Sunday, July 17, 2016

सच्ची कहानी


पिछले दो दिन से गाँव का माहौल बड़ा ‘फुसफुसिया’ वाला है .. जहाँ देखो वहाँ लोग फुसफुसिया रहे है ..डेग-डहर-मोड़-बाट-कोना-कोपचा, आम गाछ के नीचे, जामुन गाछ के नीचे, पत्तल-दोना, लेन्दरा टिपटी महिलाओं की मंडलियों के बीच.. हर जगह सब जगह बड़ा ही कौतूहल का माहौल है ..  मैं बोकारो से गाँव को आया तो ये बदला-बदला सा माहौल बड़ा ही अजीब लगा … मन में शंका उत्पन्न हुई, कुछ न कुछ ज़रूर गड़बड़ हुआ है तभी तो ये फुसफुसिया वाला वातावरण है। .  तो एक फुसफुसिया ग्रुप में मैं भी घुस पड़ा.. और जानने की कोशिश करने लगा कि आखिर मामला क्या है ? .. खैर मालुम चला .. बताया गया कि हेठकुल्ही के ओहदार चौधरी का बड़का बेटवा रूपलाल चौधरी पड़ोस के गाँव कटघरा की एक लड़की को ले के फुर्र हो गया है .. दो दिन हो गए है .. कुछ अता-पता ही नहीं चल पा रहा है कि आखिर दोनों गए कहाँ है ? .. कुछेक विश्वसनीय सूत्रों से कुछ समाचार हाथ लगता तो फिर फ़ुफ़ुसियाना एक नए सिरे से चालु हो जाता .. कोई बोलता गोआ चले गए है तो कोई मुम्बई तो कोई सूरत तो कोई कहता कि कहीं नहीं गए है हज़ारीबाग़ में है। .. अब भरोसा करे तो किसपे करे ?? .. बस चौधरी के घर आने का सब इंतज़ार कर रहे थे .. उसकी मैया बड़की चौधराईन का तो रो-रो के बुरा हाल हो गया है .. बाढ़ते-सोढ़ते,खाते-पीते बस गरियाते ही रहती है “ई कौन बपढोहनी लगे गे मैया .. कौन जादू चलाय देलय हमर सोना रकम बेटवा के ऊपर गे मैया … अइले उ छोड़िया के छेछ के मोराय नाय देब तो हमर नाम नाय चौधरनिया !” .. बड़का चौधरी तो मारे शर्म के घर से बाहर ही निकल पा रहा है... ।
दो दिन तो गुजर ही चुके थे .. तीसरा दिन भी गुजरा.. कोई अता-पता नहीं .. कौतुहल और भी बढ़ता जा रहा था …  चौथे दिन दोपहर में हम अपने मित्रमंडली के साथ घर के बाहर बैलगड़िया में बैठ के ताश खेल रहे थे और साथ ही साथ चौधरी के परेम-कहानी की चर्चा भी कर रहे थे ..  तभी एकदम से एक टाटा-सूमो सनसनाते हुए पास हुआ .. कुछ देखने तक का मौका नहीं मिला कि सूमो के अंदर था कौन ? वैसे गाँव में इस प्रकार किसी गाड़ी का आना जाना नहीं होता है, किसी विशेष कार्य से ही गाड़ी प्रवेश करते हैं। डुमर महतो पत्ती फेंकते हुए जासूसी वाले अंदाज में बोला “यार ये गाड़ी किसके घर गया होगा .. इस कुल्ही में तो रुका नहीं… हेठकुल्ही ही किसी के घर गया होगा .. शादी-बिहा या कोई फंक्शन भी तो नहीं है किसी के घर .. तो आखिर ये टाटा सूमो किसके घर गया होगा ? “ .. हमलोग दिमाग भिड़ा ही रहे थे कि इतने में चेरकु महतो दौड़ते हुए आया और बताया कि “अबे .. तुमलोग को पता है .. अभी-अभी जो टाटा सूमो पास हुआ उसमें कौन था सो ? “
“नहीं पता चेरकु दा …. कौन था सूमो में ? हम लोग तो ताश खेलने में मगन थे!”
“अरे उसमें चौधरी था… बिहा करके उ कटघरा के छौड़ी को ले आया है!”
