Saturday, July 30, 2016

||कोयला||

भिनसोरिये-भिनसोरिये हम सभी भाई मस्त नींद में सोये हुए हैं… बगल वाले कमरे में घर के मुर्गे ‘कुक्कुंडचु’ की बांग लगा रहे हैं.. कबूतर ‘गुटरगूं’ करना शुरू कर दिए है.. तभी बाहर लगे लोहे की दरवाजे से ठकठकाने के से साथ आवाज आती है “छुट्टू.. छुट्टू… छुट्टू बाबू … उठ रे.. छुट्टू !!” .. मेरा भाई असमसाते हुए करवट लेता है और मोबाइल की बटन को प्रेस करता है.. आँख मिचमिचाते हुए टाइम देखता है… “ई साला .. साढ़े चार बज गया बे !!”.. फिर वह झटपट उठता है और बाहर का दरवाजा खोलता है। बाहर नुनुचन्द महतो प्लेटिना बाइक लिए, भगन महतो स्प्लेंडर लिए, रिंकू पाड़े पुरनका पैसन लिए और महेश महतो राजदूत लिए खड़े है.. छुट्टू के बाहर आते ही नुनुचन्द बोलता है “ का छुट्टू बाबू ! आईझ नींद नाय खुल लो ने की ? .. बड़ी लेट कर देली उठे में ?”
“नाय दा.. अलार्म लगवल हलियो .. पता नाय साला बजबे नाय करलो.. अच्छा पाँच मिनट रुक.. हम तुरंते आवो हियो।“
उसके बाद छुट्टू जल्दी से भाग के कुँआ जाता हैं और मुँह-हाथ धो के अपना बजाज M80 उठाता है और उनलोगों के साथ निकल लेता है।..
सबेरे सात बजते-बजते छुट्टू बाबू दरवाजे के बाहर से आवाज लगा रहा है “मोदी दा!! … मोदी दा !!”
मैं चाय पी रहा था .. मैया बोली “अरे जेटला देख छुट्टू बाबू आय गेलो कोयला ले के.. जो तनी खोले-खाले में मदद केर दीही तो!”
मैं बाहर निकला.. देखा छुट्टू बाबू पूरा अपने M80 गाड़ी को कोयले से पाट दिया है.. सीट से आगे की खाली जगह में दो बोरी.. पीछे कैरियर में दो बोरी और सीट में चार बोरी!.. मेरे बाहर निकलते ही.. “दादा ई आगू के बोरवा धकेल के गिरा तो.” .. मैं धक्का दे के गिराया .. फिर बारी-बारी से सभी बोरियों को गिराया.. फिर वहीँ बाहर ही सभी कोयलों को बोरी से बाहर निकाला.. मैया ‘खेचला’ ले के आई और कोयले को खेचला में डाल-डाल के कोयले वाले कमरे में रखने लगी.. मैं एक बड़ा सा ढेला ले के कोयले वाले कमरे में गया तो देखा कि पूरा का पूरा कमरा भर गया है कोयले से.. अब बारी में भी कोयला रखा जाने लगा था… सभी कोयला अंदर रखने के बाद छुट्टू बाबू दातुन किया, माड़-भात आर अलुआ का चोखा खाया, चाय पीया और फिर अपना M80 उठाया और चला गया दुबारा कोयला लाने ! .. मैं बाहर निकल के देखा तो ऐ बाबा रे! … ये मोटर साइकिलों और साइकिलों की लम्बी-लम्बी कतारें.. भुरर्रर्र-भारर्रर्र… टीईईई-टीईईई.. पीईईई-पीईईई.. ट्रिंगगग्ग-ट्रिंगगग्ग की आवाजों के साथ पास हो रहे है.. राजदूत, M80, स्प्लेंडर तो छोड़िये, कूल-डूडोँ के बाइक्स पल्सर,CBZ,करिज्मा वगेरह भी पीछे नहीं हैं… सब रनरनाते हुए पास हो रहे हैं.. नौरंगिया, संतना, पिंटुआ,परकसवा, टुआ,छुटना,जगुआ, रमेसरा… जो अभी 10वीं 11वीं में पढ़ रहे है जो हमेशा क्रिकेट खेलते रहते हैं वो भी साइकिल से कोयला लिये हुए पास हो रहे हैं.. रमेसरा मेरे को सामने देख के साइकिल से गड़कते हुए ही “परनाम मोदी चाचू … कहिया ऐली बोम्बे से चा … आय रहल हियो मिठैया खाय ले.. !”
साला मैं दंग हूँ ऐसे कोयले की ढुवाई देख के ! अंधाधुंध !. और सबसे आश्चर्य लगा कि मेरा छोटा भाई भी पता नहीं कब घर से निकला था कोयला लाने, कोयला ले के पास हो रहा था, लेकिन अपने घर के सामने रुका ही नहीं, आगे गड़कते हुए चला गया ! .. अब मन में संशय ‘साला ई कोयला ले के गया कहाँ होगा?” .. मैं घर के अंदर आया .. और मैया से पूछा “ हाँ गे मैया … ई गोमा बाबू कहाँ ले के गेलो गे कोयलवा गे!?”
“जखन गोमा ऐतो ने तखने पुइछ लिहो ओकर से . कते कमेलो आईझ से!”
खैर गोमा बाबू आया दो-ढाई घण्टे बाद … आते ही पूछा “कोयला कहाँ ले के गया था रे गोमा बाबू.. और केतना कमाया आज ?”
“बिराजपुर .. और 300 रुपया कमाएं!”
“बिराजपुर काहे ?”
“धोइर.. बिराजपुर में कोयला का ‘डीपू’ लगा हुआ है… 120 रूपये मन(40 किलो) कोयला लेता है.. आज ढाई मन से थोड़ा ऊपर था कोयला तो 300 रुपया दिया!”
“अच्छा तो अब तक केतना कमा लिया ?”
“कहाँ कमा लिए.. हम तबे कोयला बेचने जाते है जब क्रिकेट के लिए जेब में पैसा नहीं रहता है।“
“अच्छा तो क्रिकेट मैच के लिए कोयला बेचने जाता है?”
“हाँ’’
इतने में छुट्टू बाबू दूसरा कोयला का गाड़ी ले के आ जाता है.. उसको फिर सब मिल के अंदर घुसाते है.. कोयला देख के मेरा बप्पा बोलता है “इस बार डेढ़ लाख ऐटा(ईंट) पराये लेते है.. छुट्टू बाबू ढेर कोयला जुगाड़ कर दिया है.. आर ई सरवा गोमा एकदम से भेड़!...  कोयला लाता है तो सरवा डीपू में बेच आता है!”
गोमा बाबू तुनतुनाते हुए “ बेचबो नाय तो की करबो.. तोय पईसे नाय दो हमरा तो बेचबे करबो ने!”
“हाँ सार.. जो ने बेच आर करकेट खेल!”
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पियारी महतो कोयला बेच के आते-आते महुआ चढ़ा के आया है लेकिन साथ में अपनी प्यारी मेहरारू के लिए ‘सिंघाड़ा’ लेते आया है.. लेकिन मेहरारू तुनक-तुनक के भाव खा रही है .. पियारी महतो गाना उ भी फूल टोन में गा के सुनाता है..
“धानी हो अबकी जाय द कल्याणी,
 आनी देबो गोड़े के पंजानी हो धानी.. जाय द कल्याणी।“ (कल्याणी प्रोजेक्ट)
तब जा के मेहरारू सिंघाड़ा खाती है।
कुछ-कुछ तो ऐसे है कि दिन भर कोयले की ढुवाइ करते रहते हैं, घर की महिलायें भी कम नहीं हैं.. खेचली ले के चली जाती है.. कुछेक के घर में तो कोयला इतना जमा हो गया है कि बारी की चारदीवारी भी कोयले से ही बनाने लगे है!..
इधर खुलवा महतो, महेसर महतो और नकुल तुरी हाँफते हुए भागते आ रहे है .. भुनु काकू ने रोका और पूछा “अरे की हो गया रे खुलवा .. काहे दौड़े भागे जा रहा है रे ?”
“काकू.. काकू.. पानी पिला पहले .. ताब बताओ हियो !”
पानी दिया गया.. पानी पीने के बाद हाँफते हुए बता रहा “अरे काकू! हम, महेसर,नकुल आर दू चार झन आर थे.. इधर से कोयला ले के जा रहे थे.. चिरूडीह पास किये ही थे कि ‘मामू’ लोग को देखा .. हमलोग अपना-अपना गाड़ी वहीँ पटके भाग खड़े हुए.. हमलोग के पीछू दू गो पुलिस वाला बड़का जबर को रूल के दौड़ा था लेकिन हम सरपट भाग निकले.. अब हमलोग के गड़िया का क्या होगा काकू ? … बहुत जनों का साइकिल भी धराया हैं।“
“अरे का होगा … कुछो नहीं होगा .. उनलोगों को गाड़ी थाने ले जाने दो.. तुमलोग विधायक जी को फोन लगाओ.. सब निपट जाएगा !”
“हाँ ठीके कहो ही काकू.. विधायक जी ही हमनी के गड़िया छोड़वे पारतो !”
फिर विधायक जी को फोन लगाया जाता है.. विधायक जी थाने में कुछ बोलते है… और सब कोई अपना-अपना साइकिल,मोटर साइकिल उठा के ले आते है… दो-दिन तक थोड़ा लुका-छिपी होता है फिर खुले-आम होने लगता है !

