-:: हमार टीभी ::-
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टीभी … टीभी माने टेलीभीजन… आर उ भी ब्लैक एंड वाइट वाला टेलीभिजन। इनका जब भी जिक्र आता हैं, हम अकेले नहीं लगभग हर कोई अपने-अपने बचपन में चला जाता हैं.. एक से अकेस खिस्से कहानी याद आने लगते हैं। सबके अपने-अपने और बड़े अजूबे-अजूबे टाइप के एक्सपीरियंस रहे हैं टीभी के साथ। तो आज मैं भी आप सब को अपने पियारी टीभी रानी से परिचय करवाये देता हूँ।
मेरा गाँव याने मंझलीटांड़ .. बड़ा गाँव हैं .. सन् 1997-98 में अनुमानतः 500 घरों में मात्र पाँच घरों में टीभी था.. मतलब सैकड़ा घर में एक टीभी… और उस ज़माने में टीभी जब अपने यहाँ बिजली नहीं थी… मने हमारी पियारी टीभी रानी खाली 12 भोल्ट के बैटरियां से चलती थी, जिसको कि डाउन होने के बाद चारज करवाने के 10-15 रुपिया लगता था। और ये टीभीया रानी जिन पाँच घरों में शोभा बढ़ा रही थी न वो न अपने आप को फिलिप्स, सलोरा और वीडियोकोन के रिश्तेदार समझते थे, उनके घर के सभी सदस्यों को देवतातुल्य समझा जाता था…. उनके घर के छोटे बच्चें जो टीभी ऑपरेट कर लेते थे उनको वैज्ञानिक से कम दृष्टि से नहीं देखा जाता था। अब हम बच्चे थे तो टीभी के भोत जादा शौक़ीन… कृष्णा का एक एपिसोड छूट गया तो सन्डे और मन्डे तक को खाने का एक नेवाला तक मुँह में नहीं जाता था। सन्डे के दिन मेहमानी के लिए किसी दूसरे गाँव नहीं जाता था… और जाता भी तब था जब कम्फर्म हो जाता था कि उस गाँव में टीभी देख सकते है। ज्यादातर टीभी नहीं देख पाने का कारण टीभी मालिकों द्वारा मुँह देख-देख के टीभी वाले कमरे में घुसने देना होता था। और जैसे ही पिरोगराम शुरू हुआ कमरे का हुड़कु बन्द हो जाता था… और उसके बाद तो हम किवाड़ी के फाक में से ही किसी तरह आँख के भोह घिस-घिस कर टीभी देखा करते थे वो भी बारी-बारी से। तो इस चीज से बचने के लिए टीभी वाले घर के जो हमउम्र बच्चे होते थे न उसको बड़ा पोट के रखते थे, हमेशा मिचर-बिस्कुट खिलाते रहते थे, हाँ में हाँ मिलाते रहते थे,उसको कोई कुछो नहीं बोल पाता था और अगर कोई कुछ बोल दिया तो हम उसके लिए जान देने के लिए भी तैयार रहते थे। और वो भी इस चीज का खूब रोब झाड़ता रहता था। पुरे गाँव में बाबू साहब बने घूमे फिरता था।
कुछ-कुछ टीभी वाले तो ऐसे थे कि बैटरी चारज के लिए प्रत्येक इतवार को 1-1 रुपिया वसूलते थे। और जो नहीं दे पाता उसका टिकट कैंसल. टीभी की दीवानगी के आगे सब भूत-प्रेत का डर खत्म हो जाता था… जय हनुमान और ॐ नमः शिवाय रात को 9 बजे देखने के लिए सबसे भूतिया जगहों पे जय बजरंगबली नारा लगा के दौड़ लगाते थे। टीभी मालक आँगन में टीभी निकाल के पुरे फूल साउंड में टीभी चलाते थे। बारिश के दिनों में थोड़ा दिक्कत होता था लेकिन बाकी दिन सही होते थे…. कपकपाती ठण्ड में शाल कम्बल ओढ़ के बाहर अंगने में टीभी देखा करते थे। अगर किसी कारणवश बैटरी की उपलब्धता सही पिरोगराम के टाइम पे नहीं हो पाता था तो जनरेटर की व्यवस्था की जाती थी। और जनरेटर के लिए बैटरी से दुगुना चार्ज किया जाता था मने एक कृष्णा लीला के एपिसोड का 2 रुपया। और जो नहीं दे पाया उसका टिकट केंसल।