“ओरे साला … चौधरी आ गया !! .. चल बे चल. .. अब ताश खेलना बंद करो  .. चल चौधरी का घर चलते है.. तनिक हमलोग दुल्हिनिया के भी दरसन कर लेते है”.
हमलोग सभी युवा मण्डली ताश समेटकर चौधरी के घर की ओर चल दिए .. बीच रस्ते में ही भुनु काकू मिल गए, उन्होंने पूछा “ अरे सब लड़का पाटी लोग एक साथ कहाँ चल दिया रे … कहीं कोई लड़ाई झगड़ा हुआ है का ? “.
“ अरे नहीं काकू .. उ जो चौधरी था न .. जे लड़की को ले के भाग गया था .. उ अभिये-अभिये जो टाटा सूमो पास हुआ न, उसी में वो था उ छौड़ी के साथ … बिहा कर के ले आया है! “
“अरे.. अरे .. रुको फिर ..   हम भी चलते है।“
अब तो लगभग पुरे गाँव में हल्ला हो चूका था कि चौधरी वापस आ गया है.. सब चौधरी के घर पहुँचने लगे थे .. हमलोग जब पहुँचे तो पूरा मेला लग चूका था चौधरी के घर के सामने … आँगन एकदम ठसाठस भरा हुआ था.. दुल्हिनिया घर के ढाबे में बैठी हुई थी.. चौधरी की बहनें और अगल बगल की लड़कियां उनको घेरे हुई थी .. गाँव के लोग आते दुल्हिनिया के दर्शन करते और फुसफुसाने लगते.. !! बड़की चौधरनिया के गुस्सा का तो क्या कहना.. घर में आने वालों का ऐसे स्वागत कर रही थी ,”आवा देख ला हमर बपढोहनी पुतेहिया के.. कते सुंदर आर सुथर है से ?.. निहाइर ला एकरा के .. देख ला तोहनी एकरा के .. अहे छौडीया है जे हमर बेटवे भगाय के आनल है! देख ला देख ला!”. .. रूपलाल चौधरी अपनी मैया को डाँटते हुए चुप कराता , “ अगे मैया की तोय फ़ालतू में बकर-बकर कर रहल ही गे ? .. अब भगाय के ले आन लियो तो ले आन लियो.. अब तोर बड़की पुतोह अहे लगो तो लगो.. मान चाहे न मान ! “
बड़की चौधरनिया, “ हाँ रे बेटा ! .. अहे दिनवा देखे खातिर तोरा पढ़ले लिखेले हलियो रे बेटा .. कि तोय ई घरवा में भगवल पुतोह घुसेबे रे बेटा।“
रूपलाल चौधरी ‘’ अगे मैया .. अब बताय देलियो ने … अब ई तोर पुतोह लगो तो लगो .. अब तोय मान चाहे न मान .. चाहे तोहनी हमरा घार से भगाय दे काहे ने!”.
इतने में रूपलाल चौधरी का बप्पा ओहदार चौधरी आया और बोला , “ पहले पंचायत होगा .. पंचायत ... तबे कुछ फैसला होगा .. ई हमारे घर की बहु बनेगी या ये मेरा बेटा रहेगा या नहीं रहेगा ! … हम जा रहे है पंच को जमा करने .. ये बिजलिया बाप तनिक हाल कटघरा भी भिजवा दीजिये इसके ससुरार में कि मंझलीटांड के शिव मन्दिर में पंचायत बिठा रहे है।“ ..
