Sunday, July 17, 2016

सीतवा

-:: सीतवा ::-
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सन् 1998 की बात है.. रखवा बस्ती का शुकर मांझी अपने दो-तीन साथियों के साथ एकदम भोरे-भोरे जब अँधेरा छँटा नहीं था तब बकरी के लिए पाल्हा (चारा) लाने के लिए जंगल की ओर निकला । जंगल के बोरवा गढ़ा के निकट पहुँचे ही थे कि एक नवजात बच्ची की रोने की आवाज़ सुनाई दी… रोने की आवाज़ बहुत जोर-जोर से आ रही थी… इतनी सुबह और यहाँ इस जंगल के बीचों-बीच बोरवा गढ़ा में जहाँ पे भूतों का निवास माना जाता है, वहाँ से बच्चे की रोने की आवाज़ ? शुकर मांझी के साथी सब डर गए… बोले ,” शुकर दा.. कुछ गड़बड़ सड़बड़ लग रहा है यहाँ … चलिए जल्दी से निकलते है इधर से .. अँधेरा छंट जाने के बाद आएंगे “.
“अरे ऐसा कुछ नहीं है.. जब शुकर मांझी साथ में है तो काहे का डरना ? .. चल.. चल के देखते है कि आवाज़ कहाँ से आ रही है.. और वहाँ क्या है ?”
“ ई साला शुकर मांझी पगलाय गेल हो मर्धे… लागो हो सुभे-सुभे चढ़ाय के आइल हो… एकर चक्कर में हमनी मत रोह मर्धे.. चल जल्दी भाग हिया से”.
और फिर सभी शुकर मांझी को अकेला छोड़ के वहाँ से भाग लेते हैं। शुकर मांझी मंतर पढ़ के अपने शरीर को बांधता है और आवाज़ आ रही दिशा की ओर चल पड़ता है। एक बरगद पेड़ के नीचे जहाँ से एक बड़ा सा नाला गुजरा था.. वहाँ सफ़ेद कपड़े में लिपटी एक बच्ची जोर-जोर से रो रही थी। शुकर मांझी डरते-डरते धीरे-धीरे बच्ची के पास पहुँचा और उसे 2-3 मिनट तक निहारता रहा.. फिर उसे झुक के छुआ.. और जब कन्फर्म हो गया कि ये कोई भ्रम नहीं है.. कोई भूत-वूत नहीं है तो उसे गोद में उठा लिए और हिलाते हुए चुप कराने लगे। पता नहीं कौन सी निष्ठुर माँ थी जो इस बच्ची को यहाँ जंगल में और इस नाले में छोड़ के चली गई थी ….  और पता नहीं कब छोड़ के गई थी ... सियार-हुंडार, साँप-बिच्छू का यहाँ बसेरा है, लेकिन भगवान ‘मरांग बुरु’ की कृपा थी की बच्ची को खरोच तक नहीं आया था। शायद मरांग बुरु ने ही दारु पीये शुकर मांझी को उस बच्ची के पास भेजा था।… शुकर मांझी उस बच्ची को अपने गमछा में लपेटा और अपने घर ले आया।
1-2 घंटे में ही पुरे रखवा और कोदवाडीह बस्ती में हल्ला हो गया कि शुकर मांझी को जंगल में एक बच्ची मिली है। उसके घर में उस बच्ची को देखने के लिए मज़मा लग गया। बात फैलते-फैलते हमारे गाँव भी आ पहुँची। मेरे गांव में दो जन निःसंतान हैं… एक बंधन महतो और एक लालू तुरी जो नावाडीह थाने में चौकीदार है… लालू तुरी को गांव में चौकीदरवा और उनकी बीवी को चौकीदरनिया कह के बुलाते है. ये दोनों मेरे रिश्ते में दादा-दादी लगते हैं। चौकीदरनिया गांव में कुसराइन(दाई) का काम करती है… लोगों के बच्चों का डिलिवरी करने का काम करती हैं.. लेकिन देखिये भगवान की माया या फिर विडंबना कि जो औरत दूसरों को माँ बनाने में मदद करती है, वो खुद माँ नहीं बन पाई थी। गाँव में अगर किसी नवजात बच्चे को हाड़ी लग जाए तो सीधा चौकीदरनिया को आवाज लगाया जाता है और चौकीदरनिया सब काम छोड़ कर दौड़ी चली आती है… जो औरत एक माँ और एक बच्चे का इतना ख्याल रखती थी,  उसे भगवान ने माँ के सुख से वंचित कर रखा था।
