आज से करीब 17 साल पहले .. सावन का महीना है.. रोपा-डोभा पूरे जोर शोर से चल रहा है.. जीतू महतो के घर कमिया के रूप में खटने वाला सोना माँझी दोपहरिया में हल जोतते वक़्त जोर से एक बैल को मारा तो दोनों बैल मिल के दौड़ दिए.. सोना माँझी बूटा पकड़ के पीछे-पीछे ये सोच के भागे कि कहीं फार न लग जाए किसी बैल को.. जितना हो-हो कहता उतना तेज गति से बैल दौड़ते.. दौड़ते-दौड़ते एक आर(मेढ़) आ गया.. बैल तो एक साथ छलांग लगा के आर को पार कर गए लेकिन बूटा पकड़े सोना माँझी से हल उठाना न हो पाया.. फलस्वरूप हल आर से लग गया.. अब चूँकि बैल स्पीड में थे तो रट्टाक से ‘साँइढ़’ टूट गया और हल और बूटा सोना माँझी के हाथ में रह गया और साँइढ़ के बैल दौड़ लिए.. हल पटक कर किसी तरह सोना माँझी दौड़ के बैलों को कण्ट्रोल में किये।..
जीतू महतो कुल्हिया में बैठ के टुटल हल खातिर नवा साँइढ़ छोल रहे हैं.. सोना माँझी उसकी सहायता कर रहा है उलटाने पलटाने में.. छोल के हल में लगाये तो सोना माँझी बोलता है कि “तनी ढेर ओगार बुझा हो मरदे.. तनी छें कर.. नाय तो जादा हार लागतो!”
फिर जीतू महतो छें करने में लग जाता हैं.. इतने में मंगर भी वहाँ आ जाता है अपना हल ले के..
“ऐ बुबा(दादा) .. तनिक हमरो बुटवा टेट केर दीहो गो .. तनी जोतेय में जुइत नाय लागो है!!”
“अच्छा ठीक हो .. पहले आपन हरवा बनवै दे.. ओकर बाद तोर बुटवा टेट केर दो हियो!”
काम चल ही रहा था कि सामने एक चमचमाती मारुति ओमनी रुकती है... गेट के बाहर जीतू महतो का पुत्र सीताराम महतो निकलता है.. फिर पीछे के गेट से तीन लड़कियां, एक औरत और एक मर्द निकलते हैं.. बड़े-बड़े बैग थे.. सभी सामान निकालने के बाद सीताराम मारुति वाले को भाड़ा देकर विदा करता है.. उनमें से जो औरत और मर्द थे वे आकर जीतू महतो का पैर छुवे.. जीतू महतो आशीर्वाद दिए.. उसके पीछे-पीछे तीनों लड़कियों ने भी प्रणाम किये।
पता चला कि सीताराम का साला जो दिल्ली में रहते हैं, वहाँ उनका अच्छा-खासा बिजनेस है वो अपने परिवार के साथ गाँव घूमने आये हैं.. उनकी तीन बेटियां थी जो वहीँ दिल्ली में ही जन्म ली थी और बहुत कम ही गाँव को आये थे.. मेरे गाँव में पहली बार आई थी.. अब गाँव ऐसा कि न बिजली और न सड़क.. ऊपर से सावन का महीना .. पूरा गल्ली कच-कच.. इसका इज़हार सीताराम के साले की बड़ी बेटी ने कर ही दिया.. “ओह माय गॉड.. दादाजी मेन रोड से यहाँ आने में तो हालत ही खराब हो गए.. इतना तो दिल्ली से पारसनाथ स्टेशन आने में तकलीफ नहीं हुई ट्रेन से जितना वहाँ से यहाँ आने में हुआ!”
