Sunday, July 17, 2016

झारखण्ड मैट्रिक रिजल्ट

पहला परिदृश्य..
मेरे मोबाइल फोन की घण्टी बजती है.. मैं कॉल रिसीव करता हूँ..
“हेल्लो… “
“हेल्लो गंगा भाई… ?”
“हाँ… बोल रहा हूँ.. आप कौन ? “
“गंगा भाई पहचाने नहीं.. हम मंटू बोल रहे है.. मंटू.. नावाडीह से … मंटू पान दूकान वाला ! “.
“अरे हाँ.. हाँ.. मंटू भाई… पहचान लिए… बताइए क्या हाल है ?.. कैसे याद किये ?..”
“गंगा भाई.. आज मेट्रिक का रिजल्ट आया है… और मैं फर्स्ट डिवीजन से पास हो गया हूँ.. !!
“अरे वाह !! .. क्या बात है .. बहुत-बहुत बधाई हो .. !
“और मालूम है गंगा भाई कितना परसेंटेज आया है मेरा ?”.
“बताओ मंटू भाई.. कितना आया है ? “.
“85 % !! … “
“वो तेरी माँ का !!! 85% ?? ! “.
“हाँ गंगा भाई… 85% … और मैथ में मालुम है कितना आया है ? .. 99 नम्बर्स.. और साइंस में 93 नम्बर्स.. आज हम बहुते खुश है गंगा भाई... अगर आप नावाडीह में होते न तो आप जितना बोलते उतना बियर पिलाते !”.
“अरे कोई बात नहीं मंटू भाई... जब आएंगे तब पी लेंगे.. बाकी रहा ... और हाँ.. इतना परसेंटेज लाने के लिए फिर से बहुत-बहुत बधाई।“.
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दूसरा परिदृश्य…
आज से पाँच साल पहले… नागपुर में.. इंजीनियरिंग की अपनी पढ़ाई के साथ-साथ मैं अपने बैचमेट और जूनियर्स को ट्यूशन भी पढ़ाता था.. वो पैसे वाला ट्यूशन नहीं.. फ्री वाला.. मुझे बड़ा मज़ा आता था पढ़ाने में.. और लोगों को मेरे से पढ़ने में..  दक्षिणा स्वरुप पढ़ाने के वक़्त ही छोटी गोल्ड फ्लेक का कश हर एक घण्टे में.. और शिष्यों के मुड़ के ऊपर कभी कभार बियर,विस्की और रम ! और जब शिष्य पास हुए तो मयुरी बार में बम्पर पार्टी (वैसे कोई फ़ैल होता नहीं था) ।..
एक बार एक लड़का अपने झारखण्ड से ही नागपुर में डिप्लोमा करने आया.. मेरे रूम में ही शिफ्ट हुआ.. पढाई लिखाई बढ़िया चल रही थी.. टाइम पे कॉलेज जाता और आता.. कुछ महीनों बाद उसके सेमेस्टर एग्जाम आये.. साथ में ही पढ़ने बैठने लगा.. कुछ डाउट होता तो पूछता.. मैं खाली नार्मल वे में बता देता.. और वो मुंडी हिला के सहमति जता देता कि हाँ भैया हमने सब समझ लिया...  उसकी बुद्धिमता पे कभी गया नहीं था.. एक दिन मैथ पढ़ते-पढ़ते उसको कुछ प्रॉब्लम हुई… मेरे से पूछा बैठा... सवाल त्रिकोणमिति से था… तो जिस लेवल का वो प्रश्न था उससे थोड़ा नीचे लेवल से मैंने उसको बताना शुरू किया.. ये सोच के कि ये तो इसे पता ही होगा.. लेकिन अगले दस मिनट में ही मुझे पता चल गया कि ये बन्दा कितना पानी में हैं… त्रिकोणमिति को तो छोड़िए उसका बेसिक गणित का नॉलेज देख के मैं दंग रह गया !.. मैं पूछ बैठा.. “भाई.. दसवीं में मैथ में कितना नम्बर लाया था ? “ .. वो बोला “ भैया.. 97 “… मैं एकदम से हैरान होते हुए “ ओ तेरी की !! .. 97 !! .. बावा रे .. और साइंस में ? .. वो “ भैया.. 92 .. !”.