 जैसे ही ये खबर उनके कान में पहुँची दौड़ते हुए सीधा शुकर मांझी के घर पहुँची.. और शुकर मांझी से बच्ची को  देने का अनुरोध करने लगी। पीछे-पीछे बंधन महतो की बीवी भी पहुँच गई और उसने भी बच्ची की माँग कर दी। अब बच्ची को गोद लेने के लिए दो-दो दावेदार। लेकिन शुकर मांझी था कि किसी को देने के लिए तैयार ही नहीं। बोल रहा था कि “हम किसी को भी नहीं देंगे…. मरांग बुरु ने ये बच्ची हमको दिया है, तो हम ही इसको रखूँगा।“
शुकर मांझी के दो पुत्र और एक पुत्री थी, लेकिन फिर भी वो इस बच्ची को किसी को देने के लिए राजी नहीं हो रहा था।
समय बीतता गया तो और भी लोग जमा होने लगे… जो उधर के सम्मानित और गणमान्य व्यक्ति थे वो भी शुकर मांझी के घर पहुँच गए.. और मामला देखकर शुकर मांझी को समझाने लगे, “देखो शुकर…. तुम्हारे तो पहले से ही दो बेटे और एक बेटी है… तो तुम अभी संतान सुख का आनंद उठा रहे हो.. भले ही बाबा मरांग बुरु ने इस बच्ची की रक्षा के तुम्हें चुना, लेकिन अगर इस बच्ची के कारण किसी की सुनी गोद भर सकती है.. जो संतान सुख से अब तक वंचित है.. और तुम्हारे चलते उसमें मातृत्व और पितृत्व का भाव जगता है... तो इससे बड़ा और पुण्य का काम  भला क्या हो सकता है ?? किसी निःसंतान को संतान सुख देना इस संसार का सबसे बड़ा पूण्य है और इससे बाबा मरांग बुरु भी बहुत खुश होंगे।“
काफी मान मनोवल के बाद शुकर मांझी बच्ची को किसी को देने को राजी हुआ। लेकिन अब वहाँ एक समस्या हो गई.. बच्ची को अपनाने के लिए तीन-तीन दावेदार हो गए। अब इनमें से किसे दिया जाय ??
फिर विचार हुआ और बच्ची चौकीदरनिया को सौंप दिया गया ये जानकर कि ये कुसराइन है, बच्चों के बारे में इन्हें एक-एक चीज पता है… ये बच्ची का सबसे अच्छे तरीके से ख्याल रख सकती है।
 चौकीदरनिया ने सबको प्रणाम किया और बच्ची को अपने साथ लाने लगी। जब वो बच्ची को वहाँ से ले के निकली तो, वहीं सभा में मौजूद प्रयाग पाण्डेय साइकिल का पैंडल जोर से मारते हुए गाँव पहुँचे और खबर दिया कि चौकीदरनिया को उस बच्ची को दे दिया गया है और उसे वो पहड़िया वाले रास्ते से ले के आ रही है… हमलोग खबर सुनते ही पहड़िया वाले रास्ते कि ओर दौड़ भागे… सात आठ जन थे अपन… करीब पौन किलोमीटर की दौड़ाई के बाद चौकीदरनिया दिख गई… पास पहुँचते ही जिद्द करने लगे, “ आजी … आजी… नूनी के देखाव न आजी.. !!”  तो चौकीदरनिया ने हमलोगों को बच्ची को दिखाया फिर हमलोग बच्ची के गाल को छू-छू कर पुचकारने लगे। फिर हमलोग साथ-साथ ही चौकीदरनिया के घर तक आये… अब तो ये खबर दावानल की भाँति फ़ैल चुकी थी… चौकीदरनिया के घर में मेला लग सा गया बच्ची को देखने के लिए… हर कोई बच्ची का मुँह देख के पैसे से नज़र उतार रहे थे।हमारी मैया ने नज़र उतारने के बाद जब बोली कि, “ चौकीदरनिया… भगवान के घरे देर है अंधेर नाय… एतना सुन्दर बेटी छौवा.. गांवा में केकरो ऐसन बेटी नाय है चौकीदरनिया जेतना सुन्दर भगवान तोरा देल हो !!!”….  इतना सुनते ही चौकीदरनिया अपने आप को रोक नहीं पायी और बच्ची को सीने से लगा कर रोने लगी… माँ फिर बोली.. “ चौकीदरनिया आईझ तोय जी भर के काइंद ले.. काहे कि तोर इ लोर ख़ुशी के हो… आर तोर हरेक लोर काली मईया के प्रसाद जइसन हो आर ओकर आभार प्रकट के माध्यम।“
