-:: लक्ष्मी कोच ::-
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मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि हमारे उम्र के पीढ़ी के लड़कें जो गाँव की जीवन शैली और संस्कृति से ‘सिल्वर स्क्रीन’ के माध्यम से रु-ब-रु होते हैं उन सबको मैंने जिया हैं और अभी भी जी रहा हूँ. बहुत सारी चीजें आधुनिकता की दौड़ में बहुत पीछे छूट गए हैं या यूँ कहिये कि विलुप्त हो गए हैं और बहुत कुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं. मैंने ऐसे समय में जन्म लिया जहाँ से एक कालखंड को बहुत तेज़ी से दूर जाते हुए देख रहा था तो वहीं एक नए युग को बहुत तेज़ गति से अपनी ओर आते हुए देख रहा था. दोनों में ज्यादा तेज कौन था ये कह पाना मुश्किल है। बहुत सारी चीजें थी जो बिल्कुल ही विलुप्त हो चुकी हैं.. और इन्हीं में से एक था बैलगाड़ी से बारात जाना. बैल को हमलोग बरद बोलते हैं, सो बैलगाड़ी को बरदगाड़ी लेकिन शादी-ब्याह में दुल्हन को ले आने के लिए जो बरदगाड़ी जाती थी न उसे हम “लक्ष्मी कोच “ कहते थे.
मैं लक्ष्मी कोच से बाराती अपने बड़े पापा के बड़े लड़के निर्मल दादा की शादी में गया था और वो लक्ष्मी कोच से बारात जाना मेरे जीवन का किसी भी प्रकार का पहला बारात अनुभव था और गाँव की अंतिम लक्ष्मी कोच की बाराती भी. मैं तब 10-12 साल का रहा होगा. पापा मेरे को इस तरह के फंक्शन्स में मुझे अक्सर ले जाया करते थे और मैं इस तरह के फंक्शनस को बड़े गौर से अवलोकन करता था.
मैं सीधा लक्ष्मी कोच में न आ के उससे पहले हमारे गाँव में होने वाली शादियों के तैयारी और उससे सम्बंधित कुछ बातें बताता हूँ.
लड़का-लड़की देखना, पर-पसंद करना, लेन-देन की बातें करना, शादी की तारीख़ फिक्स करना.. वगेरह.. वगेरह.. ये सब घर के बड़े-बुजुर्ग ही तय करते हैं. दादा(भैया) का भौजी का मुख देखना तो विवाह के मड़वा(मंडप) में ही संभव हो पाता था वो भी 'सिन्दरा-हरि-बोल' के समय।
सबकुछ तय हो जाने के बाद विवाह के पाँच दिन पहले और ज्यादा जल्दी हैं तो तीन दिन या फिर एक दिन पहले लड़का पक्ष लड़की के घर जाकर लड़की का ‘लगन बंधना’ (लग्नोत्सव) करते है जिसमें लड़की को हल्दी का तिलक लगाते है. उसी दिन ही जितने भी लेन-देन की बातें तय हुई थी उसको लिया जाता है या फिर कब तक दे दिया जाएगा उसपे विचार करते हैं. ‘लगन बंधना’ के पश्चात वर और वधु पक्ष के घर में उसी रात से मंगलगान शुरू हो जाता है। गाँव भर की महिलाएं जमा होती हैं और खूब नाच-गान होता है और सभी को जाने के टाइम दू-दू पैला खजारी (मुढ़ी) दिया जाता है और ये सिलसिला शादी के दिन तक चलता रहता है. महिलाएं रात में नाच-गान करती हैं और दिन में पत्तल टीपने का काम. अभी भी हमारे गाँव में पत्तल खरीद के नहीं लाये जाते, सभी के घर से हाथ से टीपा हुआ पत्तल शादी वाले घर को जाता हैं. और शादी में कोई कैटरिंग वाला सिस्टम भी नहीं होता हैं. सभी के घर से कम से कम एक सदस्य उनके घर में मदद करने लिए जाता हैं, अगर किसी के घर से कोई गया नहीं तो स्पष्ट कारण बताना पड़ता हैं कि वह क्यों नहीं आ पाया, और जो जिस काम में निपुण होता हैं उसको उसी काम में लगा दिया जाता हैं.