मैं सबकुछ समझ गया और बड़े ही प्यार से उसको बोला “ बेटा.. ये डिप्लोमा विप्लोमा छोड़.. और घर जा.. माँ बाप का पैसा काहे बर्बाद कर रहा है… कुछ और की तैयारी कर.. तेरे से डिप्लोमा नहीं होना। “
“नहीं भैया.. मैं कर के दिखाऊंगा.. पास हो के दिखाऊंगा ! “
“ठीक है भाई … तुम पास करके के दिखाना… लेकिन तेरी अभी की जैसी स्तिथि है.. अगर तुम एक भी सब्जेक्ट में पास हो गए तो.. मेरी तरफ से एक पैकेट सुट्टा फ्री।“.
खैर एग्जामस हुए.. रिजल्ट आये.. और बन्दा सबमें फ़ैल। फिर एक साल बाद बोरिया बिस्तर बांध के वापिस झारखण्ड।
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आप लोगों ने दो लड़के देखे.. ऊपर जो मंटू पान वाला है.. वो आज से 13-14 साल पहले 3 बार मेट्रिक पास न होने के कारण उसके बाप ने उसको पान की दूकान खोल के दे दिया था ये कह के कि बेटा अब तेरे से पढाई लिखाई होनी हैं नहीं.. सो अब कमाने धमाने का कोई काम करो.... और आज 85% ! और ये दूसरा अपना डिप्लोमा वाला छोटू..  दसवीं में 86% ला के नागपुर डिप्लोमा करने चला आया था।
ये दोनों सैम्पल हैं..  संस्कृत में बोले तो “स्थालीपुलाकन्याय” .. आज की हमारी झारखण्ड की सरकारी शिक्षा व्यवस्था की.. उबलती हड़िया में से दो दाने चावल के निकालो और दबा कर पता करो कि अन्य चावल कितने सीझे हैं ?। … यहाँ तो मैंने सिर्फ दो चावलों का जिक्र किया हैं …लेकिन ऐसे चावल तो भेंटाते रहते हैं.. और ऐसे चावलों की संख्या सन् 2006 के बाद से तो बेतहाशा और लगातार बढ़ रही हैं।… कारण ?? … होम सेंटर.. !! और ऊपर से स्थानीय नेताओं और अभिभावकों की मनमानी और गुंडागर्दी।
काहे भैया ?? .. काहे कि साक्षरता दर जो बढ़ानी हैं। कैसे भी बढ़ाओ लेकिन बढ़ाओ … चोरी चीटिंग कुछ भी चलेगा.. और कोई विरोध का प्रयास करे तो सीधा पदच्युत करने का और तमाम तरह की धमकी देना।
आज से ज्यादा नहीं तो 11-12 साल पहले कोई बन्दा मेट्रिक पास होता था तो पुरे गाँव के साथ-साथ अगल बगल के गांवों को भी पता चल जाता था कि अमुक गाँव के फलनवा का बेटा बोर्ड परीक्षा में पास हो गया है..  डेग-डहर-मोड़-बाटे सब जगह उसकी चर्चा होती थी… 100 में से औसतन 10 जन ही पास होते थे… और उन्हें किसी अजूबे से कम नहीं देखते थे..  लेकिन वो दस जन आज कहीं न कहीं अच्छे जगह सेटल भी हैं…।।  लेकिन उसके बाद अब… 100 में से अपवाद स्वरुप 2-3 ही फ़ैल होते हैं.. और उन्हें भी किसी अजूबे से कम नहीं देखते हैं। अब तो किसी का पास होना नॉर्मल बात हो गई हैं… और किसी का न पास होना अजूबा!! ऐसा नहीं है कि शिक्षा के स्तर में सुधार आया हैं और लोग पढ़ने-लिखने पे ज्यादा ध्यान देने लगे हैं बल्कि शिक्षा का स्तर तो निरंतर रसातल की ओर अग्रसर होते जा रहा हैं और लोग उसमें डूब-डूब के बाल्टी भर-भर के परसेंटेज ला रहे हैं। और फिर अच्छे खासे परसेंटेज ला के घुईया छिलने का काम कर रहे हैं।