और जब पुरे गाँव का देखना हो गया तो… किसी ने नामकरण की बात छेड़ दी। फिर पुरे गाँव ने एक साथ उस बच्ची का नाम “सीता कुमारी” रख दिया… और प्यार से सब उन्हें “सीतवा” बुलाने लगे।
जहाँ पूरा गाँव इस बात से खुश था, वहीं एक परिवार इससे नाख़ुश था और वो चौकीदरवा का छोटा भाई सहदेव तुरी का परिवार… क्योंकि चौकीदरवा के रिटायर के पैसा और जमीन जायदाद उनके कोई वारिस न होने के चलते उनके बेटों को ही होना था. सो उनके परिवार ने मोर्चा खोल दिया, “ ई चौकीदरनिया पता नाय केकर जन्मल गीदर उठाय के लेले अइली ही.. केकर खून के पैदाइश आर केकर वंश के.. तोरे वंश के हमर गीदर-बुतरू मइर गेल हलथिन कि एक फैंकाइल गीदर उठाय के लेले अइले ही।“
और इसी तरह से जब बात बढ़ती तो.. उन दोनों परिवारों में भयंकर झगड़ा होने लगता… पहले तो एक दो दिन गाँव वालों ने बर्दाश्त किया लेकिन तीसरे दिन की लड़ाई में मुखिया जी और अन्य लोगों ने हस्तक्षेप कर दिया और सहदेव तुरी और उसके परिवार को जम के लताड़ा और धमकी दिया गया कि “ अगर अगली बार से सीतवा को लेकर किसी भी तरह का झगड़ा हुआ तो सीधा हमलोग पुलिस केस करेंगे तुमलोगों के ऊपर.. तो आज के बाद ये ध्यान रखना”…..  और तब जा के उसका परिवार शांत मारा। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ-साथ मन-मुटाव कम होते गया। और जब सीतवा चलने-भूलने लगी तो सहदेव तुरी का बड़ा लड़का बालेश्वर तुरी अपने दुचकिया में बैठा के घुमाने भी लगा.. अपने दुचकिया के नम्बर प्लेट और आगे में “सीता” भी लिखवा लिया। पूरा गाँव सीतवा का ध्यान रखता था.. कभी मेरे घर से तो कभी चाचा के घर से और इसी तरह लगभग सभी के घर से सीतवा के लिए दूध खीर जाता था। सीतवा चौकीदरनिया की बेटी न हो के पुरे गांव की बेटी थी और अब भी है। एक बार सीतवा बीमार पड़ थी.. पूरा सुईया-दवा के बाद भी ठीक नहीं हो रही थी तो,  चौकीदरनिया ने काली मईया से मन्नत मांगी कि यदि मेरी सीतवा ठीक हो गई तो मैं सात गांव के मांगल धान के पूवा-रोटी चढ़ाऊँगी और अपने घर से ‘दड़’ देती हुई काली मड़ा तक जाऊंगी।..   और काली मईया ने चौकीदरनिया की बात सुन ली और कुछ ही दिनों में सीतवा पूरी तरह ठीक हो गई। तो चौकीदरनिया ने अपने कहे अनुसार सात गाँव में पुरे ढाक-ढोल के साथ धान माँगकर और उसका पूवा पका कर अपने घर से ‘दड़’ देते हुए काली मड़ा तक गई और काली मईया को पूवा-पकवान चढ़ाई थी।