बिजलिया बाप साइकिल उठाये और कटघरा को चले गए … इधर ओहदार चौधरी पंच खोजने निकल पड़े … 2 घण्टे बाद शिव मंदिर के पास बने सामुदायिक भवन में सभी लोग जुट गए.. कटघरा से लड़की का बाप बुधन महतो और उनके साथ करीब 20 जन और भी आये थे …  और अपने गाँव से तो पुरे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक शामिल थे .. दुल्हिनिया बहुत ही डरी-सहमी लग रही थी .. पहली बार इतने लोगों के सामने जो खड़ी थी वो भी एक अभियुक्त बन कर .. उसके बाप की हालत के तो क्या कहने .. बेटी घर से भाग गई , वो भी जब तब उसकी दो दिन बाद शादी थी .. छेका हो चूका था .. शादी के कार्ड सभी सगे-संबंधियों को भेजे जा चुके थे.. और ऐन वक़्त पे बेटी भाग गई!!  .. एक कोने में मुंडी पकड़ के बैठे हुए थे .. !! … इधर ओहदार चौधरी बीड़ी,गाँजा और खैनी ला के घनु महतो को थमा दिये ..  और बोला कि “ ई बीड़ी बुजुर्ग लोगों को दो और बोलो कि जल्दी से पंचायत शुरू करो।“ …
पंच के रूप में देवनारायण महतो, जीतू महतो, लोकनाथ महतो, खखुआ महतो और लालचन्द महतो निर्वाचित हुए … जीतू महतो सबसे बुजुर्ग आदमी थे .. बीड़ी फूंकते हुए खटिया से उठे और बोले .. “ देखिये .. अब शांत हो जाइए .. अब पंचायत शुरू होगी… तो सबसे पहले जो मैन अभियुक्त है मने लड़का और लड़की, वो सामने आये .. और साथ ही साथ इनके गारजन लोग भी !! “
लड़का लड़की के साथ-साथ उनके पापा लोग भी सामने आये !! ..  अब जीतू महतो बोले “ सबसे पहले ओहदार चौधरी .. खड़े हो जाओ .. और अपनी बात रखो ! “
ओहदार चौधरी, “ सबसे पहले तो हम पंच सब को गौड़ लागते है (प्रणाम करते हुए) .. हमको तो आपलोग जानते ही है .. हम गाँव के चौधरी है .. 15 एकड़ की खेती के साथ-साथ एक बड़का बाँध भी है .. और साथ ही साथ हम CCL के एम्प्लोयी भी है.. और अभी 14 साल और नौकरी बचल है..  हम अपना सब बेटी का शादी कर चुके हैं .. वो भी अच्छा-खासा तिलक दे के … हम अपना बेटा को शुरू से ही पराभिट इस्कूल में पढ़ाये है.. इंटर पास कराये है और अभी गरजुअशन कर रहा है.. .. इसके शादी की भी बात चल रही थी .. घुठियाटांड़ का एक महतो 6 लाख रुपया तिलक दे रहा था और साथ में एक दुचकवा भी ... लेकिन ई भगा के शादी कर लिया .. केतना नुकसान किया ई हमारा ! .. हम केतना सपना संजोये थे इसके लिए .. लेकिन इसने सब गुड़-गोबर कर दिया .. अब आपलोग बताइये .. हम का करे ?? “.
जीतू महतो , “ ठीक है .. तोर बात हमनी सुन लिये .. अब बुधन महतो खड़े हो जाओ और अपनी बात रखो !”.
बुधन महतो, “ (प्रणाम करते हुए) .. अब का कहे हम ?? .. हमरी बिटिया ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा .. शादी फिक्स हो गया था .. लग्न बंधा गया था.. अगर वो लग्न रहता तो कल को हमारे घर में बरियाती आता .. कार्ड-वार्ड छपा के कुटुंब-रिश्तेदारों को बाँट दिए थे … लड़के वाले को 80 हजार का तिलक भी दे दिए थे.. एक हीरो-होंडा पैसन प्रो भी तिलक के दिन दे दिए थे .. आटा-चावल, तेल,नून,हरदी,मसाला सब खरीद लिए थे.. टेंट वालों को बयाना भी दे दिए थे .. मने सब तैयारी हो गया था .. लेकिन बेटी भाग गई .. अब बताइये हम का कहे और का करे ? “
जीतू महतो, “ह्म्म्म ..  चलिए हमने दोनों गारजन सब का बात सुन लिए .. अब लड़का-लड़की सामने आये !
(दोनों उठ खड़े हुए .. और सामने आये ) .. देवनारायण बाबू .. अब आगे तुम सवाल करो।
देवनारायण महतो , “ सबसे पहले तो ये बताओ कि.. तुमलोगों ने शादी कर ली ? और कर ली तो कहाँ कर ली?”
चौधरी, “ हाँ हमने शादी कर ली है .. रजरप्पा मंदिर में किये है।“
“तुमने अच्छा किया या बुरा ?”
“दोनों किये है … हमने अपनी पसंद की शादी की ये अच्छा किया .. और हमने अपने माँ-बाप को तकलीफ़ दिया ये बुरा किया!”
“ये सही है या गलत ?”
“जो मुझे सही लगा वो हमने किया.. “.
“तुम्हारे बाप के अनुसार ही तुमने उसका बहुत नुकसान किया है.. एक लड़की पार्टी कितना कुछ देने वाला था तुम्हें!”