मने समझिये कि टीभी वाले अपने आप को किसी जमींदार से कम नहीं समझते थे। मन माफ़िक़ लगान वसूली । अगर हम किसी दूसरे गाँव में शादी या मेहमानी में जाते थे तो गाड़ी के ऊपर से उस गाँव के घरों के छतों के ऊपर लगे अँटिनों को गिनते चलते थे। अंटिनों की जितनी जादा सघनता उतना जादा रईस गाँव। अगर किसी घर में दो अंटिनें दिख गए तो समझिये कि वो राजा भोज का बिछड़ा हुआ भाई।
टीभी होना आपके सम्पन्नता और रईसी में चार चाँद लगवा देता था। अपन का भी परिवार गाँव के रईस परिवारों की गिनती में आता था, पापा CCL में डोजर ऑपरेटर के पद पे कार्यरत थे लेकिन टीभी न होने के कारण टीभी वालों की सम्पन्नता के सामने बहुत बौने नज़र आते थे। एक दिन महुआ चुनते-चुनते पापा को बोला कि “ बप्पा टीभी ले लीजिये न… केतना दिन दूसरों को बैटरी का भाड़ा दे दे के टीभी देखते रहेंगे ? और ऐसी कोई बात नहीं है कि आप एक टीभी नहीं खरीद सकते है! “
पापा बोले “ अरे टीभी खरीदने को तो हम अभी का अभी खरीद सकते है… लेकिन टीभी के चक्कर में तुमलोग बरबंड हो जाओगे.. काम धंधा ठीक से नहीं करोगे.. पढाई-लिखाई नहीं करोगे। “.
“ बप्पा खाली हमलोग धारावाहिक देखेंगे और कुछ नहीं.. ले दीजिये न .. “.
“ न.. न.. बाबू.. कुछो कर लो … हम टीभी ले के नहीं देंगे”.
पापा किसी भी हालत में टीभी खरीद के देने के पक्ष में नहीं थे… हमलोग वैसे ही चन्दा दे के और चापलूसी करके टीभी देखते थे। हमलोगों का टीभी के प्रति इतनी दीवानगी थी कि अगल बगल के गांवों में भी कितनी टीभी हैं उसका रिकॉर्ड रखते थे.. और नई टीभी आ जाने के बाद अपने को तुरंत अपडेट भी कर लेते थे। मेरे टोले के तीन घरों में टीभी था, तीन टीभी मतलब तीन अन्टीना.. जो कि गाँव के दूर से ही दिख जाता था।
एक बार मैं सन्डे को कृष्ण लीला देखने के बाद दीदी घर दीदी को लाने के लिए चला गया… दीदी घर पाँच दिन रहने के बाद दीदी को ले के घर आ रहा था… मेरे गोद में मेरा भांजा था… उसको खेलाते-खेलाते हुए गाँव में प्रवेश कर रहा था… अचानक मेरा मुंडी ऊपर उठा और अँटिनों के संख्या पे नज़र पड़ी और उसके लोकेशन पर भी।
अन्टीना नम्बर 1.. 2.. 3.. और ये चौथा ??? … ये किसका अन्टीना है बे … कौन ख़रीदा नया टीभी ?? अरे रुको… रुको.. ये तो मेरे घर के बिल्कुल सामने लग रहा है… किसके घर में टीभी लिवाया है बे… मेरे घर में या ?? … मैं तेज़-तेज़ चलने लगा… जैसे ही कुछ आगे बढ़ा.. “ अबे ई अन्टीना तो मेरे छत पे नज़र आ रहा है बे… एकदम चिमचिमाता हुआ… “ मेरे तेज़-तेज़ चलने के कारण दीदी थोड़ी पीछे रह गई थी, मैंने दीदी को एकदम से ख़ुशी से फुले न समाते हुए अपने भांजे को ज़मीन पे रखते हुए आवाज़ लगाया “ दीदी…. पंकज बाबू को संभालिये… मैं जा रहा हूँ घर जल्दी से.. नया टीभी लिवाया हैं घर में.. “.
