Sunday, July 17, 2016

किसानी

दो साल पहले की बात है…  मुम्बई से गाँव जा रहा था..  नागपुर पहुँचा तो वहां 4-5 जन हमारे कोच में चढ़े.. लगभग सभी अधेड़ उम्र के थे.. आ के हमारे अगल बगल ही बैठ गए… रायपुर जा रहे थे.. बातचीत से मालूम चला कि सभी के सभी रेलवे में कार्यरत हैं.. सामान्य बातचीत के बाद देश-दुनिया की बातें होने लगी, समसामयिक विषयों से लेकर राजनीति तक चर्चा होने लगी.. जैसा कि लगभग हरेक ट्रेन सफ़र में होता हैं.. लेकिन उनलोगों की चर्चा बड़ी स्वस्थ हो रही थी.. मैं भी उनकी चर्चा का आनंद ले रहा था.. एक जो उम्र में उन सब से बड़े थे वो स्टेशन मास्टर थे.. बोल रहे थे ,” आज हर कोई चाहता हैं कि उसका बेटा डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, IAS बने, क्लर्क बने, PO बने… लेकिन कोई नहीं चाहता कि उसका बेटा कोई किसान बने… किसान पे तो सब चर्चा करते हैं लेकिन किसान बनना कोई नहीं चाहता, दूध सबको चाहिए लेकिन कोई गाय नहीं पालना चाहता! “.
इतने में ही उनके एक सहकर्मी ने कहा ,” मास्टर जी आपने जो भी बोला उससे मैं सहमत हूँ, लेकिन मैं यहीं चीज आपसे ही पुछु कि आप अपने लड़कों को क्या करवा रहे हैं, तो ?? क्या आप अपने बच्चों को किसान बनाना चाहते हैं ?”
“ देखो.. मेरे पास ज़मीन के नाम पे सिर्फ मेरा एक गांव में पुश्तैनी घर हैं.. बाकी खेती के लिए कोई ज़मीन नहीं है… मैं रेलवे में जॉब लगने के बाद से रेलवे कवार्टर में ही रहा हूँ.. अगर मेरे पास ज़मीन होती तो मैं किसानी ज़रूर करता और अपने बच्चों से भी करवाता”.
“भारत की तो यही प्रॉब्लम हैं न मास्टर जी.. कि जिसके पास ज़मीन नहीं हैं वो खेती करना चाहता हैं और जिसके ज़मीन हैं वो खेती न करके डॉक्टर इंजीनियर बनना चाहता हैं!”.
इस बात ने मेरे को कचोटा.. मैं इंजीनियर हूँ और हमारे पास खेती के लिए ज़मीन भी हैं…. लगभग सभी भाई खेती करने से धीरे-धीरे कटने लगे थे.. लेकिन पिताजी थे कि गाली दे-दे के किसी तरह हमलोग से काम करवा ही लेते थे……   एक बार  हमलोग खेती करने के लागत और नफा-नुकसान का हिसाब बैठा के पापा को बताने लगे कि “पापा इससे अच्छा हैं कि आप खेती ही मत करो… बेकार में इस बुढ़ापे में परेशान होते रहते हो.. खटते हो .. थकते हो.. फिर हमें दो बात सुनाते हो.. इससे अच्छा है कि हम आपको महीने के महीने पैसे भेज दिया करेंगे… सब कुछ खरीद के खाइये.. आप आराम से अपना बुढ़ापा काटो.. और ई खेतीबारी और गाय-गोरु का मगज़मारी छोड़ो।“ …
पापा हमारे अंगूठा छाप है.. उन्होंने ये बातें ज़रा गौर से सुनी और फिर समझाया.. “ देखो बेटा.. नौकरी मैं भी करता था.. और तुमलोगों से तो ज्यादा भी कमाता था.. आज जितनी हमारे पास जमीन हैं कल उसके आधी भी नहीं थी… लेकिन फिर भी खेती करता था.. कमिया (मज़दूर) लगा के खेती करता था.. आठ-दस घण्टे की नौकरी के साथ-साथ खेती भी करता था… तुम सब ये सब भलीभांति जानते हो… CCL इंडिया टूर के लिए छुट्टी देता था लेकिन मैं इंडिया टूर न करके खेती में लगा रहता था.. आखिर भला क्यों ?? … क्योंकि हम किसान के बेटे हैं… किसानी हमारी पहचान हैं.. अगर हम किसानी नहीं करेंगे तो कौन करेगा किसानी ?? पैसा मैं भी कमाता था लेकिन किसानी नहीं छोड़ी.. आज तुम दो पैसे कमाने लगे तो कहने लगे कि किसानी छोड़ दो ! पैसा भेज देता हूँ.. चावल खरीद के खा लो. .. वो तो हम खा लेंगे.. लेकिन हमारी इतनी ज़मीन परती रहेगी उसका क्या ? और ऊपर से तुम खेती करना भूलोगे वो अलग से ! .. जो चावल हम ऊगा के खा सकते हैं उसको हम खरीद के खाएंगे.. मने जिसके पास जमीन नहीं हैं उसके हिस्से का खाएंगे.. अब जब हम उसके हिस्से का खाएंगे तो फिर ज़ाहिर है कि उसके लिए चावल कम पड़ेगा .. और कम पड़ेगा मतलब महंगाई बढ़ेगी !! .. मने हमारे न खेती करने से तुम समझ सकते हो कि कितना कुछ हो सकता हैं।.. आज बस सब लोग पैसे से ही सब कुछ खरीदना चाहते हैं.. खटना कोई नहीं चाहता हैं … सब बैठे बिठाए चाहिए.. बस पैसा फेंको और सब चीज हाज़िर.. और महंगाई बढ़ गई तो सरकार दोषी .. और फिर क्या होता है तुम्हें तो पता ही हैं। .. अब तुमलोग समझदार हो गए हो तो इसलिए जादा न समझाते हुए बस यही कहूँगा कि कितना भी पढ़ लिख जाओ.. कमाने लगो.. लेकिन अपने चीजों से नाता मत तोड़ो.. नहीं तो फिर वो दूसरों के लिए समस्या का कारण बन जाता हैं। “.

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हमेशा महुआ में तैरने वाले पापा के मुँह से इस तरह का ज्ञान पा के मैं अचंभित था और मन्त्रमुग्ध भी.. !
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तब से मैंने निर्णय लिया.. कि अब आलतू फ़ालतू के टाइम पे घर नहीं जाऊंगा… जाऊंगा तो खेती के टाइम में मदद करने के लिए ही… ! चाहे तो मैं पैसे भेज के काम करवा सकता हूँ लेकिन वही कि फिर मैं किसानी भूल जाऊंगा.. इसलिए पैसे के साथ-साथ मैं कृषि-कार्य में योगदान देने हेतु स्वयं चला जाता हूँ। .. मैंने छुट्टी के शेड्यूल बदले और धान रोपाई (जुलाई-अगस्त) और धान कटाई-मेसाई (दिसंबर) के समय ही छुट्टी लेता हूँ और घर जाता हूँ।
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गंगा महतो
खोपोली।

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