खैर बात हो रही थी हमारे निर्मल दादा की शादी का. लगन बंधना हो चूका था, दहेज़ में 20 हज़ार तय हुआ. लगन बंधना के दिन से ही मैं गुंगू (बड़े पापा) के घर शिफ्ट हो गया. विवाह के पूर्व संध्या को गाँव भर से लोग इक्कठे हुए और मीटिंग हुआ कि कल कौन-कौन किस-किस डिपार्टमेंट को संभालेगा ? जो जंगल के ज्यादा अनुभवी थे उनको एकदम सुबह तड़के काड़ा(पाड़ा) गाड़ी ले के जंगल जाना हैं और सरई(सखुआ) का मड़वा खूंटी काट के लाना हैं और मड़वा छारने का काम भी करना है. इसी तरह अन्य सब को भी काम सौंपा गया जैसे कौन भंडारण घर में रहेगा, कौन नेतमनी( मेहमान) के झोलों में नाम लिखेगा . वगैरह वगैरह.
अब फिर बात आई कि ‘लक्ष्मी कोच’ के लिए किसके बैल को बोला जाय ? बीरू महतो उठा और बोला- "हमारा लक्ष्मी कोच तो पहले भी कितने लड़कों की बरातियों में जा चूका हैं, तो इस बार भी हमारा ही लक्ष्मी कोच रहेगा".
इतने में मेरे काका जी उठे और बोले- "धोर मर्धे.. बीरू महतो का बैल सब अब थोड़े बूढ़े हो गए हैं, इनका बैलगाड़ी हठुवा मिठाई और बाकी के सामान ले जाने के लिए ठीक रहेगा, मेरा भतीजा तो एकदम जानदार और शानदार बैल वाला लक्ष्मी कोच में बैठेगा. मेरे हिसाब से तो धोकल महतो का बैल सब जो कि एकदम नए और तगड़े हैं, लक्ष्मी कोच के लिए सही रहेगा…. क्या बोलते हो धोकल चा ?? ".
धोकल महतो – "जब लड़का का चाचा बोल रहा है तो कैसे मना कर सकते है, चलिए हमारा ही लक्ष्मी कोच रहेगा निर्मल की शादी में".
अब पुका महतो उठा और बोला – "चलिए अब तो सब काम फिक्स हो गया… कौन जंगल जाएगा, कौन चूल्हा-चौकी करेगा, कौन पानी भरेगा, कौन सब्जी लाने जायेगा, किसका लक्ष्मी कोच जायेगा… लेकिन नटुवा( एक प्रकार का नृत्य) पार्टी के लिए कोन्हो महुआ-पानी का जुगाड़ है कि नहीं ?? नहीं तो फिर बाराती में मज़ा नहीं आएगा !! का हो निर्मल के बप्पा कोनो जुगाड़ है या नहीं ??"
पुरन महतो( बड़े पापा) – "हाँ है न पुका महतो… अरे हम भी किसी के बाराती जाते हैं तो सबसे पहले यही जुगाड़ देखते है…. और आज जब हमारे बेटे की शादी है तो फिर कैसे नहीं देंगे… गाली सुनना है क्या गाँव वालों से … बीस किलो महुआ पहुँचा दिए थे शुकर माँझी के घर लगन बंधने के दिन ही और सुबह ले भी आये है…. । तो चलिए सब कुछ तो फाइनल हो गया हैं, अब आपलोग सुबह से जो जिम्मेदारी सौंपी गई है उस काम को करिए… और हाँ बीरू और धोकल महतो सुबह आपलोग सहिया तुरी के घर से बाँस वाली चटाई ले लीजियेगा जो लक्ष्मी कोच में लगाने वाले हो".