तबतक अंदर घर से सीताराम की बीवी भी आ जाती है .. सोना मांझी को बैग उठाने को बोल सबको घर के अंदर ले के जाती हैं। .. जीतू महतो भी जल्दी-जल्दी अपना काम निबटाते है और मेहमाननवाजी में जुट जाते हैं। जीतू महतो बहुत खुश है कि चलो कुछ वक़्त बच्चों के साथ गुजारने को मिलेगा।
अब मेहमान आये हैं तो घर का माहौल ही दूसरा है.. रौनक है.. कोयले का चूल्हा जल उठता है.. चाय पानी बनने लगता है.. सूजी भुजाने लगता है। .. मेहमाननवाजी में कोई कोर-कसर न छुटना चाहिए.. आखिर दिल्ली से इतना दूर यहाँ गाँव में जो आये हैं.. लोग बोकारो और धनबाद में रहे तो गाँव में इतनी इज़्ज़त मिलती है कि क्या कहा जाए और ये तो दिल्ली से आये हैं.. जिसका कि हम सिरफ नाम ही सुने हैं..ऐसा लगता कि जैसे एक अलग दुनिया से ही आये है वे लोग। .. अलग दुनिया के लगते भी थे.. दिल्ली में रह के इतने गोरे!!.. बाबा रे.. ऊपर से बोली भी और पहनावा भी .. सभी के सभी जीन्स और टी-शर्ट्स में थे.. उस टाइम गाँव में लड़कियां इसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। .. शाम को अगल-बगल की महिलाएं सीताराम के घर पहुँची, मेरी बड़ी भाभी भी थी.. सिर्फ इसलिए कि जीन्स में लड़कियां कैसी दिखती है!? .. बड़ा ही कौतुहल सा माहौल.. महिलाएं शर्मा रही है .. भाभी जिरिया माय के कान में बोलती है “हाँ लो.. ईटा कौन पिंधना लगव… ई जिनिस टा.. एकदम से सटल-सटल.. पूरा-पूरा दिख जा है सब.. दिल्ली में सब अइसने पिंधना पिंधो हथीन ने की?!”
“अब की करभी गो.. जइसन देस.. वइसन भेस!! .. हुवा सब अइसने चलेत हतेय.. तो सब अइसने पिंधेत हबथिन!”
“हाँ तो ईटा कौन भेस भेलव गे माय!! .. ई जिनिस.. भक्क्!”
“छोड़ ने गो.. दू-चार दिन खातिर आइल हथीन.. चल जिबथिन!!”
इतने में सीताराम की बीवी आई और सभी आई औरतों को दिल्ली से आई मिठाई बाँटती हैं और विदा करती है। ..
अब शाम हो गए.. बियारी(डिनर) बना.. सब खा-पी के सोने को आये.. इतने दिनों बाद आये थे तो सबका खटिया एक ही जगह लगाया गया.. ताकि देश दुनिया की कुछ बातें हो सके..
अब खटिया में आये कुछ देर हुए ही थे कि मच्छरोँ के झुंड ने हमला कर दिया.. लड़कियां परेशान .. बड़ी वाली बोलती है ..
“दादा जी .. मॉस्किटो क्वायल नहीं है ??”
जीतू महतो “ई का होता है ?”
“कछुआ छाप ??”
“ई का होता है ?”
“अरे दादा जी मच्छर भगाने वाला क्वायल.. जिसको जलाने से मच्छर भाग जाते है.. वो .. बहुत मच्छर काट रहे है दादा जी.. कुछ उपाय कीजिये.. नहीं तो नींद नहीं आएगी हमें।“
जीतू महतो सोना माँझी को आवाज लगाते है.. “अरे सोना.. तनिक हिया आव तो रे!”
सोना मांझी आता है.. जीतू महतो बोलते है .. “अरे सोना.. जा के गरनिमिया के दू-चार गो डार(डाल) तोड़ के ले आओ तो.. बहुत मच्छर लग रहा है।“
सोना माँझी कुछ देर में गरनीम का डाली तोड़ लाता है.. उन डालियों को कमरे के चारों कोनों में लगा दिया जाता है।
उत्सुकतावश छोटी वाली बेटी बोलती है.. “ये क्या है दादा जी?”
“ये गरनीम का पाल्हा है.. इससे मच्छर भाग जाते है!!
लेकिन मच्छर भी कहाँ भागने वाले थे.. दिल्ली के मेहमान का अच्छे से स्वागत कर रहे थे.. बड़की बेटी फिर बोली..
