Monday, July 18, 2016

||धनरोपनी||

आषाढ़ का महीना बीतने वाला है… मानसून अपने पुरे उफान में है… रोपा-डोभा का दिन चल रहा है.. बादल और सूरज के बीच अटखेलियां चलते रहती है… जो खेत-टोपरा टांड़-बहियार कुछ महीने पहले उजाड़ लग रहा था.. अब लंबी-लंबी हरी घासों से भर गया है… चिड़ियों की चहचहाहट पहले की अपेक्षा बहुत जादा बढ़ गई है..  गाय-गोरु भेड़-बकरी जो कल तक खुले में घूम रहे थे.. अब बाड़ में सब जमा होने लगे हैं .. शैतान टाइप के गाय-गोरु के गले में ठेरका(नेचुरल घण्टी) और घण्टी बाँध दिए गए है। घंटियों की टन-टन, ठेरका की ठर-ठर, भेड़-बकरियों की मेमाहट, चिड़ियों का कलरव, पानी की कलकलाहट, बादलों का गर्जन, आद्री हवाओं की सरसराहट जब एक साथ मिश्रित होती है न तो … आह !! क्या कहने !! .. विभोर और मस्त कर देने वाला वातावरण बन पड़ा है।
शादी-ब्याह का सीजन बीत चूका है.. नयकी-नयकी पुतोह सब अपनी-अपनी जेठानियों और सासु माँ के संग अपने-अपने खेतों में विचरण कर रही है .. रमेसरा का शादी हुए अभी दू हफ्ता भी नहीं हुआ है .. दाम्पत्य जीवन का अभी आनंद ही उठा रहे थे कि हाय रे ‘रोपनी’ के दिन आ गए ! … उसकी मैया भिनसोरिये-भिनसोरिये किवार का सिकरी खड़खड़ा-खड़खड़ा के उसकी बीवी को आवाज लगाने लगती .. रमेसरा तो चाहे कि अभी दू घण्टा आर संगे सुतल रहे .. लेकिन का कहे काम भी तो करना है.. संगे दुनो जेनी-मरद साथे आँख मलते हुए कमरे से बाहर निकलते और अपने-अपने काम में लग जाते है.. रमेसरा हल-जुआठ उठाता है और बैल में नार के खेत की ओर चल देता है.. बहुरिया चूल्हा चौकी में लग जाती है! .. मैया आवाज लगाती है “ ऐ बहुरिया ! .. आज न 10 पैला चार (चावल) मेराना .. बड़का खेतवा के आज रोपाई है.. दस गो रोपनी खोजे है.. आर  चार गो हरवाहा आरो आया है.. तो जल्दी-जल्दी रंधना-बटना करो.. बिहिन मारने भी जाना है!” .. बहुरिया सहमति में मुंडी हिलाती है और काम पे लग जाती है।
रमेसरा अपने चार भाइयों में से दूसरे नम्बर का है.. छोटका भाई गोमा अभी पढ़ रहा है.. तो उसके ऊपर डिपेंड करता है कि वो खेत आये या न आये .. बाकि तीनों भाई और बाप खेत चले गए है .. चार हलवाहा बाहर से हैं और एक अपने घर का.. बड़ा खेत है तो पाँच ठो हलवाहा हैं...
खेत की जुताई शुरू हो चुकी है.. अगल-बगल के खेतों में भी जुताई चल रही हैं… हाइर्-हिम ता-ता-ता.. बाह रे हीरा.. बाह रे हीरा... पइच्छ-पाईछ.. बायें-बायें… दायें-दायें..हो~~ ! की आवाजें एक दूसरे को काट रही है… तो कभी एकदम से ‘चारपाट~~’ की आवाज आती जो बैल को पइना(डण्डा) से मारने से निकलती और उसके साथ ही हरवाहा चिल्लाता, “ सारहे बरद हम बीसी के चाम ले लेबो रे … पइछ कहले कनवे घुसो न हो तोर.. आपने मस्ती में चलते रहे है.. हायं!!।“.. रमेसरा सब तीनों भाई कौड़ी करने और मेढ़ बाँधने में लग गए हैं। रमेसरा पाँच कौड़ी मारता फिर कमर पकड़ के खड़ा हो जाता.. इसकी ये हरकते पिछले आधे घण्टे से जीतू महतो जो रिश्ते में दादा जी लगते है गौर कर रहे है.. हल जोतते-जोतते ही आवाज लगाते है, “का रे रमेसरा ! .. बार-बार ई डड़वा(कमर) पकड़ के काहे खड़ा हो जाता है रे .. लगता है रतिया में कुछ जादा ही मेहनत कर रहा है!”. इतना कहते ही सभी हरवाहा ठहाके मार के हँसने लगते है.. रमेसरा एकदम से झेंप जाता है.. शरमाते हुए कुदाल चलाने लगता है।