सुबह हुई.. सब अपने-अपने पूर्व निर्धारित कार्य में लग गए. नौ बजते-बजते जंगल से मड़वा खूंटी कटा के आ गया. एक घण्टे में मड़वा छर के तैयार भी हो गया. छोटकी काकी ने गोबर से अंगना-बहरा लीप डाला. चावल की गुंडी से चौक भी पूरा गया. कुछ देर बाद दाँक-ढांसा-शहनाई वाले भी बजाते-बजाते घर में प्रवेश हुए. अब ढाँक शहनाई वाले आ गए तो भोनिया काकू परेशान होने लगे क्योंकि वही मड़वा पूजा के लिए उपवास किए हुए थे, बोले कि , "अरे यार ढाँक शहनाई वाले आ गए और अभी तक पंडीजी ने दर्शन नहीं दिया है.. अरे ये रमेसरा तनी सैकला उठा के जाओ तो पंडीजी के घर और पंडीजी को पकड़ के लेते आव तो".
आधा घंटा बाद रमेसरा पंडीजी को पकड़ के ले आता है. और फिर मड़वा पूजन शुरू हो जाता हैं. ढाँक और शहनाई के आवाजों के बीच महिलायें मंगलयान गाती हैं. मड़वा पूजा खत्म होता है फिर ‘सगनुतिया अदौरी’ पारने का रश्म. उसके बाद उबटन या फिर हरदी(हल्दी) लगाने का कार्यक्रम. इसमें महिलाएं और विशेष कर भाभियां बड़े ही प्यार से देवर जी का गाल थुरते हुए हल्दी का गीत गाते हुए हल्दी लगाती है... कुछ हल्दी के गीत आपलोगों के लिए..
“ हरदी हरदी पुरैन पात
केय तोरा हरदी चैढ़ाइ,
काका/बाबा/गुंगू के जे हकथिन दुलरैता
ओहे काका/बाबा/गुंगू हरदी चैढ़ाइ !!
कोरिया के बरिया में हरदी न उपजे,
आर बाबा के मड़वा में हरदी सस्ता भेल ।
जे देसे हरदी नाय उपजे, सेहो देसा रंग.. बिरंग ।
हरदी हरदी पुरैन पात…
हल्दी रश्म के बाद ‘पानी सहने’ का नेग होता है और फिर बारात निकलने से पहले “अमलो” पानी पीने का रश्म।
इधर बीरू महतो और धोकल महतो अपनी-अपनी गाड़ियों को सजा रहे हैं. बैलों को सुबह ही अच्छे से धो-धा के सींगों में कोचरा का तेल लगा के तैयार रखे हैं, साथ ही टन-टन करती घंटियों को गले में बांध दिए हैं. बांस की चटाई को गाड़ी के ऊपर गोलावदार कर के उसके ऊपर साड़ी लपेट रहे हैं. बैठने वाली जगह पे पुआल बिछा के उसके ऊपर तिरपाल डाल दिए हैं. पहियों और लिंघा (axel) में "भेलवा" तेल ( देहाती लुब्रिकेंट) लगा दिए हैं.
जैसे ही गुंगू ने आदेश दिया कि अब लक्ष्मी कोच को ले आइये बारात निकलने का बेरा हो गया हैं, तो बीरू और धोकल महतो अपने-अपने गाड़ी ले आए… बीरू महतो के गाड़ी में हठुआ मिठाई समेत तमाम वो सामान जो वर पक्ष से वधु पक्ष को दिया जाता हैं लोड कर दिए. . निर्मल दादा धोती-कुरता और सफ़ेद पगड़ी पहने,हाथ में सरोता लिए बड़े जीजाजी के साथ धोकल महतो वाली गाड़ी में आ बैठते है. अपने गाँव से पाँच किलोमीटर दूर पिपराबेड़ा गाँव बारात जाना था,तो पापा ने मेरे को निर्मल दादा के साथ ही लक्ष्मी कोच में बिठा दिए. नटुवा पार्टी भी पूरी तरह से सज-धज के आ गई थी… ।।. बोलो.. बोलो.. बजरंगबली की … जय.. की गगनभेदी उदघोष के साथ ही बारात गाँव से निकल पड़ती है।
बीरू महतो जहाँ अपने बैलों को गाड़ी में बैठ के हाँक रहा हैं वहीं धोकल महतो अपने बैलों के आगे-आगे चल रहा है. बैलों की घंटियों से टन-टन निकलती आवाजें, पहिये से चूँ…चुर्र..चुरर्..चूँ.. की आवाज़ के साथ ढाँक-ढांसा की ढम-ढम की आवाज की अद्वितीय मिश्रण और पेट्रोमैक्स की धीमी रौशनी के साथ बारात आगे बढ़ रही हैं.