“अब हमने नुकसान किया तो किया .. इसकी जो भी सज़ा वो देना चाहे .. हमें मंजूर है।“
“लोकनाथ जी .. अब आप कुछ पूछिये .. !”
लोकनाथ महतो, “ अच्छा हम दुल्हिन से सवाल करते है .. ऐ दुल्हिन .. जैसा कि हम सब ने सुना कि तुम दोनों ने अपने-अपने गारजन का बहुत नुकसान किया है.. आर्थिक तौर से भी और नैतिक तौर से भी .. तो ऐसे में ओहदार चौधरी तुम दोनों को घर से बाहर निकाल देता है तो क्या करोगी ??’’
“ हमको रूपलाल जहाँ ले के जायेगा, हम ख़ुशी-ख़ुशी चले जाएंगे .. हमने साथ निभाने का वादा किया है .. भरे पेट में साथ रहेंगे तो भूखे पेट में भी साथ रहेंगे।“.
“ठीक है जाओ .. अब तुमलोग उधर बैठ जाओ !! “.
अब पंच लोग कुसूर-फुसुर करने लगते है .. तब तक गाँजा भी बन के रेडी हो जाता है … गाँजा पीने के बाद जीतू महतो उठते है और बोलते है, “  देखो ओहदार और बुधन महतो .. अब तुमलोगों का जो नफ़ा-नुकसान हुआ सो हुआ .. लेकिन ये भी सत्य है कि तुमलोगों के बच्चों ने अब शादी कर ली है.. अब इन्हें घर में रखो या न रखो ये बाहर रहने को तैयार है .. तुमलोगों की जो भी जगहंसाई हुई सो हुई .. गलत हुआ … लेकिन अब सब जुटे हुए है तो कोई न कोई फैसला सुनाना ही पड़ेगा.. तो फैसला ये है कि .. ओहदार चौधरी दुल्हिन को बहु के रूप में स्वीकार करेगा.. और इस शादी को हम मान्यता देते है … आखिर हमारे बच्चे ही तो है .. गलतियां किये है .. तो स्वीकार भी कर रहे है .. आजकल तो कोर्ट-कानून का भी बहुत लफड़ा है .. दोनों बालिग़ हैं .. कहीं थाने में जा के कुछ उल्टा-सुल्टा न केस कर दे.. और अगर थाने तक बात पहुँची तो फिर बहुत झमेला हो जाएगा... तो बेहतर यही है कि .. यही इसी पंचायत में सब सुलझा लिया जाय .. क्या कहते हो तुम ओहदार चौधरी ? “.
“अब आप पंच सब जो फैसला करेंगे वो हमें मान्य होगा .. लेकिन हमारा जो नुकसान हुआ वो .. ? “
“देखो ओहदार .. तुम्हारा क्या नुकसान हुआ .. वो हम समझ रहे है… बुधन महतो तुम्हारा क्या कहना है ?”
“अब आपलोग तो फैसला सुना ही दिए .. हमारे साथ जो होना था वो तो हो ही गया है.. अब उसका हमें कोई मलाल नहीं है.. लेकिन अब हमारी बेटी के भविष्य का सवाल है.. केतना भी करे आखिर हम एक बेटी के बाप ही है. (बोलते बोलते गला रुंध आता है और आँखों से आँसू आ जाते है.. फिर गमछे से आँसू पोछते हुए) .. बेटी काहे न केतनो गलती कर दे लेकिन बेटी का हम बुरा कभी नहीं सोच सकते .. बेटी ने जो तकलीफ़ दिया सो दिया, वो अब बीती बात हो गई.. मैं सब कुछ भूल जाना चाहता हूँ.. अब हमारी बेटी की शादी को सामाजिक स्वीकृति मिल रही है.. तो हम अपनी बेटी का भविष्य देखेंगे .. ये ओहदार चौधरी जो बार-बार अपनी नुकसान की बात कर रहा है केतना का नुकसान हुआ है इनका ?? . .. अरे आप लड़की का बाप होते तो पता चलता केतना नुकसान हुआ है हमारा.. ?? हमरे जगह आप होते तब पता चलता आपको। … मेरा पंचों से निवेदन है कि मेरी बेटी के सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ उपाय करे .. ओहदार चौधरी तो पूरा तिलक लोभी जान पड़ते है .. जो हर बार केवल तिलक के नुकसान की ही बात कर रहे है .. आगे चल के अगर ये तिलक के लोभ में हमारी बेटी के साथ कुछ उल्टा सुल्टा कर दिया तो ?? .. रूपलाल चौधरी केतना भी हमारी बेटी से पियार काहे नहीं करे.. अगर इनको घर से निकाल दिए तो ?? .. इसलिए हम चाहते है कि मेरे को आश्वस्त किया जाय या फिर लिखित रूप से हस्ताक्षर किया जाय कि भविष्य में हमारी बेटी के साथ कुछ न हो।“.