इतना सब हो रहा है तो मेरे मन बस यही ख्याल आ रहा ‘लगता है चुनाव नज़दीक आ गया है!”
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चुनाव के टाइम ऐसी हलचलें बढ़ जाती हैं। …
 लेकिन कुछ ऐसे हैं जिनसे इनका कुछ मतलब-वतलब नहीं है.. साल भर कोयले की ढुवाइ करते रहते हैं।.. 20 किलो की साइकिल में 200 किलो कोयला ले के चलते हैं.. कोलयरी एरिया के कालाबाजारियों, कोयला तस्करों से 400-450 रुपया में कोयला खरीदते हैं और 40-45 किलोमीटर दूर ले जा जी.टी.रोड के होटलों में 1200-1300 रुपया में बेचते हैं याने शुद्ध मुनाफा 800 से 850 रुपया। .. झारखण्ड की सड़कों में लाइन से लाइन चींटियों की भाँति कोयला ढोते लोगों का चलना आम बात है। .. बीच-बाच में कभी पुलिस वाले धर लिए 50-100 रुपया थमा देते हैं।
झारखण्ड में कोयले की 2,000 से भी ऊपर छोटी-बड़ी खदानें हैं, और कोयला तस्करी का कारोबार करोड़ों का है..  ये न कभी रुकी थी और न आज रुकी है! .. कितनी सरकारें आई और गई .. लेकिन कोयला तस्कर बेख़ौफ़ है.. सरकार जानती सब है लेकिन कुछ कर नहीं सकती, क्योंकि सरकार तो कहीं न कहीं इन्हीं के भरोसे तो टिकी हुई हैं।
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और अब अंत में ..
रमेसरा भेण्डरा मोड़ के देवी महतो स्मारक इंटर महाविद्यालय में इंटर में पढ़ रहा है.. उसकी एक गरल-फिरेंड है.. नाम है कोलेसरी! ..  रमेसरा कोलेसरी से शादी का परपोज करता है.. तो कोलेसरी बोलती है “हाँ रे रमेसरा .. तोर कोनो काम ने धंधा रे .. तोय की खियेबे आर की पियेबे रे.. आर कैसे राखबे रे ?? “
तो रमेसरा बड़े ही रोमेंटिक मुड में ये गाना अपनी कोलेसरी को सुनाता है..
“कोयला बेची के तोरा सजनिया ले देबो नाके नथुनिया गे.. 2
 जब तोय अइबे बनके हमर ..2  घरवा में दुल्हिनिया गे !! ”
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गंगा महतो
खोपोली।