पिपराबेड़ा गाँव के मुहाने पे पहुँचते ही सब रुक जाते हैं. पुका महतो महुआ का पानी बड़े से जार में लाता है और साथ ही एक बड़े प्लास्टिक के झोले में खजारी. सभी नटुवा पार्टी और बाराती(पीने वालें) सब दो-दो गिलास महुआ पानी का रसपान करते हैं फिर पुरे जोश-खरोश के साथ ढाँक,ढोल,ढांसा, नगाड़ा,शहनाई के साथ नटुवा पार्टी हरा पगड़ी पहने, एक हाथ में लाठी के साथ अटखेलियां करते हुए तो दूसरी हाथ से बरछी पकडे नृत्य करते हुए गाँव में प्रवेश करते हैं…. भरी नींद में सोये हुए लोग आँख मलते हुए घर के बाहर आ नटुवा का नाच देखने लगते हैं. मन्टुवा एक लड़की को देख लिया तो उनको भी नृत्य करने का मन करने लगा. लेकिन नटुवा नाच बिना लाठी के कैसे करें? सामने एक बारी के घोरना का उचा उखाड़ लिया और लगे अपना लड़की पटावन वाला नाच दिखाने. नाचते-नाचते हमलोग पहले बजरंगबली के मंदिर पहुंचे, वहाँ दादा ने आशीर्वाद लिया और फिर वहां से हम नाचते-नाचते भौजी के घर पहुंचे. वहाँ तो और जम के डांस होने लगा.
पिपराबेड़ा का नटुवा पार्टी भी तैयार बैठा था. लेकिन नटुवा पार्टी का भी एक नियम है कि कोई भी दूसरा नटुवा पार्टी सीधे दूसरे नटुवा पार्टी में जा के नाच नहीं सकता. पहले दोनों पक्षों के धुरंधर खिलाड़ी एक दूसरे से भिड़ेंगे(जिसको कि 'पैकी' कहा जाता है) और जो खिलाड़ी पहले लाठी का मार खायेगा वो हारा हुआ माना जायेगा. हमारे इधर से लुदु महतो आगे आये और पिपराबेड़ा के खिलाड़ी से भिड़े, लेकिन महुआ ने अपना असर दिखा दिया और कुछ देर में ही लुदु महतो ने लाठी का मार खा लिया. फिर वो दोनों एक-दूसरे के गले मिले और फिर दोनों नटुवा पार्टी एकसाथ मिल के नाचने लगे और पूरा समां बांध दिया. नटुवा नृत्य के सभी प्रकार वहीँ देखने को मिले.
इधर दादा की लगने वाली सालियां गाड़ी के पास आई और एक से इक्कीस नीचा दिखाने वाली गालियों के गीत का बौछार कर दिए. एक गीत आपलोग भी ले लो- “ अट्ठनी चव्वनी खुच्चर पैसा, साला गिने ने जाने मरद कैसा “.
इतने में भौजी की दादी आई और लड़कियों को फटकार लगाते हुई बोली –“ अगे ये छहरमलकी सब चलो अभी भागो यहाँ से .. बहुत हो गया तुमलोगों का गरियाना ... अब हमलोग इसका ‘लाठा’ कुटेंगे “ . (लाठा कूटना झारखण्ड के मित्र अच्छे से समझते होंगे)
जितने भी भौजी की सीधे रिश्ते वाली महिलाएं थी वो निर्मल दादा के रिश्तेदारों को बारी-बारी से लाठा कूट रही थी.