इतने में ही उनके गाँव वालों ने भी समर्थन किया ‘’ हाँ .. हाँ .. बुधन महतो बिल्कुल सही कह रहा है .. हमें अपनी बेटी की सुरक्षा की गारन्टी चाहिए।“
खखुआ महतो, “ का बोलते हो ओहदार चौधरी ?? “.
“जहाँ हमें सौ टका मिलने वाला था .. वहाँ अब हम एक टका भी न ले ? .. हम अपने बेटा-पतोह को कहीं नहीं भगाएंगे .. लेकिन कम से कम हमें कुछ तो मिलना ही चाहिए .. आखिर हमने भी 2 बेटियों की शादी की है .. एक को 3 लाख और दूसरी को 5 लाख में बियाहे है .. और हम सोचे थे कि हम ये सब अपने बेटे के माध्यम से वापिस लेंगे .. लेकिन इसने तो फ्री में ही !! .. कुछ तो मिलना ही चाहिए न !”.
जीतू महतो, “ बुधन महतो !! … तुमने अपनी बेटी की शादी के लिए तो सामान-वमान ख़रीदे ही होगा.. तिलक का पैसा जो लड़के वालों को दिए हो या जितना बकाया है, वो ओहदार चौधरी को दे दो .. इसका भी मन खाट नहीं होने देते है।.. क्या कहते हो तुम ?”.
“अब आप लोग जैसा उचित समझे .. 80 हजार तो लड़के वालों को दे चुके थे .. बोल रहे थे कि 30 हजार रुपया खर्च हो गया है .. 50 हजार और वो गाड़ी और बाकी का सामान हम ओहदार चौधरी को दे देंगे।“.
लालचन्द महतो, “ धोर मर्धे .. तो आबरी मचमच की बात के लागे ! .. सब हो गया.. फाइनल कर अब बात … चलिए अब दोनों समधी मन-मुटाव छोड़िये और समधी-मिलन कीजिये … कीजिये .. कीजिए .. का कहते है आप लोग ?? “
भीड़ में से एक साथ आवाज आई “ हाँ.. हाँ .. किया जाय .. किया जाय !”.
ओहदार चौधरी अनमने ढंग से उठा और बुधन महतो से समधी-मिलन करने लगा .. भीड़ एक साथ चिल्लाई ..
“बोलो .. बोलो .. राजा रामचन्दर जी की .. जय !! “.
.
अब समधी मिलन हो चूका था … दुल्हिनिया के चेहरे में चमक और मुस्कराहट आ चुकी थी .. सभी लोग प्रसन्न थे सिवाय ओहदार चौधरी के … वो अब भी 25-75% वाले रेश्यो में था। ..
अब अंत में पंचों के बोलने की बारी आई .. एक सन्देश के रूप में ..
सबसे पहले जीतू महतो ही उठे और बोले .. “ अब जो हुआ सो हुआ … अंत भला तो सब भला … भले ही बच्चों ने गलती की है.. अपने गारजनों को तकलीफ़ पहुँचाई है.. लेकिन सोचना तो हम गारजनों को भी है कि आखिर बच्चे ये कदम क्यों उठाये ? … आज जमाना तेजी से बदल रहा है … हमें भी इसके साथ सामंजस्य बिठाना है। बस अब और क्या कहे .. मेरा आशीर्वाद इन दोनों बच्चों को है। .. सदा सुखी रहे।“.
सबने ताली बजा के अभिवादन किया।
अब लालचन्द महतो उठे, “ अब आपलोग इसे बदलते ज़माने के साथ चलकर जस्टिफाइ न कीजिये .. ये गलत सन्देश जा रहा है समाज को … रंग में भंग नहीं डालना चाहता .. लेकिन ये सब गलत है। धन्यवाद।“
हमलोग जो कुछ देर पहले अभिवादन किये थे .. लालचन्द महतो के वक्तव्य ने एकदम से सन्नाटा कर दिया .. !