Wednesday, July 27, 2016

||मेरा गाँव||

गाँव के टँड़िया वाला इस्कूलवा में हम चौथी कक्षा में पढ़ रहे है.. बूढ़ा मास्टर (मेघलाल महतो) गाय पर निबन्ध लिखने दिए है… ‘गाय एक पालतू जानवर है .. गाय के चार पैर होते हैं.. गाय के दो आँख, दो कान, दो सिंग और एक लम्बी पूँछ होती है.. गाय घास खाती है डॉट.. डॉट.. डॉट ..’ लिख ही रहे थे कि इतने में मेरे बप्पा याने श्री शुकर महतो गोद में मेरी छोटी बहन को लिए हुए की एंट्री होती है ..  आते ही बप्पा मास्टर जी से बोलते है “मास्टर साहेब आज हमर मोदी बाबू(मेरा गाँव का नाम) को तनिक छुट्टी दे दीजिये न … का है कि इसकी माँ जंगल चली गई और मेरा दू बजवा डिब्टी(ड्यूटी) है .. घर का देखभाल करने के लिए कोई नहीं है.. बच्चे भी है .. कोई तो चाहिए न घर में … तो इसलिए इसको छुट्टी दे दीजिये !”
“देखिये महतो जी … आपका ई बेटवा न पढ़ने-लिखने में ठीक-ठाक है.. आप हर एक दो रोज बाद इसको स्कूल से उठा के ले जाते है… प्रभाव पड़ता है इसका पढ़ाई में!”
“अब का कहे मास्टर जी .. घर में तकलीफ है तबे न ले जाते है.. अगर घर में कोई रहता है तो लेने नहीं आते है।“
“ठीक है .. ले जाइए।“
मैं अपना बोरा और झोला उठाता और बप्पा के पीछू-पीछू घर आ जाता।
बीच रस्ते में बोलते आते “हमको मालुम है तुमलोग पढ़-लिख के नेहाल करोगे … बड़का फोरमेन आर इंजीनियर बनोगे!”.
मैं बस सुनते-सुनते बप्पा के पीछू-पीछू घर आ जाता ।  बप्पा खाना-पीना खा के साइकिल उठाये और निकलने लगे ड्यूटी को.. जाते-जाते समझा रहे है “घर से बाहर कहीं मत निकलना.. यहीं आँगन में ही खेलते रहना जब तक मैया बोन (वन) से न आ जाये.. गाय-गरु, छेगरी-पठरु का ध्यान रखना.. करहैया(कड़ाही) में धिपवल(गर्म किया हुआ) दूध रखा हुआ है.. बाबू-नूनी कांदेगा(रोयेगा) तो पिला देना.. और हाँ अगर मैया लेट करती है तो चूल्हा भी जला लेना.. ठीक है ?”
“हाँ ठीक है बप्पा “
“अच्छा ठीक है फिर हम चलते है”
“हाँ ठीक”
बप्पा पैंडिल मारते हुए ड्यूटी को निकल लेते है… मैं आँगन का टाटी(टीने से बना हुआ दरवाजा) बन्द करता और अपने भाइयों और बहन को सँभालने लग जाता। .. हमलोग चार भाई और एक छोटी बहन .. छोटी बहन और भाई दोनों जुड़वा है.. मैं मंझला.. याने मेरे से छोटे तीन .. मेरा बड़ा भाई नावाडीह में पढ़ने जाता था.. तो उसको घर लौटते-लौटते शाम के पाँच बज जाते थे। तो अगर घर में कोई न रहा तो सारी जिम्मेवारी मेरे ऊपर और उस दिन मेरा स्कूल नहीं जाना या फिर स्कूल से वापिस आना तय।
खैर मैं अपने भाई-बहन को सँभालने लगा.. आँगन हमलोग का बहुत बड़ा था.. इतना बड़ा कि खलिहान उसी में करते थे.. उसी हम खेलने लगे… कभी पठरु(बकरी का बच्चा) के साथ तो कभी लेरु(बछड़ा) के साथ.. क्योंकि उस टाइम गाँव में मनोरंजन के कुछ अन्य साधन थे भी नहीं थे.. अपना मनोरंजन बस इन्हीं सब के मध्य होता था.. पठरु और लेरु को हम प्यार से बाबू-बाबू कहते थे.. छोटा भाई पठरु को गोद में ले के खेलते रहता था.. तो कभी उसको आँगन में दौड़ा-दौड़ा के उसके पीछे भागता.. वो सब भी अपनी माँओं के पास कम और हमलोग के पास ज्यादा रहते थे.. अभी खेलते हुए कुछ देर हुआ ही था कि टाटी के खड़खड़ाने की आवाज आई .. मेरी बहन दौड़ती हुई टाटी के पास पहुँची.. टाटी के फ़ाँक से देखते ही तुतलाते हुई ख़ुशी से चिल्लाने लगी “लतिया(रतिया) के बल्दा आय गेलो.. लतिया के बल्दा गेलो !” .. मैं गया और टाटी खोल के “रती महतो के बैल” को अंदर ले आया। .. अन्य गाय-गोरु शाम को पाँच बजे तक आते थे लेकिन रती महतो का बैल दो बजते-बजते ही घर को आ जाता.. शायद हम बच्चों का प्यार ही कह सकते है कि वो इतनी जल्दी आ जाता था !! .. मेरे भाई लोग उसके साथ खेलने लगे.. उसको गुदगुदाते ही वह बैठ गया.. और मज़ा लेने लगा.. मैं सुप उठाया और बीटा से कुछ महुआ और नमक ले के गमले में पानी डाल के उसके आगे कर दिया.. मेरा भाई हाथ से घोल-घोल के पिला रहा था.. एक साँस में ही पूरा पानी खत्म कर दिया.. फिर वह अपने साथ खेलने में मगन हो गया.. वह भूल से भी न कभी लात मारता था और न ही सींग.. उसको हमलोग के साथ में खेलने में आनन्द आता था.. मेरे भाई लोग उसके ऊपर चढ़ जाते लेकिन कभी बिदकता नहीं था.. बस पूँछी तान के खड़े हो जाता था। .. बस ऐसे ही समय गुजर रहा था.. इतने में ही मेरा छोटा भाई किसी बात पे रोना स्टार्ट कर दिया.. मैं लगा उसको चुप कराने लेकिन वो चुप ही नहीं होता.. बस “मैया-मैया” की रट लगाना शुरू कर दिया .. मैं बोलता “अरे मैया अब आ जायेगी.. टेम हो गया है.. आती ही होगी.. रस्ते में होगी.. चुप हो जाओ चुप हो जाओ..” लेकिन वो है कि चुप होने का नाम ही नहीं लेता.. और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगता .. “दूध पियेगा बाबू ??” कुछ सुनना ही नहीं चाहता.. फिर बोला “चलो भुनु काकू का दोकना(दूकान) उ पँखा वाला लेमचूस ले देते है!” इतना सुनते ही उसके रोने की स्पीड एकदम से धीमी हो जाती है.. झर-झर गिरते आँसू एकदम से ब्रेक लगा लेते है.. बाकी के आँसू पोछते हुए जल्दी चलो जल्दी चलो कहने लगा… फिर उसको दूकान ले के गया.. लेमचूस खरीद के दिया तब जा के चुप हुआ।
साढ़े चार बज चुके थे.. मम्मी नहीं आई थी.. मेरी दादी जो बीमार खटिया में लेटी रहती थी चिल्लाने लगी “अरे मोदिया .. चुल्हवा जला दो न रे .. पता नहीं तोर मैया कब तक आएगी ?” .. फिर मैं कोयला-काठी निकाला और चूल्हा जला दिया .. आग जब गनगनाने लगा तो.. भात के लिए डेगची में ‘अधन’ भी चढ़ा दिया। .. अधन चढ़ा के मैं घर के अंदर ही था कि बाहर कुल्ही में से आवाज आई “जेटला(मेरा नाम जो सिर्फ मैया बोलती है) .. अरे जेटला.. टटिया खोल रे !” मैया सर में काठी का बोझा लिए आवाज लगा रही थी.. मेरे भाई-बहन दौड़ के टाटी के पास पहुँच गए और लगे ख़ुशी के चिल्लाने “मैया आय गेलो.. मैया आय गेलो” .. और उछल-उछल के रस्सी को खोलने की कोशिश करने लगे जिससे कि टाटी बंधा हुआ था.. लेकिन उ सब के पहुँच के बाहर था.. मैं गया और रस्सी खोल दिया.. मैया बोझा ले के अंदर आने लगी … दोनों भाई-बहन साड़ी पकड़ के अंदर आने लगे .. बीच आँगन में पहुँच के “अरे भागो.. भागो.. बोझा पटकने दो.. दूर हो जाओ.. नहीं तो लग जाएगा।“ मैं गया दोनों को पकड़ के साइड किया तब जा के मैया ने बोझा पटका।.. अब जा के दोनों भाई-बहन माँ से चिपक लिए.. और लगे बोलने “मैया.. मैया .. आईझ बोनवा से की आइन देली गे.. की आइन देली गे... जल्दी दे .. जल्दी दे !” .. मैया अपना आँचल सामने लाती है और उसको खोलती है.. सरय (सखुआ) के पत्ते में बंधा ‘साईया कोइर्(बेर) और कन्नौद’ रहता है.. दोनों भाई-बहन को थमा देती है.. मैं गया और बोला “हमको नहीं दोगे बाबू ?”
“नहीं .. नहीं देंगे.. हम अकेले खाएंगे .. मैया ने हमले लिए लाया है !”
“अच्छा .. ठीक है.. फिर हम ले जाएंगे कभी भुनु काकू का दोकना पँखा वाला लेमचूस खिलाने !”
फिर वह कुछ साईया कोइर् और कन्नौद निकाल के देता..!
 मैया बैठ के सभी लकड़ियों को टांगी से टुकड़े-टुकड़े करती है और मैं और मेरे से छोटा वाला भाई उसको बारी में बने मचान में ले जा के रखने लगते है। मैया हमेशा जंगल से कुछ न कुछ खाने का फल-सब्जी लाते रहती थी.. पियार,भेलवा,बेल,कुन्दरी,खुखड़ी,फुटका,साग,खकसा.. और ऐसे ही।
काठी को मचान में रखने के बाद “नेठो’’(पत्तों गुच्छों से बनाया हुआ जिसको मुंडी में रखते है जिससे कि बोझा का भार सर पे ज्यादा न गड़े) को ले बाहर गली में निकलता और उसमें अपने भाइयों को बिठा के गली की सैर कराता।
मेरे घर का लगभग ये रोज का काम था… मेरा स्कूल का नागा होना आम बात था.. साल भर कुछ न कुछ ऐसे ही काम चलते रहते थे… मेरी दादी मेरे बप्पा से बोलती “अरे बड़का नतिया को बिहा कर दो न.. उसकी कनेया कम से कम घर-दुआर देखने का तो काम कर ही सकती है न .. जेटला बाबू को रोज-रोज इस्कूल से उठा के ले आते हो.. अकेले कितना काम करेगा बेचारा.. बाल-बुतरू से ले के छेगरी-पठरु, गाय-लेरु, चूल्हा-चौकी.. का का करेगा ई? .. जल्दी से बड़का नतिया को बिहा करो!” .. खैर दादी ये कहते-कहते चल बसी .. मैं जब सातवीं कक्षा में पहुँचा तब जा के भैया का शादी हुआ .. और फिर तब से मेरा इस्कूल जाना रेगुलर हुआ। .. भौजी अब अन्य संगियों के साथ अपनी-अपनी सासु माँओं का बोझा लोकने जाने लगी.. बल्कि अब भी जा रही है।
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मैया अब बुढ़ाय गई है .. फिर भी जंगल जाते रहती है.. कुछ न कुछ जंगल से अपनी नाती-पोतों के लिए खाने के लिए लाती रहती है.. हम कभी उपस्थित रहे तो छोड़ते नहीं है खाना .. पूरा कब्जा कर लेते है। बोलता हूँ ‘तुमलोगों ने बचपन में पूरा का पूरा खाया है.. अब हमारे खानी की बारी है .. एक भी नहीं दूंगा।‘ मेरी बड़ी दीदी को जब भी फोन लगाओ तो वो घर में मिलती ही नहीं है .. भांजे बोलते है ‘मामू मैया अभी बोन गेल हो .. ऐतो ने तो मिस कॉल कर देबो!”। .. छुट्टी में जब भी दीदी घर जाता हूँ तो दीदी तुरंत लकड़ी-काठी का जुगाड़ करने लगती है.. घर धुंआं-धुंआं हो उठता है ! … धुंवे से आँसू पोछते-पोछते चाय बना ला देती है।

बोकारो जिला में चार ठो पॉवर प्लांट है और ये शायद कोई रेकॉर्ड भी है.. दूसरों राज्यों को बिजली सप्लाय होती है.. लेकिन हमारे गाँव में 2002 में बिजली आई.. ! वो भी बस नाम का ! .. 2008-09 के बाद थोड़ी हालत सुधरी है।
ऊपर जो मैंने अपनी आप-बीती वर्णन की है, तब और आज में ज्यादा से ज्यादा से महज 7 से 10% का बदलाव आया है.. बाकी सब जस का तस है।..
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गंगा महतो
खोपोली।
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(फ़ोटो साभार : गूगल . … गूगलिंग करते-करते ही ये फ़ोटो हाथ लगा और मैं अपने बीते दिनों में चला गया)