ये हो गया एक पक्ष है.... लेकिन दूसरा पक्ष.. जो थोड़ा सकारात्मक हैं और जो पहले पक्ष से जल-भून रहे होंगे कि सब एक जैसे नहीं हैं.. हमनें मेहनत करके मार्क्स लाये हैं, कोई चोरी चीटिंग करके नहीं, तो उसको भी बताते हैं।। और दूसरे पक्ष में ये भी हैं कि अब अपने एरिया से बहुत से जन अच्छे-खासे कम्पीटीशन एग्जामस् में पास भी हो रहे हैं और क्षेत्र का नाम रोशन कर रहे हैं। इंजीनियरिंग,बैंकिंग से लेकर तमाम प्रशासनिक सेवा परीक्षाओं तक में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं। …. लेकिन ये स्टूडेंट्स हैं कौन ?? कहाँ से इन सब ने पढ़ाई की है??  इन सब का पारिवारिक और आर्थिक बैकग्राउंड क्या हैं ?? … इनपे थोड़ा ध्यान देने की बात है.... सबसे पहले तो ये सब होते हैं उनके बेटें जिनके बाप CCL,BCCL,SAIL, Banks, एक सफल व्यापार आदि सब में होते हैं। दूजा ये DAV,DPS,SSM और ऐसे ही तमाम नामी-गिरामी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले होते हैं.. वहाँ पढ़ने के साथ-साथ भारी-भरकम ट्यूशन फीस भी अफोर्ड करते हैं। अब ऐसे बच्चे कोई कम्पीटीशन एग्जाम निकाले तो ज्यादा आश्चर्य नहीं करना चाहिए। आश्चर्य तो तब होता हैं जब कोई सरकारी स्कूल का लड़का उपरोक्त परीक्षाओं में सफलता अर्जित करता हैं। लेकिन हाँ.. ऐसे बच्चे सरकारी स्कूल से पढ़ के निकले ज़रूर होते हैं लेकिन होते हैं नौकरीपेशा वालों के लड़के ही.. दसवीं तक भारी-भरकम ट्यूशन और उसके बाद शहर में रखवाकर पढ़वाना। तब जा के कुछेक अपवाद जी हाँ अपवाद स्वरुप ही उदाहरण मिलते हैं। … लेकिन ऐसे हैं कितने ?? … यही कोई 10 से 15 परसेंट !! बाकी के कहाँ जाते ? .. सब के सब सरकारी स्कूल !! तो क्या इन बच्चों में प्रतिभा नहीं होती ?? … होती है और भरपूर होती हैं.. लेकिन क्या है न कि प्रतिभा को थोड़ा तराशना पड़ता हैं, निखारना पड़ता हैं, प्रोत्साहन देना पड़ता हैं... लेकिन हमारे सरकारी स्कूलों में होता क्या है ?? इन सब चीजों का भारी आभाव…  प्रतिभा को कुंद करने का काम… बस खिचड़ी बनी नहीं कि .. सब बम बम.. सब के सब पेटमधवा !
पहले क्या होता था कि .. बोर्ड के रिजल्ट्स बहुत ख़राब आते थे… तो प्राइमरी स्कूल के टीचरों पे पढ़ाने का दबाव रहता था.. सोचते थे कि अभी कुछ ढंग का पढ़ाऊंगा तो इनका बेस मज़बूत होगा और आगे इन्हें बोर्ड परीक्षा में दिक्कत नहीं होगा.. 10 में से 3 ही सही लेकिन ढंग के लड़के हाई स्कूल में जाते थे.. आर्थिक तंगी होने के बावजूद बोर्ड एग्जामस पास करते थे और गाँव-घर में ही रहकर कम्पीटीशन निकालते थे। .. लेकिन 11-12 सालों में सबकुछ गड़बड़ होने लगा.. मेट्रिक में कोई भी ऐरा-गैरा अच्छे खासे अंकों से पास होने लगा.. जो लोग कुछ साल पहले मेट्रिक पास न होने के कारण ड्राईवर, खलासी होटेल आदि के लाइन में चले गए थे.. वो लड़के अब डिस्टिंक्शन मार्क्स से पास होने लगे हैं।