… खेत की एक चास जुताई हो चुकी है.. दोहराना चालु है.. इतने में ही धनरोपनी सब भी आ जाती हैं.. ज्यादातर धनरोपनी सब रिश्ते में रमेसरा की भौजी लगती हैं..  खेत में उतर कर बिहिन मारने लगती है.... कुछ देर में ही रमेसरा की मेहरारू और मैया भी आ जाती है.. मेहरारू को देख को रमेसरा में गज़ब की फुर्ती आ जाता है.. धड़ाधड़ कुदाल चलाने लगता है।..  रमेसरा की मेहरारू भी बिहनाठी में उतर कर बिहिन मारने लगती है.. कुछ देर बाद तीनों भाई आते है और मारल बिहिन का जोठा(गठ्ठा) सब को खेत के मेढ़ में ले जा के रखने लगते है.. अभी चार-पाँच बार बिहिन उठा के मेढ़ पे रखे ही हुए थे कि एक भौजी ने टोक लिया .. “ का हो रमेसरा .. खाली आपने जेनिया(बीवी) के मारल वाला बिहिन ले जा रहा है .. हमलोग के मारल बिहिन में कोनो ग्रह-दोष है का ?”
रमेसरा फिर से झेंपते हुए “का भौजी ! .. अब आप लोग भी न मज़े ले लीजिये .. अरे जो बिहिन सामने दिख रहा है वो बिहिन उठा के ले के जा रहे है।“
“हाँ.. हाँ .. सब समझ रहे है हम.. कौन बिहिन ले के जा रहे हो और कौन सा नहीं !.. भौजी है तोहार.. जादा सिखाओ न हमको . हाँ!!”
(फिर सब रोपनी एक साथ हँस पड़ती हैं) .. रमेसरा फिर लाल हो जाता है.. अबकी बार से अन्य भाभियों का बिहिन का जोठा भी उठा-उठा के ले जाने लगता है.. कुछ देर बाद एक भाभी को और मस्ती सूझी.. बिहिन मारते-मारते कादो वाला पानी का झरपट्टा संझले वाले भाई भोला को दे मारी .. भोला का रूपा का व्हाइट कलर का गंजी एकदम से पीला हो गया .. भोला कादो पोंछते हुए, “का भौजी.. ई आषाढ़ में भी तोहनी सब के फाल्गुन चईढ़ गेल हो ने की !”
“नाय हो भोला.. कइसन बात करा हे हो..  फाल्गुन भेले एतने में तोहरा छोड़तलियो!!”
(फिर एक ज़ोरदार हँसी !) “ भक्क! .. तोहनी बड़ी मज़ाक करो ही !”
“ हाँ भोला .. कइसन करा हे हो.. देवर संगे मज़ाक नाय करबे तो की भैसुर संग करबे ?.. (ठहाके वाली हँसी) .. अच्छा सुना ने .. “
“हाँ बोल !”
“अगला लगनिया में तोहू पार लगाय लो!”
“हाँ लगाय लेंगे.. आपन बहिन सब को तैयार रखिये!”
“धोइर.. तोहे खाली हाँ तो बोला ने.. लाइन लगाय नाय देलियो लड़की सब के तो हमरा कहिहा !”
(फिर एक ठहाकेदार हँसी)
अभी हँस के कुछ देर हुए ही थे कि रमेसरा की मेहरारू ज़ोर से चिल्लाई .. “ ईईईईई..!! … ईईईईईई… ! .. मईया गे मईया.. जोक धरलो गे मईया.. ! ईईईईईई.. !!”
और लगी बिहनाठी में ही छटपटाने… इतने में एक भौजी आई और बोली “ अरे शांत हो जाओ.. शांत हो जाओ पहले.. कौन जोक है सो हम देखते है!” .. रमेसरा की मेहरारू शांत मारती है तो भौजी जोक को उसके पैर से छुड़ा के बगल वाले खेत में फेंक देती है.. और दुल्हिनिया को समझाती है “ जब हमर बहिन बड़का-बड़का जोक से नहीं डरती है तो ई छोटका-छोटका जोक से काहे डरती है .. डरने का नहीं बहिन!!” इतना कहते ही दुल्हिनिया मारे शर्म के “हट दीदी तोहू ने!” बोलते हुए अपना चेहरा घुघा से ढँक लेती है..  और फिर सब हँसने लगते हैं।
इसी हँसी-ठिठोली के बीच बिहिन-मारने और हल जोतने का काम चलते रहता है.. कुछ देर बाद दादी आ जाती है जलपान ले के … मेढ़ में से आवाज लगाती “ अरे आवा.. धनरोपनी आर हरवाहा सब.. जलपान कइर ला”