Thursday, July 21, 2016

||कूलडूड युवा||

‘हार्ट किलर रैम्स’ उर्फ़ रमेसरा और ‘इनोसेंट बॉय परमा’ उर्फ़ परमेसरा दोनों भाई(चचेरे) घर के बाहर बने पींड़े में बैठ के मोबाइल कूच रहे है.. रैम्स के पास इंटेक्स का 2GB रैम वाला मोबाइल है तो परमा के पास RedMI का.. Aircel का नयका सीम लिया है दोनों ने.. 2GB डाटा मिला है फ्री में.. बस उसी का सदुपयोग कर रहे है… दोनों भाई बरगंडी कलर किये नेमार कट हैयर-स्टाइल के साथ गंड़भसकवा जिन्स पहने रूपा और लक्स कोज़ी अंडरवियर का प्रचार करते हुए रजनीगन्धा-तुलसी कचड़ रहे है और सामने दीवार में अपने पेरचट-पेरचट पीकों से मनोरम नक्काशी कर रहे है। ..  रैम्स कान में चार सौ पचहत्तर रुपिया वाला चाइना ब्लूटूथ हेडसेट ठूंसे हुआ है, जो हरियर-पियर लाइट के साथ भुकभुका रहा है.. वहीँ परमा साठ रूपये वाला हेडफोन डाले खेसारीलाल का कर्णप्रिय भजन सुन रहा है .. दोनों भाई एक अलग ही लय और ताल में मुंडी हिलाते हुए अपने-अपने ‘एंजेल प्रियाओं’ के फोटोज में लाइक कमेंट कर रहे है। साथ-साथ में Whatsapp और messenger की घण्टी भी टेंग-टांग कर रही है। .. इतने में ही परमा अपना मोबाइल रैम्स को दिखाते हुए “ ओ रैम्स ब्रो देख न ई फोटो .. एडिट किये है विथ कैप्शन .. कैसा लग रहा है.. इसको फेसबुक में अपलोड करने की सोच रहा .. कैसा रहेगा ?”
“एकदम ऑसम एंड झक्कास परमा ब्रो .. मस्त .. अपलोड कर दो .. और साथ में न मेरे को भी टैग कर देना।“
“ओके रैम्स ब्रो।“
दोनों भाई अभी फूल सोशल मीडिया मस्ती में थे कि इतने में दादा जी की आवाज आई .. “ अरे ऐ रमेसरा आर परमेसरा ! .. तनिक हिया आव तो तुम दोनों रे !”
रैम्स एकदम से झुँझलाते हुए “अबे यार क्या हो गया अभी इस बुड्ढे को .. साला कभी भी चैन से बैठने नहीं देता है!” .. फिर आवाज़ देता है “हाँ दद्दू … क्या हो गया ?? “
“अरे आओ तो सही!!”
दोनों भाई अटपटे ढंग से उठते है और दादाजी के पास जाते है . .
परमा, “ हाँ दद्दू बोलिये .. क्या काम है ?”
“तुम दोनों ई कौड़ी और मैर(समतल करने वाला) उठाओ और चलो हमारे साथ बघमरवा वाला खेतवा .. तुम्हरा बप्पा तो सुबह ही हल और बैल ले गए है खेत में.. हमको अकेले ले जाने में थोड़ा दिक्कत हो रहा है!!”
रैम्स, “ अरे दद्दू .. 9 बजे हमारा फिजिक्स का ट्यूशन है .. हम नहीं ले जा सकते !”
“अरे तो अभी नौ बजने में टेम बाकी है न .. अभी तो साढ़े सात बज रहे है .. आधे घण्टे में आ जाओगे तुमलोग.”
परमा, “नहीं दद्दू .. अभी हमलोग नहाये-धोये नहीं है .. फ्रेश और तैयार होते-होते साढ़े आठ बज जाएंगे .. ट्यूशन लेट हो जाएगा दद्दू .. आप न किसी और को पकड़ो .. हमलोग चले नहाने।“
“सारहेन तुमलोग ई जो बहाना बनाते हो न काम करने की… देखना ये तुम्हें कहाँ ले के जाएगा .. हमारा क्या है .. हमने तो अपनी ज़िन्दगी जी ली .. लेकिन अगर तुमलोग अभी से ही देह चुराने लगे न खेती-बारी और काम-धंधा करने में न तो बहुत मुश्किल होगा तुमलोगों के लिए।“
“ओके दद्दू .. अभी न ज्यादा ज्ञान न दीजिये … खेती-बारी न सही नौकरी कर के खा लेंगे.. अब आप किसी और को पकड़िये .. हम जा रहे है फ्रेश होने।“
दोनों भाई फूल साउंड में गाना सुनते मुंडी हिलाते हुए कुँआ की ओर चल देते है। … दादा जी किसी को आमने-सामने न देख के खुद ही मैर और कौड़ी एक साथ कंधे में लादते है ओर खेत की ओर चल देते हैं।
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कुछ महीने बाद गाँव में भीड़ लगी हुई हैं … कोई प्रखण्ड का कृषि अधिकारी आया है .. फसल का बीमा करवाने.. और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने हेतु सरकारी अनुदान से सम्बंधित जानकारी देने। .. उनके जाने के बाद बड़ा परिवर्तन देखने को मिला … जो टांड़ और टोपरा पिछले कई सालों से परती था उसको जोतने लगे… उसमें ‘कुल्थी’ बुनने लगे.. जब वो उग गया और लतयाने लगा तो रैम्स अपने पापा को ले के उस टांड में जा के फ़ोटो खीच के, जमीन की रसीद और बैंक खाता की जेरोक्स कॉपी ले के कृषि अधिकारी के पास जमा करा आया। .. कुछ दिन बाद अकॉउंट में 2800 रूपये आ गए। ..
रूपये आते ही दोनों भाइयों ने 3G का 2GB वाला प्लान मरवाया.. !! और फिर अपने काम में लग गए .. बीच-बीच में खेती-किसानी में मदद के लिए पापा-दादा कुछ बोलते तो कोई न कोई बहाना बना के टाल देते।

अभी ये दोनों भाई फेसबुक, ट्वीटर, WhatsApp में सरकार के खिलाफ़ कहर ढाये हुए हैं..
“दाल महँगी हो गई !!”
“सरकार हाय-हाय … हाय-हाय... शोषण हो रहा .. शोषण रहा !”
“प्याज़ टमाटर महंगे हो गए !”
“सरकार हाय-हाय.. हाय-हाय .. त्राहिमाम.. त्राहिमाम !”.
“दाल होगी मोज़ाम्बिक से आयात !”
“सरकार हाय-हाय.. हाय-हाय! … भारत एक कृषि प्रधान देश है.. और कितने शर्म की बात है कि हम दाल विदेशों से आयात कर रहे हैं!.. हाय .. हाय .. शेम.. शेम !!”.
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जब तक रमेसरा और परमेसरा ‘हार्ट किलर रैम्स’ और ‘इनोसेंट बॉय परमा’ बनते रहेंगे … कृषि उत्पादों के मूल्य नित-निरंतर बढ़ते जाएंगे.. और कन्डीशन तो कभी ऐसी भी आ सकती है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत सरकार जमीन विदेशी किसानों को उपलब्ध करवायेगी खेती करने के लिए।
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गंगा महतो
खोपोली।

