“नाय दा.. अलार्म लगवल हलियो .. पता नाय साला बजबे नाय करलो.. अच्छा पाँच मिनट रुक.. हम तुरंते आवो हियो।“
उसके बाद छुट्टू जल्दी से भाग के कुँआ जाता हैं और मुँह-हाथ धो के अपना बजाज M80 उठाता है और उनलोगों के साथ निकल लेता है।..
सबेरे सात बजते-बजते छुट्टू बाबू दरवाजे के बाहर से आवाज लगा रहा है “मोदी दा!! … मोदी दा !!”
मैं चाय पी रहा था .. मैया बोली “अरे जेटला देख छुट्टू बाबू आय गेलो कोयला ले के.. जो तनी खोले-खाले में मदद केर दीही तो!”
मैं बाहर निकला.. देखा छुट्टू बाबू पूरा अपने M80 गाड़ी को कोयले से पाट दिया है.. सीट से आगे की खाली जगह में दो बोरी.. पीछे कैरियर में दो बोरी और सीट में चार बोरी!.. मेरे बाहर निकलते ही.. “दादा ई आगू के बोरवा धकेल के गिरा तो.” .. मैं धक्का दे के गिराया .. फिर बारी-बारी से सभी बोरियों को गिराया.. फिर वहीँ बाहर ही सभी कोयलों को बोरी से बाहर निकाला.. मैया ‘खेचला’ ले के आई और कोयले को खेचला में डाल-डाल के कोयले वाले कमरे में रखने लगी.. मैं एक बड़ा सा ढेला ले के कोयले वाले कमरे में गया तो देखा कि पूरा का पूरा कमरा भर गया है कोयले से.. अब बारी में भी कोयला रखा जाने लगा था… सभी कोयला अंदर रखने के बाद छुट्टू बाबू दातुन किया, माड़-भात आर अलुआ का चोखा खाया, चाय पीया और फिर अपना M80 उठाया और चला गया दुबारा कोयला लाने ! .. मैं बाहर निकल के देखा तो ऐ बाबा रे! … ये मोटर साइकिलों और साइकिलों की लम्बी-लम्बी कतारें.. भुरर्रर्र-भारर्रर्र… टीईईई-टीईईई.. पीईईई-पीईईई.. ट्रिंगगग्ग-ट्रिंगगग्ग की आवाजों के साथ पास हो रहे है.. राजदूत, M80, स्प्लेंडर तो छोड़िये, कूल-डूडोँ के बाइक्स पल्सर,CBZ,करिज्मा वगेरह भी पीछे नहीं हैं… सब रनरनाते हुए पास हो रहे हैं.. नौरंगिया, संतना, पिंटुआ,परकसवा, टुआ,छुटना,जगुआ, रमेसरा… जो अभी 10वीं 11वीं में पढ़ रहे है जो हमेशा क्रिकेट खेलते रहते हैं वो भी साइकिल से कोयला लिये हुए पास हो रहे हैं.. रमेसरा मेरे को सामने देख के साइकिल से गड़कते हुए ही “परनाम मोदी चाचू … कहिया ऐली बोम्बे से चा … आय रहल हियो मिठैया खाय ले.. !”
साला मैं दंग हूँ ऐसे कोयले की ढुवाई देख के ! अंधाधुंध !. और सबसे आश्चर्य लगा कि मेरा छोटा भाई भी पता नहीं कब घर से निकला था कोयला लाने, कोयला ले के पास हो रहा था, लेकिन अपने घर के सामने रुका ही नहीं, आगे गड़कते हुए चला गया ! .. अब मन में संशय ‘साला ई कोयला ले के गया कहाँ होगा?” .. मैं घर के अंदर आया .. और मैया से पूछा “ हाँ गे मैया … ई गोमा बाबू कहाँ ले के गेलो गे कोयलवा गे!?”
“जखन गोमा ऐतो ने तखने पुइछ लिहो ओकर से . कते कमेलो आईझ से!”
खैर गोमा बाबू आया दो-ढाई घण्टे बाद … आते ही पूछा “कोयला कहाँ ले के गया था रे गोमा बाबू.. और केतना कमाया आज ?”
“बिराजपुर .. और 300 रुपया कमाएं!”
“बिराजपुर काहे ?”
“धोइर.. बिराजपुर में कोयला का ‘डीपू’ लगा हुआ है… 120 रूपये मन(40 किलो) कोयला लेता है.. आज ढाई मन से थोड़ा ऊपर था कोयला तो 300 रुपया दिया!”
“अच्छा तो अब तक केतना कमा लिया ?”
“कहाँ कमा लिए.. हम तबे कोयला बेचने जाते है जब क्रिकेट के लिए जेब में पैसा नहीं रहता है।“
“अच्छा तो क्रिकेट मैच के लिए कोयला बेचने जाता है?”
“हाँ’’
इतने में छुट्टू बाबू दूसरा कोयला का गाड़ी ले के आ जाता है.. उसको फिर सब मिल के अंदर घुसाते है.. कोयला देख के मेरा बप्पा बोलता है “इस बार डेढ़ लाख ऐटा(ईंट) पराये लेते है.. छुट्टू बाबू ढेर कोयला जुगाड़ कर दिया है.. आर ई सरवा गोमा एकदम से भेड़!... कोयला लाता है तो सरवा डीपू में बेच आता है!”