“दादाजी कुछ दूसरा उपाय कीजिये न.. इससे मच्छर कम तो हुए है लेकिन पूरा गए नहीं.. अब भी काट रहे है.. कैसे सोयेंगे दादा जी.. ऐसे काटते रहेंगे तो नींद नहीं आएगी!!”
अबकी फिर से सोना मांझी को बुलाया जाता है.. बोलते है कि “जाओ पुवाल लाओ और उसका धुंवा पुरे में घर में फैलाओ!”
सोना माँझी पुवाल लाता है और जलाता है.. पूरा घर धुंवा-धुंवा.. लड़कियां खांसने लगती हैं.. आँखों से आंसू आने लगते है.. “दादा जी बन्द कीजिये इसको.. मुझे इसके धुंवे से एलर्जी हो रही है.. बन्द कीजिये इसको!!”
धुंवा बन्द कराया जाता है.. फिर जैसे-तैसे पहली रात काटी जाती है। ..
जीतू महतो जहाँ इतने दिनों बाद आये मेहमानों से खुश थे वहीँ रात को हुई तकलीफ से दुखी भी थे.. ‘कहाँ दिल्ली में ई लोग 24 घण्टा बिजली वाला कमरा में रहता है.. पंखा चलता रहता है.. और कहाँ ई बिन बिजली के गाँव.. मच्छर से अलग परसानी!!’
ये सब सोचते-सोचते ही सीताराम से कहते है .. “हाँ रे चंचल बाप.. ई सब केतना दिन का छुट्टी में आया है?”
“एक हफ्ता का छुट्टी है!”
“अच्छा.. लेकिन ई लोग हफ्ता कैसे गुजारेगा यहाँ!? .. गाँव की आदत नहीं है ई सब को.. कल केतना मुश्किल से रात काटा है… नहीं .. ई लोग पहुना छौवा सब है.. तकलीफ नहीं चाहिए ई सब को .. जाओ मोहना का जनरेटरवा बुक कर लाओ छौ दिन खातिर.. ई लोग बिना बिजली पँखा का नहीं रह सकता है!!”
सीताराम मोहना का जनरेटर बुक कर आता है। .. इधर सीताराम की बीवी कुंआ से पानी खीच रही है.. वहीँ तीनों लड़कियां पानी खींचती अपनी फुआ को देख रही है.. बड़ी वाली इस मोमेंट को कैमरे में कैद भी कर रही है। .. डेगची भर जाने के बाद बड़ी वाली आती है और बोलती है .. “दीदी.. दीदी .. मुझे दो न .. मैं ले के जाती हूँ घर में.. मेरे सर में रख दो आप .. मैं ले के जाउंगी..!!”
फुआ मुंडी में भरी डेगची रख देती है… डेगची रखते ही उसका मुंडी थरथराने लगता है .. हालत देख के फुआ बोलती है .. “अरे रखो.. रखो... गिरा दोगी तुम!!”
मुंडी थरथराते हुए ही “नहीं दीदी.. हम ले जाएंगे.. पहली बार रखे है न तो ऐसा हो रहा.. हम ले जाएंगे.. टेंसन नॉट.. ऐ मोनिका.. मेरा डेगची ले जाते हुए फ़ोटो खींचना तुम.. ठीक न!”
इतना कह वह थरथराती मुंडी में डेगची लिए घर की ओर जाने लगती है .. अभी दस कदम भी न चले होंगे कि सामने से एक होरहोरवा साँप गुजरा.. एक तो पहले से ही काँप रही थी और साँप को देखते ही कंपकंपाना अपने चरम पे.. पैर ऐसा फिसला कि डेगची उसके मुंडी से ढाई फुट आगे जा के गिरी और उसका साइज़ नामीबिया जैसा हो गया। .. और बड़ी वाली तो एकदम से बेंग की तरह पसर गई.. फुआ दौड़ती हुई आती है और उठाती है.. “हम बोल रहे थे.. नहीं ले जा पाओगी.. कभी की नहीं हो और!! .. खैर छोड़ो.. चोट तो नहीं आई न!!”
“नहीं दीदी.. चोट नहीं आई .. बस थोडा सा केहुना छिल गया!!.. हम ले जाते लेकिन साँप देख के तो मेरी सांस ही रुक गई.. दीदी इधर ऐसे ही साँप घूमते है क्या?”