Monday, July 18, 2016

||धनरोपनी||

आषाढ़ का महीना बीतने वाला है… मानसून अपने पुरे उफान में है… रोपा-डोभा का दिन चल रहा है.. बादल और सूरज के बीच अटखेलियां चलते रहती है… जो खेत-टोपरा टांड़-बहियार कुछ महीने पहले उजाड़ लग रहा था.. अब लंबी-लंबी हरी घासों से भर गया है… चिड़ियों की चहचहाहट पहले की अपेक्षा बहुत जादा बढ़ गई है..  गाय-गोरु भेड़-बकरी जो कल तक खुले में घूम रहे थे.. अब बाड़ में सब जमा होने लगे हैं .. शैतान टाइप के गाय-गोरु के गले में ठेरका(नेचुरल घण्टी) और घण्टी बाँध दिए गए है। घंटियों की टन-टन, ठेरका की ठर-ठर, भेड़-बकरियों की मेमाहट, चिड़ियों का कलरव, पानी की कलकलाहट, बादलों का गर्जन, आद्री हवाओं की सरसराहट जब एक साथ मिश्रित होती है न तो … आह !! क्या कहने !! .. विभोर और मस्त कर देने वाला वातावरण बन पड़ा है।
शादी-ब्याह का सीजन बीत चूका है.. नयकी-नयकी पुतोह सब अपनी-अपनी जेठानियों और सासु माँ के संग अपने-अपने खेतों में विचरण कर रही है .. रमेसरा का शादी हुए अभी दू हफ्ता भी नहीं हुआ है .. दाम्पत्य जीवन का अभी आनंद ही उठा रहे थे कि हाय रे ‘रोपनी’ के दिन आ गए ! … उसकी मैया भिनसोरिये-भिनसोरिये किवार का सिकरी खड़खड़ा-खड़खड़ा के उसकी बीवी को आवाज लगाने लगती .. रमेसरा तो चाहे कि अभी दू घण्टा आर संगे सुतल रहे .. लेकिन का कहे काम भी तो करना है.. संगे दुनो जेनी-मरद साथे आँख मलते हुए कमरे से बाहर निकलते और अपने-अपने काम में लग जाते है.. रमेसरा हल-जुआठ उठाता है और बैल में नार के खेत की ओर चल देता है.. बहुरिया चूल्हा चौकी में लग जाती है! .. मैया आवाज लगाती है “ ऐ बहुरिया ! .. आज न 10 पैला चार (चावल) मेराना .. बड़का खेतवा के आज रोपाई है.. दस गो रोपनी खोजे है.. आर  चार गो हरवाहा आरो आया है.. तो जल्दी-जल्दी रंधना-बटना करो.. बिहिन मारने भी जाना है!” .. बहुरिया सहमति में मुंडी हिलाती है और काम पे लग जाती है।
रमेसरा अपने चार भाइयों में से दूसरे नम्बर का है.. छोटका भाई गोमा अभी पढ़ रहा है.. तो उसके ऊपर डिपेंड करता है कि वो खेत आये या न आये .. बाकि तीनों भाई और बाप खेत चले गए है .. चार हलवाहा बाहर से हैं और एक अपने घर का.. बड़ा खेत है तो पाँच ठो हलवाहा हैं...
खेत की जुताई शुरू हो चुकी है.. अगल-बगल के खेतों में भी जुताई चल रही हैं… हाइर्-हिम ता-ता-ता.. बाह रे हीरा.. बाह रे हीरा... पइच्छ-पाईछ.. बायें-बायें… दायें-दायें..हो~~ ! की आवाजें एक दूसरे को काट रही है… तो कभी एकदम से ‘चारपाट~~’ की आवाज आती जो बैल को पइना(डण्डा) से मारने से निकलती और उसके साथ ही हरवाहा चिल्लाता, “ सारहे बरद हम बीसी के चाम ले लेबो रे … पइछ कहले कनवे घुसो न हो तोर.. आपने मस्ती में चलते रहे है.. हायं!!।“.. रमेसरा सब तीनों भाई कौड़ी करने और मेढ़ बाँधने में लग गए हैं। रमेसरा पाँच कौड़ी मारता फिर कमर पकड़ के खड़ा हो जाता.. इसकी ये हरकते पिछले आधे घण्टे से जीतू महतो जो रिश्ते में दादा जी लगते है गौर कर रहे है.. हल जोतते-जोतते ही आवाज लगाते है, “का रे रमेसरा ! .. बार-बार ई डड़वा(कमर) पकड़ के काहे खड़ा हो जाता है रे .. लगता है रतिया में कुछ जादा ही मेहनत कर रहा है!”. इतना कहते ही सभी हरवाहा ठहाके मार के हँसने लगते है.. रमेसरा एकदम से झेंप जाता है.. शरमाते हुए कुदाल चलाने लगता है।
… खेत की एक चास जुताई हो चुकी है.. दोहराना चालु है.. इतने में ही धनरोपनी सब भी आ जाती हैं.. ज्यादातर धनरोपनी सब रिश्ते में रमेसरा की भौजी लगती हैं..  खेत में उतर कर बिहिन मारने लगती है.... कुछ देर में ही रमेसरा की मेहरारू और मैया भी आ जाती है.. मेहरारू को देख को रमेसरा में गज़ब की फुर्ती आ जाता है.. धड़ाधड़ कुदाल चलाने लगता है।..  रमेसरा की मेहरारू भी बिहनाठी में उतर कर बिहिन मारने लगती है.. कुछ देर बाद तीनों भाई आते है और मारल बिहिन का जोठा(गठ्ठा) सब को खेत के मेढ़ में ले जा के रखने लगते है.. अभी चार-पाँच बार बिहिन उठा के मेढ़ पे रखे ही हुए थे कि एक भौजी ने टोक लिया .. “ का हो रमेसरा .. खाली आपने जेनिया(बीवी) के मारल वाला बिहिन ले जा रहा है .. हमलोग के मारल बिहिन में कोनो ग्रह-दोष है का ?”
रमेसरा फिर से झेंपते हुए “का भौजी ! .. अब आप लोग भी न मज़े ले लीजिये .. अरे जो बिहिन सामने दिख रहा है वो बिहिन उठा के ले के जा रहे है।“
“हाँ.. हाँ .. सब समझ रहे है हम.. कौन बिहिन ले के जा रहे हो और कौन सा नहीं !.. भौजी है तोहार.. जादा सिखाओ न हमको . हाँ!!”
(फिर सब रोपनी एक साथ हँस पड़ती हैं) .. रमेसरा फिर लाल हो जाता है.. अबकी बार से अन्य भाभियों का बिहिन का जोठा भी उठा-उठा के ले जाने लगता है.. कुछ देर बाद एक भाभी को और मस्ती सूझी.. बिहिन मारते-मारते कादो वाला पानी का झरपट्टा संझले वाले भाई भोला को दे मारी .. भोला का रूपा का व्हाइट कलर का गंजी एकदम से पीला हो गया .. भोला कादो पोंछते हुए, “का भौजी.. ई आषाढ़ में भी तोहनी सब के फाल्गुन चईढ़ गेल हो ने की !”
“नाय हो भोला.. कइसन बात करा हे हो..  फाल्गुन भेले एतने में तोहरा छोड़तलियो!!”
(फिर एक ज़ोरदार हँसी !) “ भक्क! .. तोहनी बड़ी मज़ाक करो ही !”
“ हाँ भोला .. कइसन करा हे हो.. देवर संगे मज़ाक नाय करबे तो की भैसुर संग करबे ?.. (ठहाके वाली हँसी) .. अच्छा सुना ने .. “
“हाँ बोल !”
“अगला लगनिया में तोहू पार लगाय लो!”
“हाँ लगाय लेंगे.. आपन बहिन सब को तैयार रखिये!”
“धोइर.. तोहे खाली हाँ तो बोला ने.. लाइन लगाय नाय देलियो लड़की सब के तो हमरा कहिहा !”
(फिर एक ठहाकेदार हँसी)
अभी हँस के कुछ देर हुए ही थे कि रमेसरा की मेहरारू ज़ोर से चिल्लाई .. “ ईईईईई..!! … ईईईईईई… ! .. मईया गे मईया.. जोक धरलो गे मईया.. ! ईईईईईई.. !!”
और लगी बिहनाठी में ही छटपटाने… इतने में एक भौजी आई और बोली “ अरे शांत हो जाओ.. शांत हो जाओ पहले.. कौन जोक है सो हम देखते है!” .. रमेसरा की मेहरारू शांत मारती है तो भौजी जोक को उसके पैर से छुड़ा के बगल वाले खेत में फेंक देती है.. और दुल्हिनिया को समझाती है “ जब हमर बहिन बड़का-बड़का जोक से नहीं डरती है तो ई छोटका-छोटका जोक से काहे डरती है .. डरने का नहीं बहिन!!” इतना कहते ही दुल्हिनिया मारे शर्म के “हट दीदी तोहू ने!” बोलते हुए अपना चेहरा घुघा से ढँक लेती है..  और फिर सब हँसने लगते हैं।
इसी हँसी-ठिठोली के बीच बिहिन-मारने और हल जोतने का काम चलते रहता है.. कुछ देर बाद दादी आ जाती है जलपान ले के … मेढ़ में से आवाज लगाती “ अरे आवा.. धनरोपनी आर हरवाहा सब.. जलपान कइर ला”
सब हरवाहा और धनरोपनी सब अपना पैर-हाथ बगल वाले बिन-जोताये खेत के पानी में धोते हैं और जलपान करने को बैठ जाते है। .. फिर एज उजुअल खाते-खाते दुनियादारी की बातें होने लगती है। सीतवा मैया बोल रही है “ जानो ही गे सोमरी माय..  कल फागु महतो के बड़का खेतवा का रोपाई चल रहा था.. उसकी नतनिया सब जो बोकारो में रहती है न उ सब भी रोपाई कर रही थी.. एकदम सटल-सटल जिनिस(जिन्स) आर टी-सरट पिंध(पहन) के! ..!”
इतने में दिलपिया माय बोलती है “ हाँ तो की सीतवा माय .. जब बोकारो सहर में रहत है तो जिनिस आर टी-सरट तो पिंधबे करेगी न ! एकर में की बोड़ बात है.. नया जमाना के लड़की सब है तो मॉडन पिंधबे करेगी न!”
सीतवा माय “हाँ से अइसन पिंधना(पहनावा) .. एकदम से सटल-सटल ! .. अच्छा छोड़ .. ऐ रमेसरा के कन्याय तोहू पिंधती थी का अपन नईहर में जिनिस आर टी-सरट ?”.
“हाँ कभी-कभी पिंधते थे .. बराबर नहीं.. हम तो जादा सलवारे-सूट में ही रहे है।“
“हाँ ई ठीक करती थी कन्याय.. हमको न जिनिस-विनिस बिल्कुल भी पसंद नहीं है!”
अब सबतिरिया(सावित्री) माय बोली “ तोर पसंद आर नापसंद से की फरक पड़े वाला हो सीतवा माय.. आईझ-कल तो अहे सब के जमाना हो.. अब ई लुगा-घुघा का जमाना जल्दी जावे वाला हो .. अब ई जिनिस आर टी-सरट के जमाना शुरू हो! .. अब कुछ बरस बाद बहुरिया सब जिन्से पहिन के खेत में रोपाई करेगी.. हाँ!”.
“हाँ सबतिरिया माय ठीके कहो ही तोय .. जमाना चेंज भेवे लागल हो.. आर हमरा के लागत है कि हमार नतिन-पुतोह कोय जिन्स्वे वाली आएगी!!”
खाते-खाते एकाएक फिर से सब हँस पड़ते है।
जलपान हो जाने के बाद फिर सभी खेत में उतरते हैं.. बिहिन तेज-तेज मार के मेढ़ में रख देते है.. कुछ देर में जोतना भी हो जाता है.. उसके बाद रक्सा करके खेत को समतल किया जाता है.. फिर मेढ़ में रखे बिहिन के जोठों को खेत में फेंका जाता हैं.. उसके बाद सभी धनरोपनी खेत में उतरते हैं और रोपाई शुरू कर देते है..
रोपते-रोपते ही..
सीतवा माय, “ ऐलो मारी .. अब तो जमाना बदल रहल हो.. तो ई नया जमाना के लड़की सब तो धनरोपनी गीत नहीं गायेगी न ! .. लेकिन जब तक हमलोग जिन्दा है तब तक तो गा ही सकते है न ?”
दिलपिया माय , “ हाँ .. हाँ .. सीतवा माय काहे नाय.. शुरू करा !! “
फिर सीतवा माय के सुर छेड़ते ही सभी एक साथ गाने लगते है.. रमेसरा के खेत में जब गीत गूंजती है तो अगल बगल के खेतों में रोप रही दूसरी धनरोपनी सब भी गीत गाना शुरू कर देती हैं। लेख के शुरुआत में जो उल्लेखित दृश्य है उसमें जब ये कर्णप्रिय गीत घुलती है न तो .. आह!! क्या कहने !! मन करता कि मेढ़ में बैठ के बस आनन्द लेता रहूँ.. लेता रहूँ !! “
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अब ये अनूठा दृश्य आँखों से ओझल होता जा रहा है.. जमाना मोडर्न हो रहा है.. अपनी भाषाएँ बोलने तक में लोगों को शर्म आ रही है तो ये गीत-वीत की बात तो छोड़ ही दीजिये.. जिंस पहने लड़कियां खेत में उतर तो रही है लेकिन गीत के नाम पे कमर में चाइना फोन लटकाये फूल साउंड में “यो.. यो” मंगलोच्चारण का गीत बजा रही हैं।
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गंगा महतो
खोपोली।