… इसका प्रभाव अन्य छात्रों पे भी पड़ा.. वो भी पढ़ाई-लिखाई छोड़ गेस-पेपर की कटिंग-छटिंग में लग गए।.. ट्यूशन मास्टर सब भी कन्नी मारने लगे.. क्योंकि ट्यूशन मास्टरों का ध्येय ही होता हैं सिर्फ और सिर्फ एग्जाम पास करवाना और जब एग्जाम पास करना मुँह धोने से भी आसान काम हो गया.. तो ट्यूशन में भी लफ्फाजी के अलावा कुछ नहीं होता हैं.. मास्टर खाली इम्पोर्टेन्ट क्वेश्चनस् बता देता हैं और लड़के उसको एग्जाम के सवा ढाई महीने पहले ही उत्तर-पुस्तिका से तरीके से कटिंग कर के रख लेते हैं.. लड़के बस लौंडियाबाजी हेतु ही इन ट्यूशनस् में जाते हैं। .. जब ऊपर ये बदलाव आने शुरू हुए तो प्राइमरी स्कूल के मास्टर सब भी खिचड़ी और चोखा खाने और चाटने में व्यस्त हो गए.. सोचने लगे.. अरे जब सबको पास होना ही होना हैं तो क्यों फालतू में अपनी एनर्जी वेस्ट करे?.. बस काम चलाऊ कर्तव्य पूरा कर देते हैं। … अब ऐसे लड़के जब हाई स्कूल में जाते हैं तो इनकी कुशाग्रता देख के वहाँ के मास्टर सब कपार में नवरत्न तेल लगाने लगते हैं ! अब 8 साल के रफ एंड टफ रॉ मटेरियल को 2 साल में फ़िनिश्ड प्रोडक्ट में कैसे बदले ?? वो भी बस कुंडली मार के बैठ जाते हैं… ये सोच के कि अब बच्चे चाहे जैसे भी हैं.. अपने स्कूल का तो रिजल्ट 100% होना ही होना हैं। .. और होता भी हैं.. सब के सब गर्दा नम्बरों से पास होते हैं। .. और इसी में से कुछ अमीर टाइप लड़के जब बाहर शहरों और दूसरे राज्यों में पढ़ने जाते हैं और जब वहाँ अन्य प्राइवेट स्कूलों के लड़कों से पाला पड़ता हैं तब इन्हें अपनी औकात का पता चलता हैं… कहने को तो मार्कशीट में 80% ले आये हैं.. लेकिन 8% के लाइक भी नहीं होते हैं।.. फिर भी 2-3 साल बाप का पैसा उड़ाने के बाद फाइनली बाप के ताने सुन-सुन के ड्राईवर,खलासी, होटेल, दिल्ली-मुम्बई की कपड़ा फैक्टरियों की ओर कुच कर जाते  हैं.. मने जीविकोपार्जन हेतु। .. तो फिर क्या मतलब है ऐसे डिस्टिंक्शन मार्क्स से पास होने का और ऐसे सर्टिफिकेट ढोने का ? … आपकी बुद्धिमता केवल और केवल आपकी मार्कशीट में ही झलकती हैं, असल में नहीं…. और ऐसे मार्कशीटों और सर्टिफिकेटों को मैं भूसे के ढेर से ज्यादा नहीं मानता.. इसका आपके ज्ञान और विवेक से दूर-दूर तक का सम्बन्ध नहीं हैं। ..
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जो राजनेता शिक्षा पे, शिक्षा के स्तर पे, गरीबों की शिक्षा पे दिन रात लंबी-चौड़ी भाषण पेलता रहता है.. दरअसल वो शिक्षा और शिक्षा के स्तर को इस तरह से उठाना और परिष्कृत करना चाहते हैं… जो इन्हें अच्छे अंकों से पास करवाकर इन्हें ‘मतदाता’ नहीं सिर्फ और सिर्फ ‘वोटर’ बनाये रखना ही चाहते हैं।
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मेरे गुरुजी श्री श्याम लोचन झा जी अक्सर कहा करते थे.. “हम क्वांटिटी नहीं क्वालिटी पे ध्यान देते हैं”… लेकिन अब … ‘क्वालिटी’ कहीं गौण हो गई है और ‘क्वांटिटी’ क्वालिटी वाली अंकों के साथ थोक के भाव में बाहर आ रही हैं।
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जय झारखण्ड।
गंगा महतो
खोपोली।

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