मैं एक ही दौड़ान में सीधा घर पहुँच गया… घर के आगे टेम्पू खड़ी थी… और के घर के अंदर तो एकदम से मेला लगा हुआ था… मेरे पढ़ने वाले कमरे से टीभी की आवाज़ रही थी.. लोग भी एकदम से ठुसमठास मौजूद थे.. मैं किसी तरह से अंदर पहुँचा तो देखा कि एक आदमी टीभी को ऑपरेट करते हुए भैया को टीभी के बारे में बता रहे थे। साउंड बढ़ाना घटाना.. ब्राइटनेस बढ़ाना घटाना.. चैनल बदलना… फाइन ट्यूनिंग… बूस्टर.. आदि आदि.. ! भैया भी खूब तल्लीनता से सुन रहे थे और उसके सामने ही ऑपरेट कर के दिखा भी रहे थे। जब सबकुछ हो गया तो टीभी वाले टेम्पू का भाड़ा लिए और चले गए।।
मैं ख़ुशी से फुले नहीं समा रहा था.. “ साला अब अपने घर में भी टीभी… अब हमहूँ VIP बन के घूमूँगा… अब खूबलला और नंदुवा को बताएँगे कि सारहे तुमरे घरे अब अकेले टीभी नहीं है… अब हमरो घर में टीभी आ गया है… जब तुमरे घर का बैटरी डाउन होगा न तब हम बताएँगे कि शक्तिमान का एक एपिसोड छूटने पे कैसा लगता है।“
लेकिन मन में ये भी सवाल बहुत कौंध रहा था कि आखिरकार मेरे घर में ये टीभी आया तो आया कैसे ??
मैं माँ के पास पहुँचा और बोला “ मैया … बप्पा को किसी पागल कुकुर वुकुर ने तो नहीं काट लिया जो टीभी ले आये…. एकदम से हृदय परिवर्तन … भला कैसे ?? “.
मम्मी बोली “ अरे ऐसे कैसे नहीं ला देते टीभी….. भैया ने भूख हड़ताल जो कर दिया था…. जब तक टीभी नहीं.. तब तक रोटी का कोई कोर मुँह में नहीं। “.
हुआ कुछ यूँ था कि भैया का किसी टीभी वाले घर के एक लड़के के साथ बहुत कहा सुनी हो गया था… बात टीभी लेने के औकात पे आ गई… तो भैया ने दिल पे ले लिया। घर आ के सीधे पापा को बोल दिया कि मुझे टीभी चाहिए और कोई भी हाल में चाहिए। .. पापा ने साफ़ मना कर दिया कि कोई टीभी वीभी नहीं लियायेगा !! .. तो भैया ने बोला कि जब तक आप मुझे टीभी ला के नहीं देंगे तब तक मैं खाना नहीं खाऊंगा !!
पापा ने भी बोला दिया “ अबे किसे नहीं खाने का धमकी देता है… रुष के मेरे को मत दिखाओ… नहीं खायेगा तो खुद ही मरेगा। “.