Sunday, July 17, 2016

||नन्दन वन||

|| नंदन वन ||

चलिए आज रुख करते हैं नंदन वन की तरफ़. वनों की दुनिया का एक अनोखा वन जहाँ की जीव-जंतुओं की सामरिक समरसता की मिसाल दुनिया के हरेक वन दिया करते हैं. लेकिन कुछ दिनों से वहाँ सबकुछ सही नहीं चल रहा हैं. इसीलिए हमने सोचा की चलो देख लिया जाय की क्या घटित हो रहा है वहाँ.
न्यूज़ चैनल ऑन किया… नंदन वन टी.वी. (NVTV)  पे ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही थी….. नंदन वन के झींझरी इलाके से एक ब्रेकिंग न्यूज़ आ रही हैं कि, भैसों के एक उन्मादी समूह ने शेरों के एक परिवार के ऊपर हमला किया हैं  जिसमें परिवार के मुखिया बब्बन शेर समेत उनके पांच बच्चे और दो बीवीयाँ मारे गए हैं. भैसों ने निर्ममता की सारी हदें पार करते हुए बड़ी ही बेरहमी से उनका क़तल किया हैं. अभी-अभी डिस्कवरी चैनल से वहाँ की एक्सक्लूसिव तस्वीरें आ रही हैं जो हम आपको दिखा रहे हैं. लेकिन उनकी तस्वीरें हम आपको ब्लर कर के दिखा रहे हैं क्योंकि ये इतने भयावह हैं कि हम आपको दिखा नहीं सकते.
हमारे NVTV संवाददाता जीतन भालू घटना स्थल पे पहुँच चुके हैं… और कुछ ही देर में हम आपको रीटा शेरनी जो कि बब्बन शेर की पत्नी हैं उनसे उनकी बात-चीत दिखाने वाले हैं……..
कुछ देर बाद जीतन भालू रीटा शेरनी का इंटरव्यू ले रहे हैं…
जीतन भालू – रीटा जी… जो कुछ भी आपके परिवार के साथ हुआ हैं वो बहुत ही दुखद व निंदनीय हैं…. लेकिन रीटा जी हम जानना चाहते हैं कि आखिर हुआ क्या था ?? इस फसाद के पीछे वजह क्या थी ?
रीटा शेरनी – वजह का तो हमें नहीं पता जी. आज हमसब सुबह के 9 बजे रात के बचे डिनर के ज़ेबरा के पैर चूस रहे थे. तभी हमने देखा की भैंसों का क़रीब 60-70 का झुण्ड हमारे घर के बाहर जमा होने लगे. हमने तो पहले सोचा कि ये सब नार्मल हैं. लेकिन कुछ देर बाद भैंसों ने हमारे घर की तरफ़ बढ़ना शुरू कर दिया.  इतनी संख्या में भैसों  को अपनी ओर आता देख हम सब हड़बड़ा गए. हमारे पति बब्बन जी उन्हें समझाने के लिए आगे बढ़े. इससे पहले कि वो कुछ बोल पाते एक भैंस ने हमारे पति के ऊपर ज़ोरदार अपने सिंग से वार किया और उन्हें हवा में उछाल दिया और हवा में ही एक दूसरे भैंसे ने भी वार किया और उनका पेट फाड़ दिया. इतने में से उनको नहीं छोड़ा…ज़मीन पे गिरते ही वहाँ मौजूद अन्य भैंसों ने उसे कुचलना शुरू कर दिया. बब्बन के मरते ही भैंसों का समूह हमारी ओर बढ़ा जिसमें हम, हमारी दो सौतन और पांच बच्चे थे. हम बच्चों को लेकर वहाँ से भागने लगे. बीच-बीच में भैंसों का हम प्रतिकार भी कर रहे थे, लेकिन भैंसों की संख्या बल के सामने हम बेदम हो गए और भैंसों ने पहले हमारी दोनों सौतन को बहुत ही बेरहमी से मारा. फिर उन्होनें हमारे पाँच छोटे-छोटे मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा. मैं वहाँ से जैसे तैसे भागी और पेड़ पे जा चढ़ी और अपनी जान बचाई.
जीतन भालू – आपकी भैंसों से कुछ आपसी दुश्मनी थी ?
रीटा शेरनी – हमें पता नहीं जी…. मैं कल से घर के बाहर नहीं गई हूँ… बच्चों के देखभाल हेतु मैं घर पर ही थी. और बाहर क्या हुआ वो हमें नहीं मालूम…
जीतन भालू – अब आप क्या चाहती हैं ?
रीटा शेरनी – बस हम यही चाहते हैं कि जिन्होंने भी हमारे परिवार का ये हाल किया हैं उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले.
जीतन भालू – अब चूँकि… नन्दन वन में भैंसों व उनकी सहयोगियों की सरकार हैं….तो क्या आपको लगता हैं कि आपको न्याय मिल पायेगा ?
रीटा शेरनी – पता नहीं….. लेकिन हमें नंदन वन के कानून व्यवस्था पे पूरा भरोसा हैं..
जीतन भालू – तो देखा आपने कि किस तरह से बेरहम भैंसों ने बब्बन शेर के परिवार के ऊपर हमला किया और उन्हें मार डाला.  रीटा शेरनी चाहती हैं कि दोषियों को सज़ा मिले. ..बब्बन शेर और उनके परिवार की मौत की चीख और रीटा शेरनी की फरियाद नंदन वन सरकार तक पहुँचे…. कैमरामैन छोटू जिराफ़ के साथ मैं जीतन भालू NVTV,झींझरी नंदन वन.
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नंदन वन के तमाम मैन स्ट्रीम मीडिया मसलन... फॉरेस्ट नाउ, जंगल आज तक, ज़ी एनिमल, नंदन वन टुडे, आदि चैनलों पे सिर्फ और सिर्फ यही न्यूज़ बाईट चल रही थी… सब अपने-अपने तरीके से न्यूज़ चला रहे थे. ज़्यादातर चैनल वालों ने तो बब्बन शेर के घर पालथी मार के बैठ गए थे…हर पल हर सेकंड की खबर दे रहे थे. तो कोई कोई चैनल मामले की तह तक जा रहे थे. रात के प्राइम टाइम में चर्चा का विषय सिर्फ यही था कि… “ क्या मंगरु भैंसा की सरकार में अल्पसंख्यक Big Cats शेर,चीते,बाघ आदि सुरक्षित हैं ?”.
NVTV पे आ रहा था – पिछले हफ्ते भी सिंसरी इलाके में भैंसों के एक समूह ने चीते के एक परिवार के ऊपर हमला किया था और पुरे परिवार को मार डाला था…. इसी तरह दो दिन पहले ही एक तेंदुए के ऊपर जानलेवा हमला हुआ था और आज बब्बन शेर के परिवार के ऊपर…भैसों का एक संगठन कह रहा हैं कि Big Cats की संख्या बेतहाशा बढ़ रही हैं नंदन वन में जो कि नंदन वन के अस्तित्व के लिए खतरा हैं….हम जानना चाहते हैं कि… अगर शेरों चीतों की संख्या बढ़ जायेगी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा नंदन वन में ?
जंगल-आज-तक पे आ रहा था – जब से मंगरु भैंसा की नंदन वन में सरकार बनी हैं… तब से शेरों के ऊपर लगातार हमले हो रहे हैं… और सरकार हाथ पे हाथ धरे बैठी हुई हैं…और मंगरु भैंसा जी भी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही हैं इन मामलों के सम्बन्ध में. आखिर कब तक थमेंगे ऐसे हमले शेरों व अन्य अल्पसंख्यक जानवरों के ऊपर ?