“हाँ.. सावन महीना है न तो होरहोरवा साँप ऐसे ही घूमते रहते हैं।“
“इसका जहर होता है या नहीं?”
“होता है न!”
“ओ माय गॉड.. ऐसे कन्डीशन में आपलोग रहते हैं.. वेरी डेंजरस!”
इधर मोहना जनरेटर ले के आ जाता है.. टेबल फैन ले के आता है .. बल्बस ले के आता है .. और सब फिट कर देता है। .. अब जब दिल्ली से लड़कियां आई हैं तो पूरा गाँव में हल्ला है.. रमेसरा परमेसरा के तो कहने ही क्या .. शॉर्ट वेव में विविध भारती के गाने पुरे फूल साउंड में बजाए घूम रहे है.. हर दू घण्टा में कपड़ा चेंज करके सीताराम के घर के बाहर चक्कर काट रहे है.. काश एक नज़र देख ले तो ई गधा जन्म तर जाये।
शाम को जनरेटर चालू.. रूम में टेबल फैन का फनफनाना शुरू.. सब बड़े खुश.. चलो आज अच्छी नींद आएगी.. !! .. और जब जनरेटर है तो DD1 भी चलेगा.. टीवी चालू कर सब देखने भी लगे .. खाना पीना हुआ.. फिर दुनियादारी की बातें शुरू.. वे गाँव के बारे में पूछते तो इधर वाले शहर के बारे में … अभी बात करते-करते घण्टा भर हुआ नहीं होगा कि जनरेटर धूड़ढूढ़ा के बन्द हो गया… बन्द होते ही पूरा सन्नाटा.. और फिर मच्छरोँ का अटैक शुरू.. सीताराम मोहना को बुला लाता है .. मोहना चेक करता है जनरेटर को .. चेक करने के बाद बोलता है कि प्लगवा काम नहीं कर रहा है.. करेंट नहीं आ रहा इसमें.. नया प्लग लाना पड़ेगा.. और अभी नया प्लग नहीं है और अभी इतना रात में फुसरो जा भी नहीं सकते तो जनरेटर चालू नहीं होगा!! .. इतना बोल मोहना चल दिया।
अब आज की रात फिर से वही…. जैसे तैसे मच्छर मारते रात कटी… दोपहर को मोहना नया प्लग ले के आया.. लेकिन फिर भी जनरेटर चालू नहीं हुआ.. लगता है कि कुछ और प्रॉब्लम है.. मिस्त्री को बुलाना पड़ेगा.. फिर बाद में पता चलता है कि मिस्त्री तो ससुराल गया हुआ है.. दो दिन बाद ही आएगा!! .. बड़ी भारी मुश्किल!!
जीतू महतो को चिंता कि अब ये कैसे काटेंगे बचे दिन यहाँ!? … बड़ी अफ़सोस की बात है कि अब तक हमारे गाँव में बिजली क्यों नहीं आई है!!.. अगर आई रहती तो इन्हें इतनी तकलीफ न उठानी पड़ती!
इसी उधेड़बुन में जीतू महतो थे कि सीताराम आया और बोला कि .. “बप्पा .. ये लोग बोकारो दीदी घर जा रहे है दीदी घर... वहाँ दीदी बुलाई है!!”
बुझे मन से जीतू महतो बोलते है.. “ठीक है ले जाओ दीदी घर .. काहे यहाँ इतना परसानी में रहेगा!”.
कुछ देर में मारुति ओमनी आ जाती है और सभी मारुति में बैठ जाते हैं… कुछ देर बाद मारुति चल पड़ती है.. सीसे के बाहर से तीनों लड़कियां दादाजी को बाय-बाय कर रही है.. और इधर जीतू महतो कन्धे में गमछा लिए भरी आँखों से उन सब को भी हाथ हिला के बाय-बाय कर रहे हैं।
गंगवा
खोपोली से।
Saturday, April 8, 2017
|| दिल्ली गर्ल इन गांव||
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ReplyDeletePadh ke man me gazab ki anubhuti hui ...
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