लाठा कुटाई के बाद भौजी का भाई याने साला जी निर्मल दादा को गमछा में बांध के मड़वा तक ले गए. फिर वो बंधे गमछा को खुलवाने का बीस रुपया लिया. उसके बाद शादी की अन्य रश्में होने लगी.
इधर बाहर खाने-पीने में खस्सी-भात था. बीरू और धोकल महतो अपने बैलों को खूंटे में बाँधकर पुआल डालकर खाना खाने आ पहुँचे. खाना-पीने का कार्यक्रम शुरू हुआ . उधर लड़कियां मड़वा में बैठ के पुरे मंझलीटांड(मेरा गाँव) के लड़कों को गाली दे रही थी –“ ई टुंगरी उ टुंगरी सुता टाना टानी , आर मंझलीटांडेक छोड़ा गिला गे माय बहिन टाना टानी “.
और ये सब होते-होते सुबह हो गई. बहुत जन खाना खाने के बाद ही घर को निकल लिए. मैं पूरी शादी तक दादा के साथ ही रहा. सिन्दरा हरि बोल के साथ ही शादी संपन्न हुआ. अब भैया के खाने-पीने का इंतज़ाम किया जाने लगा. इधर बाहर ढाँक वाले ने एक लफड़ा कर दिया, ढाँक वाला बैल के पास जा कर जोर से ढाँक बजा दिया. बैल एकदम से चमक गया और रस्सी से मुंडी फुचका कर पुंछ उठा के दौड़ भागा. अब धोकल बैल को आ आ करके उसके पीछे भागा, लेकिन बैल कहाँ रुकने वाला था वो तो जंगल की ओर कूच कर गया… यहाँ मेरे काकाजी ढाँक वाले पे बरस पड़े- “ तोरा के लूर धचर हैं कि नहीं हैं, पी खा लिया तो कहीं पे भी लगा ढाँक बजाने. अब शादी हो चुकी हैं, कुछ देर में यहाँ से विदाई लेंगे और ऐसे समय में बरद को भिड़का दिया. भाग मेरे नजरिया के सामने से “.
अब ढाँक वाला काका जी की कही बात को सीरियसली ले लिया. ढाँक वहीं पटका और तमतमाकर वहाँ से चल दिया…
अब ‘चुमान’ बैठने वाला था. चुमान उसे कहते हैं जिसमें मेहमान सब अपने साथ लाये दुल्हन के गिफ्ट को गिफ्ट करते हैं साथ ही साथ लड़की के नइहर से जो भी सामान लड़की को दिया जाता हैं वो इसी चुमान के दौरान दिया जाता हैं. चुमान में वर-वधु, मड़वा खूंटी और कलश को धान से चुमाया जाता हैं फिर गिफ्ट देते हैं. और यह चुमान प्रोसेस बिना ढाँक के आवाज़ के साथ नहीं होता. अब तो दो-दो मुसीबतें हो गई, एक तो बैल भी भाग गया और दूसरा ढाँक वाला भी. अब चुमान कैसे होई ?? विलम्ब हो रहा था.... इतने में मेरे पापा उठे, ढाँक लिए और लगे बजाने और बोले – “ अब करो जल्दी-जल्दी चुमानी, ढाँक वाला नहीं रहेगा तो क्या चुमान नहीं होगा”.
एक डेढ़ घंटे में चुमान हो गया लेकिन बैल को अब तक नहीं पकड़ पाये थे. टाइम निकला जा रहा था, विदाई का मुहूर्त भी बीता जा रहा था और बैल है कि पकड़ाने का नाम ही नहीं लिया जा रहा था. फिर सभी ने डिसाइड कि चलो एक साथ 15-20 आदमी जाते हैं जंगल में और बैल को घेर के पकड़ ले लाते हैं. इतने में ही पिपराबेड़ा का एक आदमी बोला पड़ा "ऐसा कीजिये कि आपलोग हमारा एक बैल एक साइड नार लीजिये". तो धोकल महतो का बड़ा भाई बोला "मेरा बैल सिर्फ अपने जोड़ी वाले बैल से ही गाड़ी में सही चलता है नहीं तो ये बैल शैतानी करने लगता है, अब इस गाड़ी में दूल्हा-दुल्हन जाएंगे और कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो ? नहीं.. नहीं .. इसलिए हमलोग जंगल जा रहे हैं कुछ देर में पकड़ के ले आते हैं" । .. फिर सबलोग जंगल गए और एक घण्टे की भारी मशक्कत के बाद बैल को पकड़ लिया गया…. बैल को लाया गया और गाड़ी से नारा गया.
