एक ठो जंगल था. उस जंगल में एक ठो तालाब था. उस तालाब में जंगल के तमाम जानवर पानी पीया करते थे. तालाब में मेंढकों की संख्या ज्यादा थी. उन मेंढकों का एक सरदार भी था. मेंढकों को जंगल के किसी भी जानवर से ज्यादा परेशानी नहीं थी सिवाय एक हाथी को छोड़ के. वो जब भी आता तालाब में कोहराम मच जाता. वैसे हाथी जो भी करता वो उसका सामान्य व्यवहार होता था लेकिन वो व्यवहार मेंढकों के लिए किसी सुनामी से कम नहीं होता था. उसके इस व्यवहार से न जाने कितने मेंढकों की प्रणय क्रिया में बाधा पहुँचती थी…. रोज-रोज हाथी का यूं तालाब आना और हुड़दंग मचाना मेंढकों को नागवार गुजरने लगा… एक दिन सभी मेंढकों ने मिल के अपने सरदार जी से इस बात की शिकायत कर दी और हाथी के ख़िलाफ़ एक्शन लेने की मांग की.
अगले दिन जैसे ही हाथी पानी पीने आया. मेंढक सरदार उसके पास गया और चेताते हुए बोला – "देखो हाथी भाई.. आपका यहाँ रोज-रोज आना और पानी पीना हमारे मेंढक भाइयों को अच्छा नहीं लग रहा हैं. सो प्लीज़ कल से आप पानी पीने का जुगाड़ कहीं और कर लो".
हाथी ने उसकी बात एक कान से सुनी और दूसरे से निकाल दी. अगले दिन जैसे ही वो पानी पीने आया,मेंढक सरदार गुस्से से हरा-पीला-लाल होते हुए गले का गुब्बारा फुलाते हुए हाथी के पास आया और बहुते ही ओजस्वी आवाज में बोला – "मैंने तेरे को कल ही बोला था न कि इधर को नहीं आने का पानी पीने के वास्ते, लेकिन तू फिर भी आ गया. बड़ा ढीठ हैं बे तू.. तेरे मगज में कुछ घुसता है कि नहीं !".
हाथी ने सुना और सोचा- 'अभी इस मेंढक के क्या मुँह लगना… अपने को क्या करना इस मेंढक से लड़ झगड़ के.. ज़रा देर टरटरायेगा फिर वापिस पानी में डुबकी मार के चला जायेगा!!' …. ये सोच के हाथी पानी पीने लगा.
अब तो मेंढक सरदार का गुस्सा अण्डरटेकर से भी ज्यादा हो गया. "देख हाथी के बच्चे अब तेरे को मैं कैसा मज़ा चखाता हूँ..तू ऐसे नहीं मानेगा न !"
मेंढक सरदार से अपनी पिछली पैरों पे शरीर का पूरा बल लगाते हुए छलांग मारा और हाथी के पैरों पे ज़ोरदार प्रहार किया. मेंढक के इस प्रहार से हाथी को तो गुदगुदी भी नहीं लगी. फिर भी हाथी ने मेंढक सरदार के इस प्रहार को सम्मान दिया और सोचा कि चलो अगर मेंढक को इसी से ख़ुशी मिलती हैं तो यही सही. हाथी अपना पानी पीता रहा और तबतक मेंढक उसके पैरों पे लगातार वार करते रहा.. अब हाथी पानी पी के जाने लगा तो मेंढक को लगा कि उसका प्रयास सफल रहा और अब वह और ज़ोर-ज़ोर से वार करने लगा. जाते हुए हाथी को वह उछल-उछल के उसके पीछे वाले पैरों पे वार कर रहा था जैसे कि वह हाथी को खदेड़ रहा हो. वह खदेड़ते हुए हाथी को सुना भी रहा था – "निकल साले यहाँ से… अपने बाप का तालाब समझ के रखा हैं क्या … दुबारा मत अइयो इधर साले नहीं तो जान से मार दूंगा".
करीब 10 मीटर तक हाथी को खदेड़ने के बाद सरदार वापिस तालाब आया और अपने अधीनस्थों और समर्थकों को गले का ब्लेडर फुलाते हुए संबोधित किया – "साथियों… तालाब की मेढ़ में बैठ के आपने मेरा और हाथी का द्वंद देखा… और देखा आपने कि कैसे हमने हाथी को इस तालाब से खदेड़ दिया. साथियों अब वो हाथी दोबारा यहाँ आने से पहले दस बार सोचेगा.... साइज़ छोटा होने से कुछ नहीं होता साथियों बस ज़ज़्बा चाहिए लड़ने का!".
सभी मेंढक अपने गले का ब्लेडर फुलाते हुए एक विशिष्ट विजय ध्वनि निकालते हुए अपने सरदार के अभिभाषण का समर्थन करने लगते हैं.
अगले दिन हाथी फिर से आ गया… मेंढक सरदार फिर भीड़ गया हाथी से… इस बार उसे वो 15 मीटर तक खदेड़ के आया…. अगले दिन फिर वही… मेंढक सरदार हरेक दिन उसे एक नई रेकॉर्ड दूरी तक खदेड़ के आता…. एक दिन मेंढक सरदार को बहुते ज़ादा गुस्सा आया, हाथी को खदेड़ते हुए 100 मीटर के पार चला गया… सोचा साले को इतनी दूर खदेड़ूँगा कि वापिस ही नहीं आएगा.. वो हरेक वार के बाद ज़ोरदार वार करता. .. इस बार वो अपनी सारी शक्ति को संचित कर एक भीषण प्रहार किया हाथी के पैरों के ऊपर… लेकिन इस बार प्रहार की टाइमिंग और कैलकुलेशन में थोड़ी गड़बड़ी हो गई. प्रहार पैरों को मिस कर गई और वह हाथी के पैरों के आगे जा गिरा. अब हाथी का अगला कदम सीधा मेंढक सरदार के ऊपर जा गिरा और सरदार महोदय हो गए एकदम पुदीने के चटनी के माफ़िक़. सारी सरदारी हो गई खल्लास हाथी के पैरों के तले और हाथी को पता भी नहीं चला कि कोई मेंढक भी उसके पाँव तले आया भी है!!!.
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सीख – अपनी औक़ात से ज़्यादा कुछ भी नहीं करना चाहिए…
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नोट – इस कहानी का ब्रह्माण्ड के एकमात्र ईमानदार और राजा हरिश्चन्द्र के आख़िरी लाल सीरी सीरी ISO10008 सर्टिफाइड अड़बिन्द केजड़ीबाल जी से पूरा-पूरा सम्बन्ध हैं.
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गंगा महतो
खोपोली
Sunday, July 17, 2016
||मेंढक और केजरीवाल||
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