इसके बाद अब खखुआ महतो उठे और बोलने लगे .. “ जी मैं लालचन्द महतो के बात का समर्थन करता हूँ… अभी तक जो बात होनी चाहिए थी.. वो तो हुई ही नहीं .. लालचन्द महतो ने बोला तो सिर्फ दो लाइन ही बोला .. लेकिन मैं इसका विस्तार करना चाहूँगा… आखिर आज के इस उदाहरण के बाद हम समाज को क्या दिशा देने वाले हैं ?? आज तक हमारे गाँव में कोई भी भगा के शादी नहीं किया था .. जिस कार्य के लिए इन्हें दण्डित करना चाहिए था उसे हम स्वीकृति दे रहे है!! .. इससे इनसे छोटे वाले बच्चे क्या सीखेंगे ?? .. कि यार चल भगा के ही शादी करते है.. होना जाना तो है कुछ नहीं। बड़े-बुजुर्ग तो तालियाँ पीट के स्वागत करेंगे हमारा !! बच्चों की ख़ुशी … बच्चों की ख़ुशी .. अरे क्या खाली बच्चों की ख़ुशी !! क्या हम माँ-बापों की ख़ुशी नहीं है ? हमारी ख़ुशी कोई मायने नहीं रखती हैं ? .. क्या हम अपने बच्चों का बुरा चाहते है ? .. नहीं !! बच्चे जब उद्दंड हो तो उसे मारना सुधारना हम माँ-बापों का कर्तव्य है… जिस तरह से वे हमारे अरमानों का गला घोंटते है, दंड देना बनता है। .. हमारे बच्चे है, आपके बच्चे हैं.. यहाँ मौजूद सबके बच्चे हैं.. क्या सब चाहेंगे कि उसके बच्चे भाग के शादी करे ? .. नहीं .. कोई नहीं चाहता .. जब बच्चे जन्म लेते है तब से हम माँ-बाप लोग उनके बेहतर भविष्य के लिए जी-तोड़ मेहनत करते है.. पाई-पाई जुटा के उनके आवश्यकताओं को पूरा करते है.. और हम भी उनके सपनों के साथ जीते हैं.. प्रत्येक बाप का एक सबसे बड़ा सपना होता है कि वो ‘कन्यादान’ करें.. अच्छे से अपनी बेटी का ब्याह करे.. बिदा करे.. अगर आप बेटी के बाप है तो आपका ये सबसे बड़ा हक़ है.. और इस हक़ को अगर कोई छिनता है तो फिर वो मुजरिम है.. बुधन महतो से पूछिये वो किस वेदना के दौर से गुजरे होंगे.. जब इनके कान में खबर पहुँची होगी कि आपकी बेटी भाग गई है। .. आप बुधन महतो के यहाँ पर खुद को रख के सोचिये कि बुधन महतो होना क्या होता है? .. लड़का का बाप है तो आपके मन में भी रहता है कि हम भी समधी जोड़े.. बेटे की बाराती जाय.. शादी धूम-धाम से करे .. लेकिन बेटे जब ऐसे कृत्य करते है तो बाप पे क्या गुजरती होगी? .. कहने को तो बहुत कुछ हैं.. लेकिन फिर भी आप लोग समझ ही गए होंगे कि क्या कहना चाहता हूँ मैं ? .. गाँव, समाज की एक मान-मर्यादा है.. इन्हें क्षरित न होने दे.. इस कृत के बाद तो गाँव की मान-मर्यादा में तो बट्टा लग ही चूका है.. अब आगे से ऐसा कुछ न हो ऐसा मैं आशा करता हूँ और इसका मैं समर्थन करता हूँ।. . धन्यवाद’’.