भैया ने पहला दिन नहीं खाया.. दूसरे दिन के रात में थोड़ी हलचल मचने लगी…. तीसरे दिन तो और भी .. माँ से बेटे का भूख नहीं देखा गया .. और पापा से बोली .. “ अरे ले दीजिये न टीभी… कितना पैसा लगता है….. उससे जादा पैसा तो आप दस दिन के दारु पी के उड़ा देते है… और यहाँ बेटा दो दिन से भूखा सो रहा है तो अच्छा लग रहा है क्या? “
काफी मान मनोवल के बाद पापा थोड़ा राजी हुए और बोले “ अच्छा चल ठीक है टीभी ले देंगे.. लेकिन अगले पेमेंट में .. इस महीने का पेमेंट खत्म हो चूका है .”
“नहीं … मुझे आज के आज ही चाहिए टीभी… नहीं तो मैं घर छोड़ के बम्बई जा रहा हूँ।“
पापा मम्मी थोड़ा सहम गए… और पैसे के जुगाड़ में लग गए.. घर में दो अच्छे-खासे बकरे थे… आनन फानन में कस्टमर खोजा गया और दोनों बकरों को बेचा गया… भुनेसर काकू जो राशन दुकान चलाते है उनसे भी कुछ पैसा लिया गया और फिर फुसरो बाजार जाया गया और टीभी ख़रीदा गया।
भूख हड़ताल का सफल परीक्षण मैंने पहली बार देखा था।
खैर जो भी हुआ.. आखिरकार टीभी तो आ ही गया मेरे घर में.. और हमारी सम्पन्नता में एक बेशकीमती चाँद लग गया।
प्रत्येक सन्डे के सन्डे मेरे घर में भी मेला लगने लगा। अपना भी मान सम्मान बढ़ने लगा… जो लोग मुझे पहले मोदिया… मोदिया .. कह के बुलाते थे .. वो सब अब मुझे मोदी बाबू कह के बुलाने लगे थे।… पहले पहल तो टीभी देखने की बात सिर्फ धार्मिक धारावाहिक देखने तक ही सीमित थी… लेकिन धीरे-धीरे टीभी देखने का दायरा बढ़ता गया… शुक्रवार को 7:30 शाम को चित्रहार और खाना खाने के बाद 9:30 बजे ‘लक्स सुपरहिट फ़िल्म’। शनिवार को रात के 10:30 बजे की फ़िल्म… सन्डे के शाम 4 बजे की फ़िल्म… तमाम क्रिकेट मैच… 15 अगस्त, 26 जनवरी को देशभक्ति की फिल्म्स.. कोई भी नहीं छूटता था.. लेकिन इन सब के बीच पापा को बहुत गुस्सा आने लगा था… ठीक से सो नहीं पाते थे… टीभी से एलर्जी थी.. टीभी का आवाज़ सुने नहीं कि उनपे भुत सवार हो जाता था.. एक बार शुक्रवार रात को “गिरफ्तार” देखते हुए पापा ने हम भाइयों की सबके सामने जम के धुलाई कर दी.. “ सारहे.. अपने बाँझ तो परोसियो बाँझ…. अपने कुछ काम धाम नहीं करोगे तो दूसरों को भी नहीं करने दोगे… साला इसी लिए हम टीभी ले के नहीं दे रहे थे… सब ई टीभी के चलते कामचोर हो गया है… साला जिस दिन मेरा जादा मुड़ ख़राब हुआ तो हम ई टीभीये को कूच देंगे.. नाय रहतो बाँस आर नाय बाजतो बाँसुरी।“
उसके बाद तो पापा का खूब आतंक हो गया हमलोगों के ऊपर… उनके ड्यूटी के आने के पहले ही सब खिसक लेते थे टीभी रूम से… और अगर कभी टीभी देखते हुए उनकी आवाज़ हमारे कानों में पड़ी तो सबसे पहले बैटरी का चिमटा निकाल देते थे… और उसके बाद धीरे-धीरे कल्ले से निकल लेते थे.. जिससे कि लगे कि टीभी तो चल ही नहीं रही थी।..