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समय बीतता गया.. और आज सीतवा 18 साल की हो चुकी है… उसकी शादी किमोजोरिया गाँव में सेट हो गया है.. 16 तारीख को लड़के का तिलक कर के आये है… 14 अप्रैल को सीतवा का लगन बंधना है और 18 अप्रैल को शादी। चौकीदरवा चौकीदरनिया समेत पूरा गाँव खुश है और हो भी क्यों न.. क्योंकि पुरे गाँव के बेटी की जो शादी हो रही है।…
मैं जब भी गाँव जाता हूँ तो चौकीदरनिया के घर जाकर चाय ज़रूर पीता हूँ। आज फिर चौकीदरनिया के घर बैठा हूँ और चाय पी रहा हूँ… चौकीदरनिया सामने बैठी है, उनके आँखों में आँसू भरे हुए हैं फिर भी मुझसे बोल रही हैं कि, “  इंजीनियर बाबू…  देख आईझ हम आपन सीतवा के बिहा कर रहल हिये, वहे सीतवा जेकर के तोय दौड़ के आइल हली पहरिया जगह देखे ले.. ओकरे बिहा कर रहल हिये… आर तोय कहिया करभी ?? जखन सीतवा के बाल-बुतरू भे जिबथिन तखन ? तोर बिहा में नाचे खातिर तो हम तरस रहल हिये इंजीनियर बाबू… कसम से तोर अंगनवा के हम धुर्रा उड़ाय देबे नाइच-नाइच के। आर तोर से बिना सीसी लियल हम मानबो नाय “.
उनका आँख से निकलते आँसू और उसका मज़ाक करना हमारी भी आँख को नम कर गया.. मैं सोच ही नहीँ पा रहा था कि प्रतिक्रिया कैसे दूँ ?
फिर जब थोड़ा शांत हुए तो बोला , “ आजी एक बात बोलियो “.
“हाँ बोल …. “
“ हम न लड़की पसंद कर लिए है !”
“के है… तनिक बताओ .. बताओ “
“ उ न…. तोर समधनिया हो !”
“ई इंजिनीयरवा कहियो न सुधरते”. …
और फिर हम सब वहाँ से निकल भागते है।.
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आज हमें यह सोचने को विवश कर रही है…  मैंने दो माओं को देखा .. एक जिसने जन्म लेते ही उसे मरने के लिए उसे जंगल में छोड़ दिया… और एक माँ जिसने उसे गोद लिया और दुनिया से लड़ी। बेटी को जंगल में फेंकने का दो ही कारण हो सकता है.. एक शादी पुर्व संतान हो या दूसरा बेटे की चाह में बेटी का होना ! और मुझे यहाँ दूसरा केस ज्यादा लग रहा है। क्योंकि बच्ची रंग-रूप से किसी बड़े घर की लग रही थी… और बड़े घरों में ही ज्यादातर बेटा-बेटी का लफड़ा चलता है। आज बेटियां कहीं से भी सुरक्षित नज़र नहीं आ रही हैं। न गर्भ में और न गर्भ के बाहर। गर्भ में रही तो एबॉर्शन और गर्भ के बाहर आई तो जंगल या फिर कोई कूड़ादान … और ये कुसंस्कृति हमारे तथाकथित पढ़े-लिखे समाज में ज्यादा ही प्रचलित हो रहा है। बेटा… बेटा… बेटा… और बेटा… लेकिन बेटे को जन्म देने वाली को ही नष्ट करने पे तुले हुए हैं।…  अरे तुम्हारे से तो बहुत अच्छे हमारे गाँव के अनपढ़ चौकीदरनिया जैसे लोग हैं जो दूसरे की बेटी को सिर्फ और सिर्फ संतान समझ के पालती-पोषती हैं। आज तक मैंने किसी ठेठ गाँव वालों को एबॉर्शन करते नहीं सुना है। पांच-छे बेटियों के साथ भी बड़े खुश हैं।

क्या अन्य लोग हमारी चौकीदरनिया आजी से सीख नहीं ले सकते ?

चौकीदरनिया और ऐसे ही तमाम चौकीदरनिया मेरी रोल मॉडल है वो नहीं जो बस बेटी बचाओ आंदोलन का झंडा थामे रहती हैं।
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लव यू चौकीदरनिया।।
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गंगा महतो
खोपोली।

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