सब हरवाहा और धनरोपनी सब अपना पैर-हाथ बगल वाले बिन-जोताये खेत के पानी में धोते हैं और जलपान करने को बैठ जाते है। .. फिर एज उजुअल खाते-खाते दुनियादारी की बातें होने लगती है। सीतवा मैया बोल रही है “ जानो ही गे सोमरी माय..  कल फागु महतो के बड़का खेतवा का रोपाई चल रहा था.. उसकी नतनिया सब जो बोकारो में रहती है न उ सब भी रोपाई कर रही थी.. एकदम सटल-सटल जिनिस(जिन्स) आर टी-सरट पिंध(पहन) के! ..!”
इतने में दिलपिया माय बोलती है “ हाँ तो की सीतवा माय .. जब बोकारो सहर में रहत है तो जिनिस आर टी-सरट तो पिंधबे करेगी न ! एकर में की बोड़ बात है.. नया जमाना के लड़की सब है तो मॉडन पिंधबे करेगी न!”
सीतवा माय “हाँ से अइसन पिंधना(पहनावा) .. एकदम से सटल-सटल ! .. अच्छा छोड़ .. ऐ रमेसरा के कन्याय तोहू पिंधती थी का अपन नईहर में जिनिस आर टी-सरट ?”.
“हाँ कभी-कभी पिंधते थे .. बराबर नहीं.. हम तो जादा सलवारे-सूट में ही रहे है।“
“हाँ ई ठीक करती थी कन्याय.. हमको न जिनिस-विनिस बिल्कुल भी पसंद नहीं है!”
अब सबतिरिया(सावित्री) माय बोली “ तोर पसंद आर नापसंद से की फरक पड़े वाला हो सीतवा माय.. आईझ-कल तो अहे सब के जमाना हो.. अब ई लुगा-घुघा का जमाना जल्दी जावे वाला हो .. अब ई जिनिस आर टी-सरट के जमाना शुरू हो! .. अब कुछ बरस बाद बहुरिया सब जिन्से पहिन के खेत में रोपाई करेगी.. हाँ!”.
“हाँ सबतिरिया माय ठीके कहो ही तोय .. जमाना चेंज भेवे लागल हो.. आर हमरा के लागत है कि हमार नतिन-पुतोह कोय जिन्स्वे वाली आएगी!!”
खाते-खाते एकाएक फिर से सब हँस पड़ते है।
जलपान हो जाने के बाद फिर सभी खेत में उतरते हैं.. बिहिन तेज-तेज मार के मेढ़ में रख देते है.. कुछ देर में जोतना भी हो जाता है.. उसके बाद रक्सा करके खेत को समतल किया जाता है.. फिर मेढ़ में रखे बिहिन के जोठों को खेत में फेंका जाता हैं.. उसके बाद सभी धनरोपनी खेत में उतरते हैं और रोपाई शुरू कर देते है..
रोपते-रोपते ही..
सीतवा माय, “ ऐलो मारी .. अब तो जमाना बदल रहल हो.. तो ई नया जमाना के लड़की सब तो धनरोपनी गीत नहीं गायेगी न ! .. लेकिन जब तक हमलोग जिन्दा है तब तक तो गा ही सकते है न ?”
दिलपिया माय , “ हाँ .. हाँ .. सीतवा माय काहे नाय.. शुरू करा !! “
फिर सीतवा माय के सुर छेड़ते ही सभी एक साथ गाने लगते है.. रमेसरा के खेत में जब गीत गूंजती है तो अगल बगल के खेतों में रोप रही दूसरी धनरोपनी सब भी गीत गाना शुरू कर देती हैं। लेख के शुरुआत में जो उल्लेखित दृश्य है उसमें जब ये कर्णप्रिय गीत घुलती है न तो .. आह!! क्या कहने !! मन करता कि मेढ़ में बैठ के बस आनन्द लेता रहूँ.. लेता रहूँ !! “
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अब ये अनूठा दृश्य आँखों से ओझल होता जा रहा है.. जमाना मोडर्न हो रहा है.. अपनी भाषाएँ बोलने तक में लोगों को शर्म आ रही है तो ये गीत-वीत की बात तो छोड़ ही दीजिये.. जिंस पहने लड़कियां खेत में उतर तो रही है लेकिन गीत के नाम पे कमर में चाइना फोन लटकाये फूल साउंड में “यो.. यो” मंगलोच्चारण का गीत बजा रही हैं।
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गंगा महतो
खोपोली।

1 comment:

  1. अब ये अनूठा दृश्य आँखों से ओझल होता जा रहा है.. जमाना मोडर्न हो रहा है.. अपनी भाषाएँ बोलने तक में लोगों को शर्म आ रही है तो ये गीत-वीत की बात तो छोड़ ही दीजिये..

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