एक बार भैया बैटरी चार्ज करवाने के लिए बैटरी साइकिल में लाद के बोरवाडीह ले जा रहे थे .. रास्ते में बैटरी गिर गई और दो फाड़ हो गई.. भैया डर के मारे एक हफ्ता तक घर नहीं घुसे थे…. फिर मम्मी ने पैसे जुगाड़ कर के दिए थे बैटरी को जुड़वाने के लिए।
टीभी के नाना प्रकार के कवर लेना…. एंटीना को परफेक्ट दिशा में घुमाना… एंटीना से प्रत्येक 20-25 दिन बाद ‘कार्बन’ साफ़ करना.. कार्यक्रम के दौरान टीभी झिलमिलाना और बाहर आ के एंटीना के ऊपर बैठे कौआ को उड़ाना.. और भी फलाना ढिमकाना… क्या दिन थे वो.. !!
2002 में गाँव में बिजली आई… टीभी की तो जैसे बरसात होने लगी… सबके घर में टीभी वो भी रंगीन वाला.. बिना एंटीना वाला.. DTH सर्विस ने तो एंटीना को कुछ ही दिनों में विलुप्त कर दिया… जो एंटीना कभी सम्पन्नता में चार चाँद लगाती थी, वो अब अगर किसी के घर गाहे बगाहे देखने को मिल जाती तो उसे गरीब घोषित करने में ज़रा सा भी समय नहीं लगाते थे। जो कभी एंटीना घुमा के शाबाशी बटोरता था वो अब DTH का LNB अड्जस्ट कर रहा था।
मेरे घर की 14 इंच की बिलेक एंड वाइट टीभी का स्थान 22 इंच के रंगीन टीभी ने लिया… बिलेक एंड वाइट टीभी में मेरे छोटे भाई और भतीजे वीडियो गेम खेलने लगे… कुछ दिन बाद वो भी ज़वाब दे गया.. और हमने उसे दुबारा बनवाया भी नहीं.. आज वो हमारी बिलव्ड टीभी रानी गुमसुम और चुपचाप टीभी वाले कमरे में ही छज्जे के ऊपर आराम कर रही है.. नई-नवेली दुल्हन ने सासु माँ को ठिकाने पे लगा दिया हो जैसे।
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आज वो छज्जे में से ही रंगीन टीभी को ताने दे दे के अपने सुनहरे दिन की याद दिलाती है .. “ अरे बहुरिया.. मेरे श्वेत-श्याम कलर में ही इतना आकर्षण था कि पूरा का पूरा गाँव आता था मुझे देखने.. मैं प्रत्येक सन्डे को घर से बाहर निकलकर आँगन में आ जाती थी… मैं अगर ज़रा सा भी झिलमिलाई तो लोगों की धड़कन तेज़ हो जाती थी.. कितने के घरों में लड़ाई का कारण बनती थी.. लेकिन तुम्हारा क्या ?? कितने लोग देखते है तुम्हें... घर के कुछ सदस्य ही न.. वो भी हर दस मिनट में चैनल चेंज कर करके… कभी बच्चे के हाथ में रिमोट रहा तो तेरे को कुछ समय के लिए किसी कार्टून चैनल पे टिका देते है… लेकिन मेरे एक ही चैनल पे पूरा गाँव फ़िदा रहता था… सन्डे को तो गलियां एकदम से सुन्न हो जाया करती थी मुझे देखने के लिए… लेकिन तुम्हारा ये सतरंगीन कलर किस काम का… जितने देखने वाले उतनी बार तुम्हें नचवाया जाता है। मैं ऑन होती थी तो बस चलती थी, लेकिन तुम ऑन होते ही थुराने लगती हो.. हमारी बराबरी क्या करोगी बहुरिया .. सास.. आखिर सास होती हैं।“.
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गंगा महतो
खोपोली
Sunday, July 17, 2016
हमार टीभी
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