अब तो पूरी सभा में सन्नाटा पसर गया था.. खखुआ महतो के दलील से सब एकदम से जड़ हो गए थे .. जो चमक और मुस्कराहट कुछ देर पहले दुल्हिनिया के चेहरे पे आई थी वो एकदम से फुर्र हो गई..  !! .. इतने में ही देवनारायण महतो उठे और बोलने लगे .. “ अभी हमारे खखुआ भाई ने अपनी बात रखी.. अच्छी बातें इन्होंने बताई.. माँ-बाप के अरमान और उनके कर्तव्य.. बहुत अच्छा .. मैं भी समर्थन करता हूँ.. फिर बात आई गाँव के मान-मर्यादा की और संस्कृति की.. इन्होंने बताया कि चौधरी के इस कृत्य से गाँव की मान मर्यादा में बट्टा लग गया है.. चलो चौधरी ने जो किया वो एक पल के लिए मान लूँ कि गलत किया है.. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था.. लेकिन दूजी बात ये है कि आखिर इसने ऐसा कदम उठाया क्यों ?? .. क्या इसको भय नहीं लगा होगा कि उसके इस कृत्य से कितना हंगामा होगा… केस-फौजदरी, पंचायत से लेकर समाज का हुक्का-पानी तक भी बन्द हो सकता है? .. लेकिन फिर भी इसने ऐसा कदम उठाया … कितना हिम्मत करके इसने ऐसा उठाया होगा! … मुझे बताया गया कि चौधरी ने अपने बाप को कितनी बार इस लड़की के माँ-बाप से शादी की बात करने को बोला था.. लेकिन बाप को तो दहेज़ लेना था .. अच्छी पार्टी ढूंढ़ रहा था.. लड़की ने भी अपने बाप को बोला था लेकिन इसका बाप वो दहेज़ की रकम देने लाइक की स्तिथि में नहीं था..  सो इसने अपनी बराबरी का लड़का ढूँढा… जब बाप लोग ही सिर्फ दहेज़ के लिए अपनी बच्चों की ख़ुशी नहीं देखते तो फिर कैसा अरमान और कैसा सपना ? .. जब आप अपने बेटों को केवल और केवल पैसा ऐंठने का जरिया मात्र समझते हैं तो फिर आपके लिए ये अरमान और सपना जैसी बात दकियानूसी से ज्यादा नहीं लगती हैं… कुछेक पैसों के लिए अपने बच्चों की खुशियों का गला क्यों घोंटते हो? .. जब इन दोनों को अपने गारजन लोगों से निराशा हाथ लगी , तब इन्होंने भागने का निर्णय लिया। .. और आप गाँव की किस मान-मर्यादा की बात कर रहे हैं ?? .. सामने सोना महतो बैठा हुआ है.. इसकी पाँच बेटियां और दो बेटें हैं.. इसकी कोई नौकरी-चाकरी नहीं है.. तीन बेटियों की शादी इन्होंने अपनी खेत बारी बेच के की है.. अब इसके पास घर-बारी के अलावा कुछ भी नहीं है.. इनकी शेष दो बची बेटियों का उम्र निकला जा रहा है शादी को.. 2-3 साल बाद शायद कोई लड़का न मिले इनकी बेटियों को … कोई आया ये बात उठाने ? .. आज चौधरी जो काम किया इसके लिए वह पुरे गाँव का मुजरिम है. .. तो फिर सोना महतो की बेटी पुरे गाँव की बेटी क्यों नहीं है ? .. गाँव की मान-मर्यादा और संस्कृति का बड़ा ख्याल रहता है.. अरे तुम्हारे सामने गाँव की बेटी का उम्र निकला जा रहा है.. और तुम हो कि ये तो सोना महतो मैटर है वो खुद संभाले इसको.. हम क्यों इसके पचड़े में पड़े ?? कह के अपना पल्ला झाड़ लेते हो.. .. तो फिर ये भी तो चौधरी का पर्सनल मैटर है .. हम क्यों इसमें पड़े ? .. आज हमारे गाँव में 1500-1600 की आबादी है .. 