिर प्ले करता हूँ.. फिर देखता हूँ.. कंधे से स्टेज को सहारा दिए दशरथ को देखता हूँ.. उसकी पीड़ा को देखता हूँ.. देख के ऐसा लगता कि देखो कैसे दशरथ के कंधे के ऊपर भारत खड़ा है!.. स्टेज के ऊपर भाषण देती इंदिरा गाँधी और तालियों की गड़गड़ाहट से उसका इश्तकबाल करती जनता.. और इधर स्टेज के नीचे स्टेज को सहारा दिए दशरथ माँझी.. ऊपर क्या भाषण चल रहा लोग क्यों ताली बजा रहे कोई मतलब नहीं.. ये तो बस बाँस पकड़े खड़े है।.. भाषण खत्म होने का इंतज़ार कर रहे है और उनसे भेंट कर अपनी बात रखने का।..
इसके बाद बस सिनेमा।
सिनेमा का ये दृश्य आँखों के सामने बरबस ही आया जब यहीं फेसबुक में ही एक मित्र के वाल में एक वीडियो देखा.. वो मित्र पढ़ रहे होंगे तो पता चल जाएगा।..
वीडियो एक रैली की थी.. बहुत सारी भीड़ थी.. बड़े-बड़े बैनर,झंडे,पट्टे,बैच,टोपी,लाऊडस्पीकर,बॉक्स वगेरह-वगेरह.. सबसे आगे-आगे 7-8 गो पुलिस फिर उनके पीछे सवा पाँच किलो के गेंदा के फूल का माला पहने जबरदस्त इस्माइल के साथ हाथ हिलाते नेता जी.. और उनके अगल बगल वाले सवा किलो का माला पहने हुए रोड मार्च कर रहे हैं.. इनके पीछे पुरुषों का हुजूम..,हुजूम के पीछे ढाक-ढोल-ढांसा के साथ झूमर पार्टी.. फिर उनके पीछे बैनर पकड़ी महिलाएं फिर उनके पीछे दो लाइनों में एक पार्टी का झंडा पकड़ी और टोपी पहनी महिलाओं की लम्बी लाइन.. इनकी लाइन के बीचों-बीच में भयंकर चोंगा और सोड़-बॉक्स से लदी टेकर गाड़ी और लाइन के बीचो-बीच में कोड-लेस माइक पकड़े एनोन्सकर्ता जो मुँह में रजनीगन्धा तुबे ओजस्वी आवाज में फलेन्दर महतो जिंदाबाद-जिन्दाबाद के नारे लगा रहा है व कुछ स्लोगन बोल रहा है.. कुछ दुरी बाद एक चाचा जी फूल महुआ टाइट सर पर गमछा बाँधे माइकल जैक्सन जैसी डांस-स्टेप और नाना पाटेकर जैसी आवाज के साथ के ‘फलेन्दर महतो…. जिंदाबाद-जिंदाबाद!” का उदघोष कर रहा है। .. महिलाओं के लाइन के पीछे बाइक-सवार लोग.. ज्यादातर किशोर उम्र के लड़के.. मुँह में गुटखा पेचड़ते और पार्टी के एक झंडे को बाइक के अगली पहिये के शोकअप से बांधे हुए और एक झंडे को मोड़कर कर टाई का रूप दे कर गले से लटकाये हुए तो कुछ कलाई में बाँधे हुए बीच-बचार टाटा-मैजिक में बज रहे खोरठा गाना के साथ ये बाइक सवार लौंडे पी-पो करते बाइक के ऊपर से ही कमरिया लचकाते और थूंकते आगे बढ़ रहे हैं।..
उफ़्फ़.. रैली कुछ ज्यादा हो गई क्या? ..
अब ये रैली आगे तो बढ़ रही थी.. और मैं वीडियो देख रहा था.. लेकिन माउंटेन मैन सनीमा की तरह मेरी नज़र अटक गई महिलाओं की लाइन पर.. एनोन्सकर्ता के ‘फलेन्दर महतो…’ के उदघोष करते ही महिलाओं द्वारा ‘जिंदाबाद-जिंदाबाद..’ की ज़वाब के साथ नारे लगाती और आगे बढ़ती इनकी लाइन।.. मेरी नज़र ठिठक गई इन महिलाओं के ऊपर.. जिंदाबाद-जिंदाबाद का नारा लगा रही महिलाओं के ऊपर.. इनके चेहरों को बड़े गौर से देखने लगा.. इन्हें पढ़ने की कोशिश करने लगा.. जिंदाबाद-जिंदाबाद जब सब एक साथ बोलती हैं तो लगता है कि कोई गीत गा रही हैं.. इनके चेहरों को देखता हूँ फिर सोचने लगता हूँ कि ये नारे क्यों लगा रही हैं?.. क्या इनका इन नारों से कुछ वास्ता हैं? .. पार्टी का टोपी पहने और हाथ में झंडा थामी क्या इन्हें पता है कि ये क्यों इसे पहनी और पकड़ी हुई हैं?.. ऐसी महिलाएं ज्यादातर हैं जो हरेक जिंदाबाद कहने के बाद शरमाकर हँसती हुई लुगा के घुगा से अपना चेहरा ढँक लेती हैं!.. कोई कोरा में बच्चा लिए,हाथ में झोला पकड़े तो कोई घुगा को संभालती हुई आगे बढ़ रही हैं.. इन्हें बस यही पता कि ये कोई रैली है और वे इस भीड़ की हिस्सा मात्र.. जिसका रैली के उद्देश्य से कोई लेना-देना नहीं.. बस शामिल है तो शामिल है।..