Forest now पे आ रहा था – the whole Nandan Wan wants to know that why the some fascist group of Buffalo brutally killed Babban lion,his wives and his innocent cubs ? Who is responsible for this ? join me on prime time fwitter hashtag #jhinjhariattack.
ज़ी-एनिमल पे आ रहा था – दर्शकों आज झींझरी में हुई बब्बन शेर के परिवार के ऊपर हुए हमले और उसके पहले भी हुए हमलों का DNA टेस्ट करेंगे. झींझरी में हुए हमले और उसके पीछे का कारण बताएंगे क्योंकि उस हमले का पूरा वीडियो हमने डिस्कवरी वालों से मंगवाया हैं जो की आपको देखना और समझना बेहद ज़रूरी हैं,जो अन्य न्यूज़ चैनल वाले आपको नहीं बता रहे हैं. पूरी घटना हम आपको बता रहे हैं…
दरअसल बात शुरू हुई थी भूरा भैंसा के दो बच्चों के मरने के बाद. जैसा की आप वीडियो में देख पा रहे हैं… कि कल दोपहर 3 बजे भूरा भैंसा अपने दो बच्चे और कुछ पड़ोसियों के साथ नदी में पानी पीने आये थे. वहाँ पहले से ही बब्बन शेर और उनकी दो पत्नियां घात लगाए बैठे थे, जैसे ही भैंसों ने पानी पीना शुरू किया शेरों ने अचानक हमला बोल दिया. इस अचानक हमले से अफरा-तफरी मच गई. भैंसें लगे दौड़ने और उसके पीछे बब्बन शेर और उसकी बीवियां… शेरों की तेजी के आगे भैंस के 4 महीने के दो बच्चों की तेजी कम पड़ गई…. बब्बन शेर ने एक झटके में एक बच्चे की गर्दन की नली दबा दी. और दो शेरनियां दूसरे बच्चे की ओर झपट्टा मारी, शेरनी के एक पंजे के वार से बच्चा लड़खड़ाता हुआ नदी में जा गिरा,फिर शेरनियां वहां से उसको खीच के बाहर निकालने का प्रयास करने लगी.  इतने में ही नदी में मौजूद मंगरमच्छ ने भी बच्चे पे हमला बोल दिया. और फिर दोनों पक्षों में ज़बरदस्त छीना-झपटी होने लगी. लेकिन इस छीना-झपटी में मंगरमच्छ ने बाजी मार ली और शेरनियां निराश वहां से लौटी…….. फिर रात भर भैंसों ने मीटिंग की कि आगे क्या किया जाय ? और सुबह 9 बजे तड़के भैंसों ने एक गुट बनाकर बब्बन शेर के घर के ऊपर हमला कर दिया जैसा की अन्य चैनल वाले बता रहे हैं…. यहाँ हम भैंसों के इस कृत्य की प्रशंसा नहीं कर रहे हैं. भैसों ने जो कुछ भी किया बिलकुल ग़लत किया. हमारे नंदन वन की एक कानून व्यवस्था हैं..अगर भैंसों के साथ कुछ बुरा हुआ था तो नज़दीकी थाने में FIR करवानी थी. कानून को अपने पैर में नहीं लेना था.
हमारे साथ इस वक़्त ‘भैंस बचाओ समिति’ के प्रवक्ता मोती साँढ़ जी जुड़ चुके हैं. आइये उनसे जानते हैं… क्या कहना हैं उनका इस घटना के बारे में..
ज़ी-एनिमल – मोती साँढ़ जी हम जानना चाहते हैं कि क्या वो भैंसों का झुंड जो बब्बन परिवार को मारने के दोषी है.. आपके ग्रुप से संबंध रखते हैं क्या ? और दूसरी बात ये कि आप ये पूरी घटना के बारे में क्या सोचते हैं ?
मोती साँढ़ – देखिये मैं आपको बता दू कि इस हमले के पीछे हमारे संगठन का कोई पैर नहीं हैं. लेकिन जिस संगठन ने भी ये काम किया हैं काबिले तारीफ़ किया हैं. आखिर कब तक हम इनके अत्याचारों को सहे.
ज़ी-एनिमल – लेकिन मोती साँढ़ जी… कानून व्यवस्था नाम की भी चीज हैं नंदन वन में ?
मोती साँढ़ – अरे कौन सी कानून व्यवस्था की बात कर रहे है आप ? आप बताये की नंदन वन की किस क़ानून की किताब में लिखा हैं कि शेर भैस के मासूम बच्चों का भक्षण करें. शेरों के आहार के लिए मानक तय किये गए हैं हमारी क़ानून-व्यवस्था में लेकिन क्या वो शेर उन मानकों को मान रहे हैं. खुले आम वो उनकी धज्जियां उड़ा रहे हैं..आप उनसे क्यों नहीं पूछते ? आज कोई शेर मरा हैं तो पूरा मीडिया और सियासी हलक़ा उसे कॉवेरेज् दे रहा हैं…आप लोग उस वक़्त कहाँ चले जाते हो जब शेर और बाघ वगैरह अंधाधुंध हमको मारते हैं ? उस टाइम पे मीडिया अन्तःपुर में चली जाती है और तमाम सियासतदां कान में माइक्रोफोन डाल के जश्न मना रहे होते हैं. लेकिन जैसे ही कोई शेर मरता हैं हम भैंसों के पैरों से तो सब एकाएक हरक़त में आ जाते हैं. जब शेर आपस में एक-दूसरे का नली दबाते हैं तब तो कोई चर्चा नहीं करता. लेकिन जैसे ही किसी भैंसे ने किसी शेर को मारा पूरा बखेड़ा खड़ा कर देते हो,वो भी एकपक्षीय. अगर हमारे बच्चों के ऊपर इस तरह से हमले होते रहे तो हम भी क़ानून को ताक में रखकर वही करेंगे जो आज झींझरी में हुआ हैं.
ज़ी-एनिमल – अंत में क्या कहेंगे आप ? क्योंकि अब ब्रेक पे जाना हैं..
मोती साँढ़ -  हम जुगाली भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो पूरा खा जाते हैं तो चर्चा नहीं होती |
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नंदन वन के सियासी गलियारों में ये अब हॉट चर्चा का विषय बना हुआ था. हर कोई राजनीतिक दांव पेंच खेल रहा था.  ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां शेरों के पक्ष में थे…वन के बुद्धिजीवी वर्ग सियार,लोमड़ी,कौवा आदि भी शेरों के पक्ष में थे. रंगानाथ सियार ने बताया कि – रात को fwitter पे 7 महीने का एक भैंस का बच्चा मुझे धमकी दे रहा था कि.. अबे रंगानाथ सियार सुधर जा…शेरों की फेंकी हुई हड्डियां चूसने वाला..तेरी वही हालत करेंगे जो हमने बब्बन के साथ किया हैं …. अब वो सात महीने का भैंस का बच्चा मुझे बताएगा कि मैं किसकी फेंकी हुई हड्डियां चूसता हूँ. इस तरह का इंटोलेरेंस नहीं चलेगा…हम शेरों के ऊपर हुई इस हमले का पूरी तरह से मज़्ज़म्मत करते हैं. और हम अकेले नहीं कर रहे हैं. अफ्रीका के तंजानिया, केन्या,ज़िम्बाबवे आदि देश के भैंस भी लानत भेज रहे हैं…यहाँ तक कि ब्राज़ील के हिरण भी लानत भेज रहे हैं. और हमारे प्रधान मंगरु भैंसा ने अब तक एक बयान भी देना मुनासिब नहीं समझा हैं. जल्द ही उन्हें इस मामले में दखल देना चाहिए. और दखल ही नहीं …हम तो चाहते हैं कि सरकार Lion Act में बदलाव भी करें क्योंकि वो act अब अप्रसांगिक हो चुका हैं…… हम तमाम सियासी पार्टियों से अनुरोध करते हैं कि जल्द ही संसद में इस बात की चर्चा हो. और क़ानून में संशोधन हो.