गोमा बाबू तुनतुनाते हुए “ बेचबो नाय तो की करबो.. तोय पईसे नाय दो हमरा तो बेचबे करबो ने!”
“हाँ सार.. जो ने बेच आर करकेट खेल!”
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पियारी महतो कोयला बेच के आते-आते महुआ चढ़ा के आया है लेकिन साथ में अपनी प्यारी मेहरारू के लिए ‘सिंघाड़ा’ लेते आया है.. लेकिन मेहरारू तुनक-तुनक के भाव खा रही है .. पियारी महतो गाना उ भी फूल टोन में गा के सुनाता है..
“धानी हो अबकी जाय द कल्याणी,
आनी देबो गोड़े के पंजानी हो धानी.. जाय द कल्याणी।“ (कल्याणी प्रोजेक्ट)
तब जा के मेहरारू सिंघाड़ा खाती है।
कुछ-कुछ तो ऐसे है कि दिन भर कोयले की ढुवाइ करते रहते हैं, घर की महिलायें भी कम नहीं हैं.. खेचली ले के चली जाती है.. कुछेक के घर में तो कोयला इतना जमा हो गया है कि बारी की चारदीवारी भी कोयले से ही बनाने लगे है!..
इधर खुलवा महतो, महेसर महतो और नकुल तुरी हाँफते हुए भागते आ रहे है .. भुनु काकू ने रोका और पूछा “अरे की हो गया रे खुलवा .. काहे दौड़े भागे जा रहा है रे ?”
“काकू.. काकू.. पानी पिला पहले .. ताब बताओ हियो !”
पानी दिया गया.. पानी पीने के बाद हाँफते हुए बता रहा “अरे काकू! हम, महेसर,नकुल आर दू चार झन आर थे.. इधर से कोयला ले के जा रहे थे.. चिरूडीह पास किये ही थे कि ‘मामू’ लोग को देखा .. हमलोग अपना-अपना गाड़ी वहीँ पटके भाग खड़े हुए.. हमलोग के पीछू दू गो पुलिस वाला बड़का जबर को रूल के दौड़ा था लेकिन हम सरपट भाग निकले.. अब हमलोग के गड़िया का क्या होगा काकू ? … बहुत जनों का साइकिल भी धराया हैं।“
“अरे का होगा … कुछो नहीं होगा .. उनलोगों को गाड़ी थाने ले जाने दो.. तुमलोग विधायक जी को फोन लगाओ.. सब निपट जाएगा !”
“हाँ ठीके कहो ही काकू.. विधायक जी ही हमनी के गड़िया छोड़वे पारतो !”
फिर विधायक जी को फोन लगाया जाता है.. विधायक जी थाने में कुछ बोलते है… और सब कोई अपना-अपना साइकिल,मोटर साइकिल उठा के ले आते है… दो-दिन तक थोड़ा लुका-छिपी होता है फिर खुले-आम होने लगता है !
इतना सब हो रहा है तो मेरे मन बस यही ख्याल आ रहा ‘लगता है चुनाव नज़दीक आ गया है!”
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चुनाव के टाइम ऐसी हलचलें बढ़ जाती हैं। …
लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनसे इनका कुछ मतलब-वतलब नहीं है.. साल भर कोयले की ढुवाइ करते रहते हैं।.. 20 किलो की साइकिल में 200 किलो कोयला ले के चलते हैं.. कोलयरी एरिया के कालाबाजारियों, कोयला तस्करों से 400-450 रुपया में कोयला खरीदते हैं और 40-45 किलोमीटर दूर ले जा जी.टी.रोड के होटलों में 1200-1300 रुपया में बेचते हैं याने शुद्ध मुनाफा 800 से 850 रुपया। .. झारखण्ड की सड़कों में लाइन से लाइन चींटियों की भाँति कोयला ढोते लोगों का चलना आम बात है। .. बीच-बाच में कभी पुलिस वाले धर लिए 50-100 रुपया थमा देते हैं।
झारखण्ड में कोयले की 2,000 से भी ऊपर छोटी-बड़ी खदानें हैं, और कोयला तस्करी का कारोबार करोड़ों का है.. ये न कभी रुकी थी और न आज रुकी है! .. कितनी सरकारें आई और गई .. लेकिन कोयला तस्कर बेख़ौफ़ है.. सरकार जानती सब है लेकिन कुछ कर नहीं सकती, क्योंकि सरकार तो कहीं न कहीं इन्हीं के भरोसे तो टिकी हुई हैं।
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और अब अंत में ..
रमेसरा भेण्डरा मोड़ के देवी महतो स्मारक इंटर महाविद्यालय में इंटर में पढ़ रहा है.. उसकी एक गरल-फिरेंड है.. नाम है कोलेसरी! .. रमेसरा कोलेसरी से शादी का परपोज करता है.. तो कोलेसरी बोलती है “हाँ रे रमेसरा .. तोर कोनो काम ने धंधा रे .. तोय की खियेबे आर की पियेबे रे.. आर कैसे राखबे रे ?? “
तो रमेसरा बड़े ही रोमेंटिक मुड में ये गाना अपनी कोलेसरी को सुनाता है..
“कोयला बेची के तोरा सजनिया ले देबो नाके नथुनिया गे.. 2
जब तोय अइबे बनके हमर ..2 घरवा में दुल्हिनिया गे !! ”
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गंगा महतो
खोपोली।