1000 जन कमाने वाले हैं… अगर सब ने 100-100 रुपया भी मिलाया होता तो एक लाख रुपया जमा होता ! .. और उस एक लाख से सोना महतो की बेटी का आराम से शादी हो जाती... लेकिन नहीं.. तब आपलोग कहाँ मर जाते है ? .. अघनु महतो भी यहाँ बैठा हुआ है.. इसकी बेटी की शादी 4 महीने पहले हुई है .. आज इसकी बेटी पिछले एक महीने से यही नईहर में है .. काहे ? काहे कि जो राशि तिलक के लिए तय किया गया था उसमें 30 हजार रुपया का बकाया था.. बोला गया था कि शादी के दो महीने बाद दे दिया जाएगा … लेकिन ये उन तीस हज़ार रुपयों का अभी तक जुगाड़ नहीं कर पाया है…. दो महीना पूरा होते ही इसकी बेटी को उसके ससुराल वाले यहाँ पटक के चले गए हैं.. अब ये मान-मर्यादा वाले कहाँ चले गए है ? .. अरे तुम्हारे आँखों के सामने तुम्हारे गाँव की बेटी ब्याहते हुए भी नईहर में रहने को मज़बूर है.. अच्छा लगता है आप लोगों को ? .. अरे आप लोग 30-30 रुपया भी जमा करते तो 30 हजार रुपया इसके समधी के मुँह पे दे मारते ! .. लेकिन नहीं.. ये तो अघनु महतो का मैटर हम क्यों पड़े इसमें? कितनी बेटियों को सिर्फ इस पैसे की लालच में जला के , जहर खिला के मार दिया जाता हैं.. तब आपलोग कहाँ चले जाते हैं ? ..  बुधन महतो से पूछिये .. अपनी बेटी की शादी के लिए इन्होंने कहाँ-कहाँ और किस-किस से उधारी ली है.. फिर उधारी को चुकाने के लिए ये क्या करने वाला है? ..  आज ये दूल्हा-दुल्हिन कितने खुश है.. घर से भगा दो.. फिर भी कोई गम नहीं है.. साथ में भूखे पेट सोने को तैयार है.. अरे और क्या चाहिए भला .. जो खुशियाँ आप अपने बच्चों को पैसे के बल पे देना चाहते है .. अरे वो तो बिना पैसे के ही अर्जित कर लिए है .. और क्या चाहिए भला आपको ? ..  अरे दूसरे टोला या कुल्ही का लड़का भगा के शादी करे या न करे लेकिन यदि मेरे कुल्ही लड़का भगा के शादी करता है तो मैं देवनारायण महतो सबसे पहले स्वागत के लिए खड़ा मिलूँगा ।.. धन्यवाद।“
सन्देश समाप्त होते ही .. तालियों का सैलाब आ गया .. हम लड़का पार्टी जो अबतक हाथ भींच के भाषण सुन रहे थे.. सब खड़े हो के सींटियों के साथ ज़ोरदार ताली बजाने लगे  .. 2 मिनट तक लगातार ताली बजाते रहे.. दुल्हिनिया के चेहरे से जो चमक खखुआ महतो के सन्देश के दौरान फुर्र हो गया था.. इस सन्देश के बाद वो 100 गुना तेजी से वापस आ गया.. वो मंद ही मंद चौधरी का चेहरा देख के मुस्करा रही थी.. !! चौधरी भी फुले नहीं समा रहा था.. !  तभी एक नटखट देवर ने नारा लगा दिया .. “पौदीनवा भौजी जिंदाबाद.. !! “ .. हम सब ने भी साथ दिया .. “ जिंदाबाद … जिंदाबाद !!”.
इसी बीच घनु महतो उठे और बोले “अरे शांत हो जाओ .. शांत हो जाओ .. जीतू काकू कुछ कहना चाहते है।“
सभी फिर शांत हो के बैठ जाते है ..
जीतू महतो, “ देखो अब शादी-ब्याह तो हो गया है .. समधी-मिलन भी हो गया है.. पंचों का सन्देश भी हो गया हैं.. लेकिन चौधरी की सज़ा अभी बाकी है !” ..
अब हमलोग लगे सुगबुगाने .. साला अब कौन सा सज़ा बाकी है बे ?!
“चौधरी इधर आओ .. “ ( वो दोनों सामने जाते हैं)
“तुम्हारी सजा ये है कि शादी तो तुमने अकेले कर लिया .. लेकिन खस्सी भात लियल बिना हम नहीं छोड़ने वाले हैं .. तो तुम शाम तक खस्सी भात का जुगाड़ करो”.
चौधरी एकदम पुरे उत्साह के साथ , “ अरे बुबा ये भी कोई कहने की बात हुई .. खस्सी भात क्या साथ में अंग्रेजी भी रहेगा!”.
.
आज पौदीनवा भौजी और रूपलाल चौधरी को शादी हुए 8 साल हो गए है .. वो अब दो से पांच हो गए है.. दोनों एकदम मस्त और ज़बरदस्त है।
.
गंगा महतो
खोपोली।
.

No comments:

Post a Comment