खूब विरोध प्रदर्शन हुआ सरकार के खिलाफ…..
अगले दिन सरकार संसद का इमरजेंसी सत्र बुलाती हैं… सभी पार्टियां Lion Act  के ऊपर बहस कर रही हैं. सभा अध्यक्ष मुनमुन हिरन ‘ ऑल नंदनवन सिंह एकता पार्टी’ के अध्यक्ष छेदन शेर को अपना पक्ष रखने को कहती हैं..
छेदन शेर- “अध्यक्षा जी… पिछले Lion Act के मुताबिक़ जिसमें शेर,बाघ,लकड़बग्घे,चीतें (Big Cat)…शामिल हैं,उसमें कहा गया हैं कि कोई भी शेर या उपरोक्त उल्लेखित जानवर किसी भी भैंस,गाय,ज़ेबरा,विल्डबीस्ट,बारहसिंगा… आदि जानवरों के बच्चों को मारकर नहीं खा सकते. खाने के लिए हम गंभीर रूप से बीमार या फिर बुढ्ढे जानवर का चयन कर सकते हैं. और अपने इलाके में किये गए शिकार को हम किसी दूसरे इलाके वालों से साझा नहीं कर सकते.”
अध्यक्षा जी अभी तक इस क़ानून से हमें कोई समस्या नहीं थी. हम जब पूरी आबादी के 0.786 % थे तब हमें खाने-पीने की कोई तक़लीफ़ नहीं थी,हम सब क़ानून के दायरे में ही अपना पेट भरते थे. लेकिन अब हमारी आबादी 4.79% हो गई हैं और हमें भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा हैं….हमारे बच्चे 2-2,3-3 दिन तक सिर्फ हड्डियां चूस के ही काम चलाते हैं. कुपोषण के शिकार हो रहे हैं हमारे बच्चे…. मोहतरमा हम क़ानून का सम्मान करते हैं…लेकिन पेट की आग के आगे हम मज़बूर हैं…हम अध्यक्षा जी से गुजारिश करते हैं कि..इस क़ानून को संशोधित किया जाय..हमारे आबादी के मुताबिक हमें शिकार करने की और छूट दी जाय… वरना नंदन वन में क़यामत आ जायेगी.
अब अध्यक्षा जी ने ‘महिष युवा मोर्चा’ के सांसद सिंगरा भैंसा को आमंत्रित किया.
सिंगरा भैंसा – अध्यक्षा जी…ये छेदन शेर किस तरह की बात कर रहे हैं… इनकी आबादी बढ़ गई तो इन्हें अपने सहूलियत के हिसाब से क़ानून में संशोधन चाहिए,लेकिन हमारी आबादी जो घट रही हैं उसका क्या ? पेट का सवाल हैं..पेट का सवाल हैं… अरे पेट का इतना ही ख्याल रहता तो इतने बच्चे पैदा नहीं करते. साल भर में छः सात बच्चे पैदा करते हो…अगर कोई दूसरा शेर इनके बच्चों को मार देता हैं तो दूसरे बच्चे निकालने में दो दिन का भी इंतज़ार नहीं करते. और हमारा क्या हैं… हमारा बच्चा मरता हैं तो हमें दूसरे बच्चे के लिए साल भर का इंतज़ार करना पड़ता हैं. अगर आपको नंदन वन में रहना हैं तो अपनी आबादी को कंट्रोल करो… वरना मानवों के किसी सर्कस में जा के भर्ती हो जाओ,वहां आपलोगों को बना बनाया पेट भर खाना मिलेगा…… क़ानून में कोई भी संशोधन नहीं होगा. और क़यामत की धमकी किसी और को देना…आज हमनें ज़रा सी एकता क्या दिखा दी तुम्हारे तो तेरह बज गए.
छेदन शेर तमतमाते हुए – महोदया ये सिंगरा भैंसा कौन सी भाषा बोल रहा हैं… नंदन वन हमारा था,हमारा हैं,और हमारा रहेगा… हमने इस वन में जन्म लिया हैं और मरेंगे भी यहीं पे…हम किसी सर्कस-वर्कस में नहीं जाने वाले.अगर हमारी मांगे नहीं मानी गई तो सैलाब आ जायेगा नंदन वन में महोदया… सैलाब.
सिंगरा भैंसा- तो फिर मरने के लिए तैयार रहना… अब हम किसी धमकी से नहीं डरने वाले.
संसद में हो-हल्ला मच गया….एक दूसरे को मारने पे उतारू हो गए. इसी हो-हल्ले के बीच में ‘सियार होशियार पार्टी’, ‘गिद्ध स्वच्छ सेना’ ,’लकड़बग्घा यूनाइटेड’, ‘जिराफ़ हाईट्स’, ‘गज सेना’ ने एक सुर में सरकार से समर्थन वापसी की धमकी देते हुए संसद को बायकॉट कर दिया और संसद के बाहर धरने पे बैठ गए….और नारा लगाने लगे…शेरों को उनका हक़ दो..हक़ दो…Lion Act में संशोधन हो .. संशोधन हो…
भैंसों की मिली-जुली सरकार में सहयोगी पार्टियों के समर्थन वापसी की घोषणा से ज़बरदस्त हड़कंप मच गया. आनन-फानन में सरकार ने Lion Act का अमेंडमेंट संसद में प्रस्तुत किया… जो की भैंसों के तीव्र विरोध का बावज़ूद भी दो-तिहाई बहुमत से पास हो गई… जो कि इस तरह थी…
1.भैंसें जिनकी उम्र 14 साल से ऊपर हैं (नंदन वन में भैंसों की औसत उम्र 20 साल) Big Cats उनका शिकार कर सकते हैं. उससे कम उम्र का शिकार करने पे 2 महीने के लिए सर्कस में भेजा जा सकता हैं.
2. 4 महीने से छोटे आयु के बच्चों का शिकार करने पे उसे 4 महीने के लिए शिकार करने से प्रतिबंधित किया जाएगा.( उसके अन्य परिवार सदस्य को नहीं).
3. अगर भैंसों के हमलें में कोई Big Cats मारा जाता हैं तो दोषी भैंसों को मृत्युदंड दिया जाएगा और उसका मांस पीड़ित परिवार को सुपुर्द किया जाएगा.
4. भैंसें Big Cats और अन्य किसी जानवर के बीच हुए लफ़ड़े में दखलंदाज़ी नहीं कर सकते.
5. मंगरमच्छ या कोई और जानवर जिनके शिकार के लिए नदी,तालाब आदि अलोकेट किये गए हैं,वो big cats के शिकार क्षेत्र में पदक्षेप नहीं कर सकते.
6. Big cats के बीच आपसी झड़प में हुई मौतों को अपराध की श्रेणी में नहीं गिना जायेगा.
और डिस्कवरी वालों को सख्त हिदायत दी जाती हैं कि कोई भी ऐसी वीडियो मीडिया चैनल वालों को न दे और न मीडिया वाले ऐसी खबरों को प्रसारित करें जिससे अल्पसंख्यक Big Cats के ऊपर खतरा हो व हमारी सामरिक समरसता व सौहार्द को आघात पहुंचाता हो.
संसद के बाहर ज़ी-एनिमल का एक रिपोर्टर ‘भैंस बचाओ समिति’ के सांसद से – सर… आप कहना चाहेंगे सरकार के इस नए क़ानून के बारे में ?
सांसद – सरकार से हम बस इतना ही कहना चाहते हैं कि सत्ता के लोभ में खुद अपने,अपनी पूरी भैंस प्रजाति व इनके समकक्ष प्रजाति और आने वाली पीढ़ी के पैरों में कुल्हाड़ी मारा हैं. और जो इस क़ानून के समर्थन में वोट किए हैं वो आने वाले दिनों में बहुत पछताने वाले हैं.
That solve…. The end… finish..समाप्त… :) ;)
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गंगा महतो
खोपोली