अब विदाई हो रही थी. भौजी सब से लिपट-लिपट के रो रही थी , जैसा की सभी विदाई में होता हैं…. रोते-रोते ही अब दादा-भौजी लक्ष्मी कोच में बैठ चुके हैं. धोकल महतो गाड़ी हांकने ही वाला है तभी उधर से कुछ महिलाएं आख़री में गाड़ीवान याने धोकल महतो को गाली दे रही हैं गीत के माध्यम से – “ हमर धिया… हमर धिया सुसकल जाय, गाड़ीवान बिलरमुँहा मुसकल जाय “. ये गाली वाली गीत सुन के भौजी के लोर(आँसू) गिरते चेहरे में अनायास ही हँसी आ जाती हैं.
इतने में पुका महतो जोर से उद्घोष करते है- "बोलो…. बोलो… राजा रामचंदर जी की जय… “ . और लक्ष्मी कोच चल पड़ती हैं. भौजी बार-बार पीछे मुड़-मुड़ के अपनी गली और घर को देख रही है.. आंसू पोछ रही है.. लेकिन आँसू है कि थमने का नाम नहीं ले रहा.. जहाँ ये गलियां तेजी से उनके आँखों से ओझल हो रहा था वहीं एक अंजान गलियां उनकी स्वागत की राह देख रहा था।
जैसे ही लक्ष्मी कोच हमारे घर के बाहर आ के रूकती है.. मैं झट से उतर कर अपने दीदीयों के पास जाता हूँ और बोलता हूँ "दीदी.. दीदी.. मालुम है दादा के ससुराल वालों ने न दादा को बहुत गाली दिया हैं. अब आपलोग भी न भौजी को छोड़ियेगा मत".. दीदी सब बाहर आती हैं और लक्ष्मी कोच में घेरा डाल के दादा को दी हुई गालियों को पुरे चक्रवृद्धि ब्याज के साथ लौटाना प्रारम्भ कर देती हैं।।।। :) :)
वैसे आप गालियों के मीनिंग निकालते बैठो न तो सुनामी आ जायेगी. :)
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लक्ष्मी कोच तो विलुप्त हो गई बस उसकी धुंधली यादें ही शेष हैं. डीजे की कर्कश ध्वनि के बीच आज नटुवा नाच भी विलुप्त के कगार पे खड़ा हैं . कमोबेश शादियों में गाये जाने वाले गीतों का भी यही हाल हैं. नयी पीढ़ी पुराने चीजों से छत्तीस का आंकड़ा बनाये चल रही हैं और यही चीज एक नए प्रोफेशन को जन्म दे रही हैं. बहुत शहरों में ऐसे शादी देखे जहाँ औरतें मंगलगीत गाने का पैसा ले रही हैं. कैटरिंग सिस्टम भी इसीतरह का नतीजा हैं. आज मैं आपलोगों को बता दू कि ऊपर जो मैंने हल्दी वाला गीत लिखा हैं वो मम्मी को फोन करके उनसे एक एक शब्द बोलवा के लिखा हैं...।
लोग भविष्य की सुनहरी सपनों में जीया करते हैं, लेकिन मुझे अतीत में ही जीना अच्छा लगता हैं..।।
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गंगा महतो
खोपोली.
ग्रामीण विवाह का सटीक विवरण ।।।
ReplyDeleteग्रामीण विवाह का सटीक विवरण ।।।
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