सब कोई एक बड़का मैदान में जमा होते हैं..वहाँ शानदार स्टेज सजी होती है.. लोड़िसपीकर और चोंगा गनगना रहे होते हैं.. सब महिलाएं पालथी मार कर बैठ जाती हैं हाथ में झंडा पकड़े.. कुछ देर में मैन नेता जी और उसके सुपुत्र जो कि कर्मठ,शिक्षित और जुझारू युवा नेता है अपने 10-12 स्कार्पियो और बोलेरो के काफिले के साथ मैदान में एंट्री मारते है।.. एंट्री मारते ही एनोन्सकर्ता इत्ती जोश-खरोश के साथ ‘ढिकेंद्र प्रसाद’ जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगाता है कि उसका चबाया हुआ रजनीगन्धा का चूरन जबड़ों से बाहर आ होंठों को सुशोभित करने लगता हैं.. महिलाएं तो बस किसी नाम सुनना है नहीं कि उनके मुखारबिंद से जिंदाबाद-जिंदाबाद स्वतः ही प्रस्फुटित होने लगते हैं।..
नेता जी स्टेज पे आते है और भाषण शुरू होता है.. महिलाएं अजीबोगरीब तरीके से नेता का मुँह ताकती हैं.. घुगा संभालती और ठुड्डी से हाथ सटाये.. बड़े शांतचित हो के नेता जी का भाषण सुनती हैं.. नेता जी कभी-कभी उग्र हो जाते तो महिलाओं पे कुछ ख़ास असर नहीं लेकिन नेता जी के चेलों-चमाटों द्वारा तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ढिकेंद्र परसाद जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगाते ही महिलाएं हरक़त में आ जाती हैं और हाथ उठाकर जिंदाबाद-जिंदाबाद करने लगती हैं। … माइकाधीन नेता जी फुफकारते हुए सरकार को चेताते है और हाथ उठाते हुए ‘ढिकाना सरकार’.. बोलता है तो सारी महिलाएं ‘जिंदाबाद-जिंदाबाद’ का नारा लगा देती हैं.. नेताजी और पुरुष लोग हैरान-परेशान.. ये क्या बोल दी हमारी माताएं-बहनें?!.. चोलेसर महतो आता है और बोलता है.. “आंय गो.. तोहनी तनी सुइन लेबा ने कि जिंदाबाद बोले के लगय ने मुर्दाबाद!!.. तोहनी केकरो नाम सुना न है कि जिंदाबाद-जिंदाबाद करे ला शुरू केर देहा!”
एक माता जी,”सेटा हमनी के की मालुम गो चोलेसरा!!.. तोहनी बतेबे नाय करला कि केकरा मुर्दाबाद बोलो हथीन आर केकरा जिंदाबाद से.. हमनी के तो बस जिंदेबाईद आवो है।“
“अच्छा छोड़ा.. अब से जेटा हम बोलबो ने सेटा तोहनी दोहरिहा.. ठीक!”
अब नेताजी के सुपुत्र युवा नेता जी आते है और गरीबी-शोषण-जुल्म-शिक्षा के ऊपर खूब भाषण झाड़ते है और खूब तालियां बटोरते हैं.. चोलेसरा के द्वारा कहने पे ताली पीटती महिलाओं का ताली सुनकर युवा नेता जी और भी जोश और उत्साह से लबालब हो उठते है.. और बोलते है “अगर इसी तरह से हमारी माताओं और बहनों का साथ रहा तो इस क्षेत्र और इस राज्य से गरीबी और अशिक्षा का नामोनिशान मिटा दूँगा।“.. फिर चोलेसरा के इशारे पे महिलाएं खूब ताली बजाती हैं और जिंदाबाद-जिंदाबाद के नारे लगाती हैं।
रैली खत्म,सभा खत्म,मुद्दा खत्म!! ..
सब अपने-अपने घर और अपने-अपने काम में लग जाते हैं…
नेता जी अपनी स्कार्पियो,बोलेरो,दसचकवा,हाईवा,ट्रक,होटल आदि का कारवाँ बढ़ाने लग जाते हैं.. और उनके चेला चमाटी कुंआ,डोभा,श्मशान घाट, सामुदायिक भवन आदि में ठेके के जुगाड़ में।
लेकिन इनकी रैलियों में जो महिलाएं और पुरुष(महिला वर्ग वाले ही) तालियां पीट रहे होते हैं वे क्या करने लग जाते हैं?
कोई चुंवा से पानी ढो रही हैं.. कोई केन्दु पत्ता बेच रही हैं.. कोई सखुआ पत्ता बेच रही हैं.. कोई लकड़ी बेच रही हैं.. कोई मिट्टी लिप रही हैं..हड़िया बना रही हैं.. इनके बच्चे होटलों में काम कर रहे हैं तो स्कूल केवल खिचड़ी खाने जा रहे हैं.. इनके मरद लोग कहीं पी-पा पड़े हुए हैं तो कोई मुम्बई-दिल्ली की सड़कों पे धूल फांक रहे हैं।..
इनके चेहरों को देखिये.. इनको पढ़ने की कोशिश कीजिये.. फिर पता चलेगा कि अपना भारत कहाँ खड़ा है? .. और कितना आगे बढ़ रहा हैं??
काश हमारे सर्वेसर्वा नेतागण और उनके सुपुत्र गण इनकी तालियों की गड़गड़ाहट सुनने के साथ-साथ इनके चेहरों को भी पढ़ पाते!!
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जय हिन्द
गंगवा
खोपोली से।
Saturday, April 8, 2017
||ग्रामीण भारतीय राजनीति और महिलाएं||
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बहुत सुन्दर
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